सिंगल स्क्रीन के फैंस और देशभक्ति के नाम पर सत्यमेव जयते के मेकर्स जो दर्शकों के लिए टॉर्चर लाए हैं उसके लिए उन्हें दाद देनी होगी। आज के दौर में डबल रोल वाली फिल्में झेलनी मुश्किल होती है यहां तो ट्रिपल रोल है। जॉन बतौर प्रोड्यूसर जैसी उम्दा फिल्मों का चुनाव करते हैं बतौर एक्टर उन्हें ऐसी फ़िल्म करना क्यों भाता है। यह सिर्फ जॉन ही बता सकते हैं। पढ़ें पूरा रिव्यू

फिल्म : सत्यमेव जयते 2
कलाकार: जॉन अब्राहम, दिव्या खोसला कुमार
निर्देशक : मिलाप झावेरी
रेटिंग: एक स्टार

क्या है कहानी
सत्या आजाद एक गृहमंत्री हैं। लेकिन उनकी बात से बाकी नेता कोई इत्तेफाक नहीं रखते हैं। नेता तो क्या उनकी खुद की पत्नी उनके विपक्ष में हैं। उनके शहर में कई हत्याएं हो रही हैं। ऐसे में एंट्री होती है एस पी जय आजाद की। अब आपको यह भी बता दें कि पूरी फिल्म में मार धार, भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग, डायलॉग बाजी और इन सबके साथ जॉन अब्राहम के साथ दो और जॉन अब्राहम फ्री नजर आए हैं। कहानी क्या है यह समझ पाना मुश्किल है। बस मसाला फिल्मों के नाम पर दर्शकों के साथ निर्देशक ने अच्छा मजाक कर लिया है। इन सबके बीच फिल्म एक बोरिंग से क्लाइमेक्स के साथ खत्म हो जाती है।

क्या है अच्छा
कुछ अच्छे एक्शन सीन हैं। जॉन निराश नहीं करते हैं कुछ दृश्यों में। कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उठाया गया है। धार्मिक अहिंसा की बात है। यह एक अच्छा मेसेज है। लोकपाल बिल के बारे में भी बात है। फिल्म का प्लॉट आपको मलयालम फिल्म वन की थोड़ी झलक दे सकता है।

क्या है बुरा
देशभक्ति के नाम पर बे बुनियादी डायलॉग हैं। चिल्ला चिल्ला के केवल शोर मचाया गया है। दिव्या खोसला ने गजब की ओवर एक्टिंग की है। जॉन का ओवर डोज देने की जरूरत क्यों लगी मेकर्स को यह तो वही बता पाएंगे।

अदाकारी
दिव्या खोसला निर्देशन से ही जुड़ी रहें तो बेहतर होगा। जॉन क्यों अपनी बनी बनाई ब्रांड को ये अजीबोगरीब किरदार निभा कर बर्बाद करना चाहते हैं। समझ नहीं आया। शेष कलाकारों के लिए कुछ करने को था ही नहीं।

वर्डिक्ट
मसाला फिल्म के नाम पर बेवकूफ न ही बनें।

Review by: अनु वर्मा

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari