चुनावी गणित में अक़्सर होती है बाज़ार से ग़लती
शेयर बाज़ार के विश्लेषकों का मानना है कि बाज़ार को एक स्थिर सरकार आने की उम्मीद है, जो मुश्किल फ़ैसले लेने से झिझकेगी नहीं और रुकी हुई विकास दर को आगे बढ़ाएगी.वैल्यू रिसर्च ऑनलाइन कंपनी में शेयर बाज़ार विश्लेषक धीरेन्द्र कुमार ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि, “बाज़ार की पसंद नरेन्द्र मोदी हैं, जिन्होंने अपने हर भाषण में साफ़ किया है कि वो मुश्किल फ़ैसले लेने को तैयार हैं, और इस व़क्त बाज़ार को आर्थिक नीति में कोई आधारभूत परिवर्तन नहीं बल्कि सुलझी हुई सोच और कड़ा रुख ही चाहिए.”हालांकि धीरेन्द्र कुमार ध्यान दिलाते हैं कि आम चुनाव के नतीजों पर बाज़ार का पहला आकलन ग़लत भी हो सकता है और पिछले दो आम चुनावों में दोनों बार ही बाज़ार ग़लत साबित हुआ था.
साल 2004 में बाज़ार का पहला अंदाज़ा एनडीए सरकार के सरकार बनाने का था, पर इसके उलट कांग्रेस ने वाम दलों के समर्थन से सरकार बनाई और वामपंथी नीतियों से डरकर बाज़ार एक दिन में 14 प्रतिशत गिरा था.धीरेन्द्र कुमार कहते हैं, “बाज़ार की शुरुआती नाउम्मीदी के बिल्कुल विपरीत 2004 के यूपीए के कार्यकाल में बाज़ार का ‘बुल रन’ हुआ और सेंसेक्स 3,000 से 20,000 तक पहुंचा.”
2009 के आम चुनाव में जब यूपीए सरकार भारी बहुमत के साथ लौटी, तो बाज़ार बहुत आशावान हुआ और 12-14 प्रतिशत का उछाल आया, लेकिन उसके बाद पांच साल का दौर कुछ और ही रहा.ग्रामीण अर्थव्यवस्था
जगन्नाथ थुनुगुतलम के मुताबिक इस आकलन में कई बार गलती हुई है, “भारत में एक बड़ा फ़ैक्टर है ग्रामीण अर्थव्यवस्था, जिसे समझना बहुत मुश्किल है, बाज़ार की समझ ज़्यादातर शहरों, मीडिया, एग्ज़िट पोल और ऐसे मानकों से बनती है जो छोटे सैम्पल पर आधारित होते हैं और ये अधूरी हो सकती है.”वो कहते हैं कि ग्रामीण वोटर की समझ इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका दिन प्रति दिन महत्वपूर्ण होती जा रही है.धीरेन्द्र कुमार के मुताबिक पिछले कुछ महीनों में बाज़ार में आई तेज़ी असल नतीजे सामने आने पर बदलेगी, और नतीजे बाज़ार के मन-माफ़िक भी हुए तो इसमें कुछ गिरावट आने की बड़ी संभावना है.