सारे इंसानी अनुभवों का एक रासायनिक आधार होता है। जिसे आप आनंद दु:ख तनाव चिंता यंत्रणा और परमानंद कहते हैं ये सब अलग-अलग तरह की रासायनिक अवस्थाएं हैं। दूसरे शब्दों में जिसे आप 'मैं' कहते हैं वो एक 'केमिकल सूप' है...


feature@inext.co.inKANPUR: नमस्कार सद्गुरु, इतने सारे लोगों से घिरे होने के बावजूद, हम फिर भी किसी से जुड़े होने, किसी के द्वारा स्वीकारे जाने, किसी के द्वारा प्रेम किए जाने की भावना की कमी को महसूस करते हैं। इस असंतोष और अकेलेपन से हमें कैसे निपटना चाहिए?


आपको यह तय करना चाहिए कि आपके जीवन में क्या सबसे ज्यादा कीमती है, आजादी या बंधन? ज्यादातर लोगों के साथ समस्या यह है कि अगर वे आजाद हैं तो वे खोया हुआ महसूस करते हैं। मिसाल के लिए, अगर आप पहाड़ों में बिल्कुल सुनसान स्थान पर हैं जहां आपके आस-पास कोई नहीं है,तो आप आजादी महसूस नहीं करेंगे आपको लगेगा कि आप खो गए हैं। अगर आप एक चिडिय़ा को बहुत लंबे समय तक पिंजरे में रखते हैं, और फिर एक दिन पिंजरे का दरवाजा खोल देते हैं, चिडिय़ा तब भी उड़कर चली नहीं जाएगी। भीतर होने पर, यह विरोधकरेगी कि यह आजाद नहीं है, लेकिन वह उड़ेगी नहीं। इंसान की हालत भी बस वैसी ही है। अगर आप आजाद होना

चाहते हैं, तो क्या होने की जरूरत है? सारे इंसानी अनुभवों का एक रासायनिक आधार होता है। जिसे आप आनंद, दु:ख, तनाव, चिंता, यंत्रणा, और परमानंदकहते हैं, ये सब अलग-अलग तरह की रासायनिक अवस्थाएं हैं। दूसरे शब्दों में, जिसे आप 'मैं' कहते हैं, वो एक 'केमिकल सूप' है। अभी, अगर आपके पास परमानंद का रसायन है, तब पास में चाहे कोई व्यक्ति हो या न हो, आप शानदार महसूस करते हैं, क्योंकि जीवन का आपका अनुभव इस पर निर्भर नहीं करता कि आपके पास क्या है या आपके पास क्या नहीं है। एक बार जब आपके होने का तरीका आपके बाहर की किस चीज से तय नहीं होता, तब अकेलापन जैसी कोई चीज नहीं रह जाती। क्या आत्माओं का मिलन या 'सोल-मेट' जैसी कोई चीज होती है?

कई लोग ऐसी सोच रखते हैं कि हर किसी के लिए दुनिया में सिर्फ एक ही 'सही' जीवनसाथी होता है। कुछ मानते हैं कि यह ग्रहों और तारों से तय होता है। ऐसी व्यापक धारणा भी है कि जीवनसाथी खुद सृष्टिकर्ता द्वारा चुना गया होता है। इन दोनों के पीछे सोच यह है कि इंसानी प्रेम का स्रोत स्वर्ग में है न कि धरती पर लोग यह भूल जाते हैं कि आत्मा किसी चीज के साथ या किसी के साथ मिलन नहीं कर सकती। और न ही आत्मा को साथी की जरूरत है। जब हम आत्मा की बात करते हैं, तो हम परम और असीम की बात कर रहे होते हैं। सिर्फ उसी को, जो सीमित है, साथी की जरूरत होती है। कभी भी असीम एक साथी क्यों खोजेगा? इंसान होना एक असीम संभावना है, खत्म न होने वाली खोज है : सद्गुरु जग्गी वासुदेवइन 5 वजहों से विशेष है अक्षय तृतीया, इस दिन ही होते हैं ये तीन कामलोग साथी क्यों खोजते हैं?
इसका कारण शारीरिक हो सकता है; हम उसे कामुकता कहते हैं और यह काफी सुंदर हो सकती है। इसका कारण मानसिक हो सकता है; हम इसे संग-साथ कहते हैं, यह भी सुंदर हो सकता है। इसका कारण भावनात्मक हो सकता है; हम उसे प्रेम कहते हैं, और सबसे मधुर अनुभव के रूप में इसका गुणगान किया गया है। निश्चय ही, शारीरिक अनुकूलता, संग-साथ और प्रेम जीवन को शानदार बना सकते हैं, लेकिन अगर आप खुद से ईमानदार हैं, तो आप इस व्यवस्था के साथ जुड़ी चिंता को नकार नहीं सकते जिन सीमाओं और शर्तों के बीच एक रिश्तचलता है, उसको ईमानदारी से स्वीकार करना बुद्धिमानी है। यथार्थवादी होने का फायदा यह है कि जब कल आपका सीमाओं से सामना होता है, तब आपको उनके साथ निपटने का परिपक्व तरीका मिल जाएगा। लेकिन, ज्यादातर लोग सीमाएं पैदा करते हैं। वे 'सोल-मेट' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं या ढिंढोरा पीटते हैं कि उनका रिश्ता 'स्वर्ग-निर्मित' है। इस स्तर की आत्म-वंचना के साथ मोहभंग होना लाजिमी है।

Posted By: Vandana Sharma