12 सितंबर : आज ही के दिन एक छोटी सी चिप IC ने बदल दी थी हमारी दुनिया
कानपुर। आजकज हम आप जो लैपटॉप, स्मार्टफोन या टैबलेट जैसे छोटे और कॉम्पैक्ट कंप्यूटर इस्तेमाल कर पा रहे हैं। इसके पीछे जिस डिवाइस का योगदान है, उसका नाम है इंटीग्रेटेड सर्किट। आईसी की मदद से ही माइक्रो चिप का अविष्कार संभव हो सका। हर तरह के इलेक्ट्रानिक्स उपकरणों और कंप्यूटरों को इस एक डिवाइस ने आकार में काफी छोटा, ज्यादा शक्तिशाली और इस्तेमाल में आसान बना दिया था।
20वीं सदी का सबसे बड़ा अविष्कार इंटीग्रेटेड सर्किट बना ऐसे
ये वो दौर था, जब दुनिया के कुछ देश इलेक्ट्रानिक उपकरणों को और भी छोटा, आसान और पावरफुल बनाने में जुटे थे लेकिन इलेक्ट्रानिक सर्किट्स का आकार बड़ा होने के कारण ऐसा होना संभव नहीं हो पा रहा था। आलअबाउटसर्किट्स डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक इसी दौर में भौतिक विज्ञानी जैक किल्बे ने 1958 में अमेरिका की टेक्सास इंस्ट्रूमेंट कंपनी में अपना करियर शुरु किया। यहीं वो सदी का सबसे बड़ा अविष्कार यानि आई सी बनाने वाले वाले थे। हालांकि बता दें कि इंटीग्रेटेड सर्किट का सिद्धांत पहली बार साल 1940 में साइंटिस्ट ज्योफ्रे डमर ने एक रिसर्च कॉन्फ्रेंस में रखा था। खास बात यह कि इस सम्मेलन में जैक किल्बे भी मौजूद थे। ज्योफ्रे डमर का आइडिया उनके दिल दिमाग पर छा गया और उन्होंने ठान लिया कि वो 'आईसी' बनाकर ही दम लेंगे।
इस दौर में तमाम वैज्ञानिक कंप्यूटर्स पर रिसर्च में जुटे थे लेकिन ये सभी कंप्यूटर और उनके भारी भरकम सर्किट्स काफी महंगे और जटिल थे। छोटे से एक सर्किट की मामूली सोल्डरिंग एरर भी पूरी कंप्यूटर को ठप्प कर देती थी। ऐसे में जैक किल्बे ने माइक्रो मॉड्यूल प्रोग्राम पर काम शुरु किया। इंटीग्रेटेड सर्किट बनाने के अपने सपने को पूरा करने के लिए जैक कंपनी ने रात दिन जुटे रहे। कंपनी के बाकी कर्मचारियों की तरह छुटि्टयां मनाने की बजाय उन्होंने अपनी रिसर्च पर टाइम दिया। वो अपना ज्यादातर वक्त लैब में अकेले ही रिसर्च करते हुए बिताते थे। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और 12 सितंबर 1958 को उन्होंने अपना पहला सफल इंटीग्रेटेड सर्किट सबके सामने रखा।
जैक किल्बे की आईसी से ज्यादा सफल रहा इंटेल फाउंडर का इंटीग्रेटेड सर्किट
यूएस आर्मी की दिलचस्पी वाले सफल इंटीग्रेटेड सर्किट को बनाने के लिए एक तरफ जैक किल्बे ने रात दिन एक कर दिया था और वो इसमें सफल भी हुए थे, लेकिन व्यावसायिक इस्तेमाल के नजरिए से उनका आईसी सफल नहीं हो पाया। वहीं दूसरी ओर इंटेल कंपनी के कोफाउंर रॉबर्ट नोयस ने भी कुछ किल्बे से कुछ समय बाद सिलिकॉन का अपना आईसी विकसित कर लिया। रॉबर्ट का बनाया आईसी व्यावयासिक द्रष्टिकोण से ज्यादा सफल रहा। यही वजह है कि आजकल के उपकरणों और कंप्यूटर में तो आईसी इस्तेमाल हो रहे हैं, वो रॉबर्ट की आईसी का ही अतिविकसित रूप है।
जैक किल्बे द्वारा बनाया गया इंटीग्रेटेड सर्किट व्यापारिक सफलता के नजरिए से भले ही उतना सफल न रहा हो लेकिन आईसी का अविष्कार करने वाले वो ही पहले व्यक्ति माने जाते हैं। कंप्यूटिंग की दुनिया में आईसी जैसी महत्वपूर्ण डिवाइस को विकसित करने में अपने योगदान के लिए जैक एस किल्बे को साल 2000 में भौतिक विज्ञान का नोबेल प्राइज मिला। साल 2005 में जैक किल्बे ने दुनिया का अलविदा कह दिया।स्मार्टफोन पर अब वेबसाइट पढ़ने की जरूरत नहीं, गूगल का नया फीचर हिंदी में बोलकर सुनाएगा सबकुछहाथ से टाइपिंग करना भूल जाइए... बोलकर अपनी भाषा में कीजिए टाइप, ये ऐप्स दिल खुश कर देंगीधरती की ओर आने वाले खतरनाक एस्टेरॉयड से निकलेगा अरबों का सोना, वैज्ञानिकों ने ईजाद की यह तकनीक