भारत में एक व्यक्ति ने एक ऐतिहासिक अदालती जंग में एक प्रमुख नेता का नाजायज़ बेटा होने का केस जीता है. माना जा रहा है कि एक ऐसे समाज में जहां वैवाहिक संबंधों के बाहर पैदा होने वाले बच्चों को उनके पिता नकार देते हैं यह मामला ऐसे ही कई अन्य दावों की बाढ़ ला सकता है.


35 साल के रोहित शेखर आज न्याय हासिल कर लेने के भाव के साथ गर्व से खड़े होते हैं. उन्होंने सफ़ेद कमीज़ पहनी हुई है और दक्षिण दिल्ली के उच्चवर्गीय स्थान में उनका घर उच्च-मध्य-वर्गीय होने का अहसास कराता है.वह मुस्कुराते हुए कहते हैं, "शायद मैं दुनिया का पहला आदमी हूँ जिसने ख़ुद को नाजायज़ साबित होने के लिए मुकदमा लड़ा."सात साल तक उन्होंने भारत के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक- 88 वर्षीय नारायण दत्त तिवारी के ख़िलाफ़ पितृत्व का केस लड़ा. तिवारी अपने छह दशक लंबे राजनीतिक जीवन में कांग्रेस पार्टी की सरकारों में कई बार मंत्री रहे हैं.रहस्यरोहित के अनुसार 'नाजायज़' शब्द अदालत में कई बार दोहराया गया.वह कहते हैं, "भारत का पितृसत्तात्मक समाज मुझे या मेरी मां को स्वीकार करने को तैयार नहीं था."


"यह भेदभाव और भी मुश्किल हो जाता है जब आप अमीर शहरी क्षेत्र को छोड़कर देश के अंदरूनी इलाक़े की ओर जाते हैं."बहुत से भारतीय राजनेताओं के लंबे वक़्त तक विवाहेतर संबंध रहे हैं लेकिन सामान्यतः उनकी खुलेआम चर्चा नहीं की जाती और भारतीय मीडिया सामान्यतः उनका खुलासा करने से बचता है.किसी महिला का सार्वजनिक रूप से किसी रिश्ते की बात और विवाहेतर संबंध से बच्चे की बात स्वीकार करना बेहद असामान्य घटना है.

उसी वक्त उनका एनडी तिवारी से परिचय हुआ जो उस वक़्त एक उभरते हुए नेता थे और पारिवारिक दोस्त थे. कुछ साल के संबंधों के बाद उन्होंने रोहित को जन्म दिया लेकिन एनडी तिवारी ने बच्चे को अपना नाम देने से इनकार कर दिया.शेखर कहते हैं कि तिवारी ऐसा करते तो उनके राजनीतिक करियर को भारी धक्का लगता क्योंकि वह एक शादीशुदा व्यक्ति थे.इसलिए शेखर के जन्म प्रमाणपत्र पर उनकी मां के पति- बीपी शर्मा का नाम लिखा गया.वह कहते हैं, "जब मुझे सच का पता चला तो मुझे बहुत ग़ुस्सा आया और अपमानित महसूस हुआ.""यह विचार बहुत डरावना था कि मेरे पिता मुझे सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं करना चाहते. मुझे यह समझ नहीं आता था कि मेरी मां को वह स्थान क्यों नहीं दिया गया, जिसकी वह हक़दार थीं. मुझे हमेशा लगा कि विस्तृत परिवार में हमें हमेशा मज़ाक के रूप में देखा जाता था. मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता था."यह उनका ग़ुस्सा ही था जिसने उन्हें अपनी पहचान के लिए लड़ने के वास्ते प्रेरित किया.

भारत जैसे एक परंपरावादी समाज में, जहां शादी और परिवार समाज में इज़्ज़त के लिए ज़रूरी हैं, नाजायज़ होने का दाग बहुत बड़ा था. शेखर को लगता है कि इस केस का फ़ैसला और डीएनए टेस्ट, जिसके लिए तिवारी को मजबूरन तैयार होना पड़ा, ने एक नजीर पेश की है. लेकिन उनकी सफ़लता का एक बिल्कुल अप्रत्याशित परिणाम आया- दो हफ़्ते पहले तिवारी ने, जो अब एक विधुर हैं, उनकी मां से क्लिक करें शादी कर ली.शेखर कहते हैं, "मैं शादी में नहीं गया. मुझे अपनी मां के लिए ख़ुशी है और इस उम्र में शादी भी भारतीय समाज के लिए नया उदाहरण स्थापित करेगी."वह कहते हैं कि अब उन्हें एक नई जंग लड़नी है- अदालतों में कुछ शब्दों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगवाने की.वह दृढ़तापूर्वक कहते हैं, "कोई भी बच्चा नाजायज़ नहीं हो सकता, सिर्फ़ पिता ही नाजायज़ हो सकता है."वह चाहते हैं कि एक याचिका दायर करें ताकि बच्चों को वकील और जज 'नाजायज़' कहना बंद करें, जैसे कि उन्हें कहा जा रहा था.उन्हें 'रखैल' और 'व्यभिचारी' जैसे शब्दों पर भी ऐतराज़ है. रखैल उस महिला के संदर्भ में इस्तेमाल किया जाता है जो किसी शादीशुदा पुरुष से संबंध बनाती है लेकिन यह संबंध वैवाहिक नहीं हैं.
वह कहते हैं, "भारत अब भी एक सामंती समाज है और यह महिलाओं और बच्चों के प्रति बहुत निर्मम है. मैं इसे बदलना चाहता हूं."

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari