एक तरफ मेल चौवनिस्ट और बेहद सेक्सिस्ट फ़िल्म देखने को मिली तो दूसरी तरफ पुरुष प्रधान समाज को निशाने पर रखती हुई एक सच्ची फेमिनिस्ट फ़िल्म भी देखने को मिली क्या निशाना बुल्ज़ आई पर लगा आइये आपको बताते हैं।

कहानी :
प्रकाशी तोमर और चंद्रो तोमर जो कि असल जिंदगी में शूटर हैं उनकी कहानी का फिल्मी रूपांतरण है

रेटिंग : 3.5 स्टार

समीक्षा :
बड़ा बवाल हुआ, कि अपने से दुगनी उम्र की महिलाओं का रोल क्यों प्ले किया गया और क्यों नही उम्र के हिसाब से कास्टिंग हुई। ये चर्चा ही फ़िज़ूल है, वो बॉलीवुड जिसमे 50 साल के हीरो 25 का रोल करते हैं तो क्यों नहीं कम उम्र की अभिनेत्री 60 साल के महिला का रोल कर सकती, ये दोगली बातें करना ही गलत है। किरदार किरदार है और उसको निभाना हर अभिनेता या अभिनेत्री की अहम ज़िम्मेदारी है। शिकायत है तो बस मेकअप डिपार्टमेंट से जो अपना काम ठीक से करते नज़र नहीं आये। मेकअप इतना खराब है कि उम्र मैच करना तो दूर मेकअप के लेयर तक स्क्रीन पे साफ दिखते हैं और इसी कारण से फ़िल्म की लुक एंड फील को खासा नुकसान पहुंचता है। दूसरी समस्या है फ़िल्म की बेसिक सी फॉर्मूला बेस्ड एडिट, बहुत सारे सीन खासकर टूर्नामेंट बहुत ही मोनोटोनस और रेपिटेटिव लगते हैं और फ़िल्म के पेस को स्लो कर देते हैं। डायरेक्शन अच्छा है।

अदाकारी :
तापसी एक ब्रिलिएंट एक्ट्रेस हैं, खराब मेकअप के बावजूद वो अपने रोल को बखूबी निभाती हैं और इसी वजह से फ़िल्म में आपका दिल लगा रहता है। भूमि भी तापसी को फुल सपोर्ट देते हुए एक ऐसी जोड़ी बनाती हैं जो जब तक स्क्रीन पे रहती है तब तक आप फ़िल्म से कोई गिला शिकवा नहीं रख सकते। विनीत और प्रकाश झा का काम भी बहुत सधा हुआ है और फ़िल्म की ओवरआल कास्टिंग से भी कोई शिकायत नाही है।

 

वर्डिक्ट :
हाँ इस फ़िल्म में कोई बड़ा सुपरस्टार नहीं है, पर ये कहानी जिसकी है वो दो औरतें चंद्रो और प्रकाशी अपने आप मे इस पुरुष प्रधान समाज की सुपर स्टार हैं और यही रीज़न है फ़िल्म को देखने का और हाल तक जाने का, आगे आपको फ़िल्म अच्छी लगेगी इसकी जिम्मेदारी तापसी और भूमि ने अपने कंधों पर ली ही हुई है । दीवाली में पटाखों का मोह छोडि़ए और गोलियों की ये लीला देखिए, जो हमेशा निशाने पर लगती है।

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Review by: Yohaann Bhaargava

Posted By: Chandramohan Mishra