लीजेंड सत्यजीत रे हर दौर में प्रासंगिक हैं और रहेंगे। ऐसे में नेटफ्लिक्स ने रे को समर्पित उनकी चार कहानियों को एक-एक घंटे की फिल्म का रूप दिया है। इसे रे के सिनेमेटिक अप्रोच को कन्टेम्परी एंगल देने की कोशिश की गई है। और इन कहानियों का निर्माण नेटफ्लिक्स के लिए सृजित मुखर्जी फॉरगेट मी नॉट बहुरूपिया वसन बाला स्पॉटलाइट अभिषेक चौबे हंगामा है क्यों बरपा ने किया है। सिनेमा प्रेमी सिनेमा के ग्रामर और सिनेमा के लेखन को समझने का शौक रखते हैं तो ये चार कहानियां आपको देख लेनी चाहिए। स्पॉटलाइट बहुरूपी हंगमा है क्यों बरपा और फॉरगेट मी नॉट ऐसी चार अलग मिजाज और तेवर की कहानियां हैं जिसमें प्यार बदला थ्रिलर ड्रामा सस्पेंस सबकुछ है। साहित्य का सिनेमा से यह मिलाप बेहद दिलचस्प है। पढ़ें पूरा रिव्यु

वेब सीरीज : रे
कलाकार : मनोज बाजपयी, केके मेनन, हर्ष वर्धन कपूर, श्वेता बासु प्रसाद, अली फजल, गजराज राव, रघुवीर यादव , बिदिता बाग़, राजेश शर्मा, दिवेन्दु, राधिका मदान, चंदन रॉय सान्याल
निर्देशक : सृजित मुखर्जी, वसन बाला, अभिषेक चौबे
ओटीटी : नेटफ्लिक्स
रेटिंग : 3 . 5 स्टार

क्या है कहानी
फॉरगेट मी नॉट इप्शित ( अली फजल) की कहानी है, एक सफल बिजनेसमैन की जिंदगी में तब क्या होता है, जब वह अचानक सब भूलने लगता है। कहानी जिस तरह मोड़ लेते हैं। वह बेहद दिलचस्प है। अभिषेक चौबे ने हंगामा है क्यों बरपा में दिग्गजों को शामिल किया है। एक गजल सिंगर (मनोज ) और पहलवान (गजराज) की जिंदगी क्या मोड़ लेती है, इसमें काफी दिलचस्प ट्विस्ट एंड टर्न्स हैं। दो किरदार ( गजराज राव और मनोज )ट्रेन में सफर कर रहे होते हैं और दोनों एक जगह एक पॉइंट पर आकर रुकते हैं, वह पॉइंट किस तरह कहानी को मोड़ती है, यह देखना मजेदार है। बहुरुपिया की कहानी एक मेकअप आर्टिस्ट( केके मेनन )की कहानी है, हर बार मेकअप के बाद कैसे वह उस किरदार को जीने लगता है। स्पॉटलाइट विक्रम अरोरा( हर्षवर्धन कपूर) किरदार के इर्द-गिर्द है, क्या होता है जब एक स्टार, धार्मिक नेता से मिलता है।

क्या है अच्छा
जो दर्शक सत्यजीत रे की फिल्मों से वाकिफ हैं, वह इस बात से भी वाकिफ होंगे कि रे अपनी फिल्मों में ह्यमुन इमोशन को खूबसूरती से दर्शाते थे, साथ ही सिनेमा का उनका जो लैंडस्केप है, वह भी शानदार रहता था। इस फिल्म में निर्देशकों ने उसे बरक़रार रखने की कोशिश की है। फ़िल्मी ग्रामर के साथ-साथ कहानी बोरिंग नहीं हुई है। निर्देशकों ने सत्यजीत के अप्रोच के साथ अपनी क्रिएटिविटी का भी एक्सपेरिमेंट किया है। कॉम्प्लेक्स कहानी होते भी एंगेजिंग है।

क्या है बुरा
चारों फिल्मों की अवधि थोड़ी कम की जा सकती थी।

अदाकारी
पुरुष प्रधान इन कहानियों में रघुवीर यादव बाजी मार ले जाते हैं। मनोज बाजपयी और गजराज राव की केमेस्ट्री जबरदस्त है। केके मेनन लम्बे समय के बाद टाइपकास्ट से निकले हैं। लेकिन सरप्राइज पॅकेज हैं हर्षवर्धन कपूर, आखिरकार उन्हें ऐसी फिल्म मिल गई है, जिसमें वह पूरी तरह से निखरे हैं। इसके बावजूद कि पूरी फिल्म पुरुषों के किरदार पर फोकस है। श्वेता, बिदिता, राधिका का काम शानदार है। चंदन रॉय सान्याल का काम बेहतरीन है।

वर्डिक्ट
लम्बे समय के बाद कुछ क्लासिक वर्क हिंदी में दर्शकों के सामने है, जिसमें सिनेमा का आनंद है और साहित्य का रस, सो दर्शक देखना पसंद करेंगे।

Review By: अनु वर्मा

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari