क्यों टूट रही हैं दंगों के बाद हुई शादियां?
19 साल की छोटी उन सैंकड़ों लड़कियों में से है जिनकी शादी मुज़फ़्फ़रनगर और शामली में पिछले साल सितंबर में हुए दंगों के बाद आनन-फ़ानन में कर दी गई. छोटी की मर्ज़ी किसी ने पूछी ही नहीं.वो कहती हैं कि पूछते भी तो वो मना नहीं करती. छोटी ने कहा, “हमें तो मां-बाप की ख़ुशी के लिए सब बात माननी पड़ती है, अगर हम ना मानें और अपने मन की करें, तो बिरादरी के लोग कहते कि इस घर में तो लड़की की चलती है तो ये लड़की ज़रूर ख़राब होगी.”पर शादी के लिए हामी भरना छोटी और उसके मां-बाप, किसी को ख़ुशी नहीं दे पाया. ससुराल में दस दिन ही रहने के बाद छोटी को वापस घर लौटा दिया गया और अब वो तलाक़ चाहती हैं.
दरअसल मुज़फ़्फ़रनगर के दंगा पीड़ितों के लिए बने कुछ शिविरों में जब लड़कियों की शादियां हुईं तो उत्तर प्रदेश सरकार ने उनकी मदद के लिए उस व़क्त एक लाख रुपए दिए.ये बात जब फैली तो कई परिवारों में बच्चियों की शादी करने की होड़ लग गई. पर सरकार ऐसा किसी नीति के तहत नहीं कर रही थी, लिहाज़ा पैसे कुछ ही परिवारों को मिले.
अब छोटी का आरोप है कि उसके ससुराल वालों ने इसी पैसे की आस में शादी की और जब पैसे नहीं मिले तो लौटा दिया. उन्होंने कहा, “एक दिन तो मेरी मां ने कहा कि हम कुछ सामान दे देते हैं, तो मेरे ससुर बोले कि पैसे ही चाहिए उन्हें, सामान से नहीं होगा.”पैसे का लालच?
दंगों के बाद से मुज़फ़्फ़रनगर और शामली ज़िलों में काम कर रहीं समाजसेवी अज़रा बताती हैं कि वो ऐसी कई लड़कियों से मिली हैं और उनके मुताबिक़ तो इनमें से कई लड़कियां नाबालिग़ हैं.अज़रा कहती हैं, “ये बच्चियां पढ़ी-लिखी नहीं हैं और परिवार में अपनी बात नहीं रख पातीं. हमने शादियों के व़क्त भी कई परिवारों को समझाया की जल्दबाज़ी ना करें, बच्चियां भी छोटी हैं, पर हमें बार-बार सुरक्षा और इज़्ज़त का हवाला दिया जाता रहा.”चुप्पी
अफ़सोस ये कि दंगों में जान-माल के नफ़े-नुक़सान का लेखा-जोखा करने वालों को, शायद इन लड़कियों की ज़िन्दगी के दलदल की ख़बर भी ना हो.