पंजाब का बोपुर गाँव लगातार ख़बरों में है. संगरूर ज़िले के इस गाँव में सवर्ण जाटों ने 15 मई को दलितों के सामाजिक बहिष्कार की घोषणा की थी. पुलिस ने इस बहिष्कार को खत्म कराने की घोषणा कर दी है लेकिन सामाजिक जीवन में इसकी कसक बाक़ी है.


पंजाब के सबसे पिछड़े ज़िले का ये गांव हरिणाया की सीमा से सटा है जहां दलितों के लिए आरक्षित खेतिहर पंचायती ज़मीन की नीलामी विवाद का कारण बनी है.ग्राम पंचायत की 81 एकड़ में से 27 एकड़ खेतिहर ज़मीन दलितों के हिस्से आती है, इसकी सालाना नीलामी में सिर्फ़ दलित तबका ही बोली लगा सकता है.आम तौर पर ज़मीन किसी दलित के नाम पर ली जाती है लेकिन उस पर खेती जाट ही करते आए हैं. इस बार रविदासी और वाल्मीकि बिरादरी ने इकट्ठे होकर इस ज़मीन पर खेती करने का फ़ैसला किया और नीलामी में हिस्सा लिया.रविदासी बिरादरी के पंच किशन सिंह जस्सल बताते हैं कि इस फ़ैसले का कारण बिरादरी की भलाई के लिए साँझी खेती करना था जो 12 सदस्य कमेटी की निगरानी में ख़ुद की जानी थी.
लेकिन नीलामी रद्द कर दी गई और 15 मई को गांव के एक प्रभावशाली व्यक्ति वसाऊ राम ने जाटों की बैठक बुलाई और इसमें दलितों के सामाजिक बहिष्कार का फ़ैसला किया गया.जुर्माना और बहिष्कारजाट सरपंच हवा सिंह और उनके साथ हैं सतनाम सिंह


इस दौरान 19 मई को वाल्मीकि मंदिर के पुजारी महिपाल सिंह को पीटा गया. इस मामले में अभियुक्त बीरा राम के ख़िलाफ़ अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति उत्पीड़न अधिनियम के तहत मामला दर्ज करके उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया है.गांव के सरपंच लहरी सिंह ने फ़ोन पर बताया कि गांव में सामाजिक बहिष्कार जैसा कुछ भी नहीं हुआ और पुजारी महिपाल का मामला दो जनों का आपसी झगड़ा है.दूसरी तरफ़ मनरेगा के योजना के तहत काम कर रही दलित महिलाएँ बताती हैं कि दलित समाज सामाजिक बहिष्कार का शिकार है जिसके कारण रोज़गार से लेकर ईंधन जुटाने और शौच जाने तक में मुश्किलें आ रही हैं.28 वर्षीय संतोष बताती हैं कि महिलाओं पर इन हालात का बुरा असर पड़ा है. मनरेगा के काम में लगी महिलाएं संतोष की हाँ में हाँ मिलाती हैं.वहीं जाट समाज किसी तरह के झगड़े से इनकार करता है.जाट बिरदारी के पंच हवा सिंह कहते हैं, "हम किसी को फसल बर्बाद करने की इजाज़त तो नहीं दे सकते."लेकिन जाट समाज के सतनाम सिंह कहते हैं कि दलितों को खाली खेतों में भी घुसने से भी रोका गया था. 65 वर्षीय सतनाम सिंह यह भी कहते हैं कि जाटों के समाज के कुछ लोग ही दलितों को भड़का रहे हैं.जातीय दबदबा

मनरेगा में काम कर रही दलित महिला संतोष मानती हैं कि ऐसे प्रतिबंधों का महिलाओं पर ज़्यादा असर होता है.पंजाब के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग के सदस्य दलीप सिंह पांधी ने बोपुर का दौरा करने के बाद अपनी रिपोर्ट सौंप दी है.पांधी ने फ़ोन पर बताया कि सामाजिक बहिष्कार का असर है लेकिन दलित भी अपनी बात पर अड़े हैं. उनका मानना है कि शायद ज़मीन की नीलामी का फ़ौसला हो जाने के बाद माहौल बेहतर हो सकता है.पंजाबी यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के सहायक प्रोफ़ेसर जतिंदर सिंह मानते हैं कि इस घटना को कुछ लोगों की ग़लती तक सीमित करके नहीं आंका जा सकता क्योंकि ऐसी घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं.जतिंदर ने ऐसी एक घटना का तीन साल पहले पंजाब के सबसे ज़्यादा ग्रामीण आबादी वाले तरणतारण ज़िले के गाँव पदरी कलाँ में अध्ययन किया था.जतिंदर का कहना है, "राजनीतिक पार्टियों की सरपरस्ती और प्रशासन की सहमति से दबंग जातियों के लोग अपना सामाजिक दबदबा क़ायम रखने की कोशिश कर रहे हैं."आम आदमी पार्टी के नए सांसद भगवंत मान गाँव का दौरा करके लोगों को समझाने में नाकाम रहे. कई वामपंथी पार्टियों के प्रतिनिधिमंडल पड़ताल करने के लिए बोपुर का दौरा कर चुके हैं.
इन हालात में दोनों बिरादरियों के लोगों का लहजा बताता है कि तनाव जल्दी कम होने वाला नहीं है.थाने में जाट समाज की तरफ़ से माफ़ी माँगने वाले अजमेर सिंह की गाँव में इज़्ज़त तो सब लोग करते हैं पर उनकी बात मानने के लिए कई तैयार नहीं दिखता.अजमेर सिंह चाहते हैं कि इन बातों को भुलाकर गाँव के सभी समुदाय आपस में मिलजुल कर रहें.

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari