सुप्रीम कोर्ट आज इस बात पर फैसला सुनाने वाला है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में योग्य है या नहीं। एएमयू के दर्जे को लेकर दशकों से चले आ रहे कानूनी विवादों के बाद इस फैसले का छात्र आरक्षण और विश्वविद्यालय प्रशासन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। यहां जानें पूरा मामला...


कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) को अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट आज 8 नवंबर को अपना फैसला सुनाएगा। सुप्रीम कोर्ट इस पर अपना फैसला सुनाएगा कि क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है, जो धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार देता है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सेवेन जज कास्टीट्यूशन बेंच यानी कि सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ फैसला सुनाएगी। बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, सूर्यकांत, जेबी पारदीवाला, दीपांकर दत्ता, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा भी शामिल हैं। बेंच ने आठ दिनों तक दलीलें सुनने के बाद 1 फरवरी को इस सवाल पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।इस तरह से हुए थे संशोधन
बतादें कि बीते 1 फरवरी को, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे के जटिल मुद्दे पर गहनता से विचार किया, और कहा कि एएमयू अधिनियम में 1981 का संशोधन, जिसने विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया, केवल एक "आधे-अधूरे" प्रयास था। शीर्ष अदालत ने बताया कि संशोधन संस्थान को 1951 में अधिनियम में किए गए परिवर्तनों से पहले की स्थिति में पूरी तरह से बहाल करने में विफल रहा। जबकि एएमयू अधिनियम, 1920, अलीगढ़ में एक शिक्षण और आवासीय मुस्लिम विश्वविद्यालय को शामिल करने की बात करता है, 1951 का संशोधन विश्वविद्यालय में मुस्लिम छात्रों के लिए अनिवार्य धार्मिक शिक्षा को समाप्त करता है।

Posted By: Shweta Mishra