सआदत हसन मंटो को समझना हो तो जरूर पढ़ें उनकी ये सात लघु कहानियां
1- करामात
लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए। लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अँधेरे में बाहर फेंकने लगे; कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौका पाकर अपने से अलहदा कर दिया, कानूनी गिरफ्त से बचे रहें। एक आदमी को बहुत दिक्कत पेश आई। उनके पास शक्कर की दो बोरियाँ थीं जो उसने पंसारी की दुकान से लूटी थीं। एक तो वह जूँ-तूँ रात के अँधेरे में पास वाले कुएँ में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा तो खुद भी साथ चला गया। शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गए। कुएँ में रस्सियाँ डाली गईं। जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया; लेकिन वह चंद घंटों के बाद मर गया। दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था। उसी रात उस आदमी की कब्र पर दीए जल रहे थे।
2- घाटे का सौदा
दो दोस्तों ने मिलकर दस-बीस लड़कियों में से एक लड़की चुनी और बयालीस रुपए देकर उसे खरीद लिया। रात गुजारकर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा-"तुम्हारा क्या नाम है?" लड़की ने अपना नाम बताया तो वह भिन्ना गया-"हमसे तो कहा गया था कि तुम दूसरे मजहब की हो…" लड़की ने जवाब दिया-"उसने झूठ बोला था।" यह सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा-"उस हरामजादे ने हमारे साथ धोखा किया है…हमारे ही मजहब की लड़की थमा दी…चलो, वापस कर आएँ…।"
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3- सॉरी
छुरी पेट चाक करती (चीरती) हुई नाफ (नाभि) के नीचे तक चली गई। इजारबंद (नाड़ा) कट गया। छुरी मारने वाले के मुँह से पश्चात्ताप के साथ निकला-"च् च् च्…मिशटेक हो गया!"
4-रियायत
"मेरी आँखों के सामने मेरी बेटी को न मारो…" "चलो, इसी की मान लो…कपड़े उतारकर हाँक दो एक तरफ…"
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5-बँटवारा
एक आदमी ने अपने लिए लकड़ी का एक बड़ा संदूक चुना। जब उसे उठाने लगा तो संदूक अपनी जगह से एक इंच न हिला। एक शख्स ने, जिसे अपने मतलब की शायद कोई चीज मिल ही नहीं रही थी, संदूक उठाने की कोशिश करनेवाले से कहा-"मैं तुम्हारी मदद करूँ?" संदूक उठाने की कोशिश करनेवाला मदद लेने पर राजी हो गया। उस शख्स ने जिसे अपने मतलब की कोई चीज नहीं मिल रही थी, अपने मजबूत हाथों से संदूक को जुंबिश दी और संदूक उठाकर अपनी पीठ पर धर लिया। दूसरे ने सहारा दिया, और दोनों बाहर निकले।
संदूक बहुत बोझिल था। उसके वजन के नीचे उठानेवाले की पीठ चटख रही थी और टाँगें दोहरी होती जा रही थीं; मगर इनाम की उम्मीद ने उस शारीरिक कष्ट के एहसास को आधा कर दिया था। संदूक उठानेवाले के मुकाबले में संदूक को चुननेवाला बहुत कमजोर था। सारे रास्ते एक हाथ से संदूक को सिर्फ सहारा देकर वह उस पर अपना हक बनाए रखता रहा।
जब दोनों सुरक्षित जगह पर पहुँच गए तो संदूक को एक तरफ रखकर सारी मेहनत करनेवाले ने कहा-"बोलो, इस संदूक के माल में से मुझे कितना मिलेगा?"
संदूक पर पहली नजर डालनेवाले ने जवाब दिया-"एक चौथाई।" "यह तो बहुत कम है।" "कम बिल्कुल नहीं, ज्यादा है…इसलिए कि सबसे पहले मैंने ही इस माल पर हाथ डाला था।" "ठीक है, लेकिन यहाँ तक इस कमरतोड़ बोझ को उठाके लाया कौन है?"
"अच्छा, आधे-आधे पर राजी होते हो?" "ठीक है…खोलो संदूक।" संदूक खोला गया तो उसमें से एक आदमी बाहर निकला। उसके हाथ में तलवार थी। उसने दोनों हिस्सेदारों को चार हिस्सों में बाँट दिया।
6-सफाई पसंद
गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूकची एक डिब्बे के पास आए। खिड़कियों में से अंदर झाँककर उन्होंने मुसाफिरों से पूछा-"क्यों जनाब, कोई मुर्गा है?" एक मुसाफ़िर कुछ कहते-कहते रुक गया। बाकियों ने जवाब दिया-"जी नहीं।" थोड़ी देर बाद भाले लिए हुए चार लोग आए। खिड़कियों में से अंदर झाँककर उन्होंने मुसाफिरों से पूछा-"क्यों जनाब, कोई मुर्गा-वुर्गा है?" उस मुसाफिर ने, जो पहले कुछ कहते-कहते रुक गया था, जवाब दिया-"जी मालूम नहीं…आप अंदर आके संडास में देख लीजिए।" भालेवाले अंदर दाखिल हुए। संडास तोड़ा गया तो उसमें से एक मुर्गा निकल आया। एक भालेवाले ने कहा-"कर दो हलाल।" दूसरे ने कहा-"नहीं, यहाँ नहीं…डिब्बा खराब हो जाएगा…बाहर ले चलो।"
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7- मुनासिब कार्रवाई
जब हमला हुआ तो मोहल्ले में अकल्लीयत के कुछ लोग कत्ल हो गए जो बाकी बचे, जानें बचाकर भाग निकले-एक आदमी और उसकी बीवी अलबत्ता अपने घर के तहखाने में छुप गए। दो दिन और दो रातें पनाह याफ्ता मियाँ-बीवी ने हमलाआवरों की मुतवक्के-आमद में गुजार दीं, मगर कोई न आया।
दो दिन और गुजर गए। मौत का डर कम होने लगा। भूख और प्यास ने ज्यादा सताना शुरू किया। चार दिन और बीत गए। मियाँ-बीवी को जिदगी और मौत से
कोई दिलचस्पी न रही। दोनों जाए पनाह से बाहर निकल आए। खाविंद ने बड़ी नहीफ आवाज में लोगों को अपनी तरफ मुतवज्जेह किया और कहा "हम दोनों अपना आप तुम्हारे हवाले करते हैं...हमें मार डालो।"