रामायण की ऐसे होती थी शूटिंग, तपती धूप में चलना पड़ता था पैदल, सीता बनी दीपिका चिखलिया ने साझा की पुरानी यादें
मुंबई (स्मिता श्रीवास्तव)। रामानंद सागर कृत टीवी धारावाहिक रामायण का पुन: प्रसारण दूरदर्शन पर शुरु हो गया है। 25 जनवरी, 1987 को शो का पहला एपिसोड टेलीकास्ट हुआ था। यह उस समय का सबसे महंगा शो हुआ करता था। अब जब यह दोबारा दूरदर्शन पर प्रसारित होने जा रहा है, धारावाहिक में सीता बनीं दीपिका चिखलिया, रावण बने अरविंद त्रिवेदी और रामानंद सागर के सुपुत्र प्रेम सागर ने इस मौके पर अपने यादगार सफर को पाठकों के लिए साझा किया।
चार-पांच बार स्क्रीन टेस्ट लिया थासुनहरे दौर को याद करते हुए बताती हैं, 'रामानंद सागर की टीम के साथ मैं पहले से काम कर रही थी। वह सीता की तलाश में थे। उन्होंने मेरा चार-पांच बार स्क्रीन टेस्ट लिया था। उन्हें लगा कि यह परफेक्ट सीता है। वह मुझे सीते बुलाते थे। उन्होंने मुझसे कहा था तुम्हें हमेशा सीता के तौर पर याद रखा जाएगा। मैं सोचती थी कि यह तो सीरियल है, लेकिन उनकी बात सच निकली। लोग आज भी हमें मुझे सीता के किरदार से पहचानते हैं।
तैयारी को रामायण की समरी दी गई थीदीपिका ने शुक्रवार रात मुंबई में आईनेक्स्ट के सहयोगी प्रकाशन दैनिक जागरण से चर्चा में कहा, किरदार की तैयारी को लेकर हम लोगों को रामायण की समरी दी गई थी। ताकि हमें समझ में आए की शो का फ्लो कैसा होगा। मैं अंग्रेजी मीडियम से प़ढ़ी हूं, तो मुझे अंग्रेजी में दी गई थी। हम लोग रोज शाम को सागर साहब के रूम में बैठते थे। वह हमें सीन समझाते थे। वह किरदार को निभाने के लिए हमें आजादी भी देते थे। वनवास के दौरान मैंने जो ड्रेस पहनी थी, पहले उसमें दुपट्टा था। आगे चलकर फिर मैंने नारंगी रंग की साड़ी पहनी थी। सागर साहब ने कहा था कि तुम्हें जिसमें आराम महसूस होता है, वह कपड़े पहनो। वनवास के दौरान पहनी गई उस साड़ी को मैंने अपने पास यादगार के तौर पर सहेज कर रखा है।
मुझे आर्टिफिशियल ज्वैलरी से एलर्जी थीदीपिका ने बताया, मुझे आर्टिफिशियल ज्वैलरी से एलर्जी थी। बड़ी ज्वैलरी पहने पर त्वचा में घाव उभर आते थे। ज्वैलरी निर्माता उसमें पीछे स्पंज लगाकर देते थे, ताकि वह मेरे शरीर में टच न हो। धारावाहिक में वनवास का शूट सबसे मुश्किल था। वनवास का सीक्वेंस शुरू होता है नदी को पार करने से। उसके लिए तपती धूप में रेत पर हमें बिना चप्पल 45 डिग्री तापमान में खड़े रहना पड़ा था। कहीं कोई छाया नहीं थी। पूरे पैर जल गए थे। उस जमाने में एक्टर को सपोर्ट करने के लिए कुछ था ही नहीं। सही मायनों में हमने परिश्रम किया है।
रेत पर बिना चप्पल 45 डिग्री में खड़े रहना थाधारावाहिक की लोकप्रियता और बने इतिहास पर कहा, धारावाहिक की लोकप्रियता का अहसास तब हुआ जब पांच-छह महीने में देश विदेश से कॉल्स आने लगे, इंटरव्यूज होने लगे। उसके बाद हमें एहसास हुआ कि हमने इतिहास रचा है। मुझे याद है कि एक प्रशंसक मेरे लिए रोज बेलपत्र लेकर आता था, क्योंकि मैं महादेव की पूजा करती थी। वह करीब चार-पांच साल तक दरवाजे के पास रखकर चले जाते थे। एक ने मेरी पेंटिंग बनाई थी। लोग हमें देख श्रद्धा से भर जाते थे।शो में एंटरटेनमेंट वैल्यू मत ढूंढिएगानेटफिलक्स और अमेजन के जमाने में रामायण के दोबारा प्रसारण के संबंध में दीपिका कहती हैं, अगर लोग इससे कुछ सीखें, तो अच्छी बात होगी। अगर लोग यह शिकायत करेंगे कि धीमा है, प्रोडक्शन वैल्यू कैसा है, तो वह अपना नजरिया है देखने का। शो में एंटरटेनमेंट वैल्यू मत ढूंढिएगा। अगर तुलसीदास की रामायण प़ढ़ते हैं, उसी हिसाब से रामायण को देखिएगा। सीखने की कोशिश करें। बच्चों के साथ बैठकर देखिएगा, ताकि उन्हें सीखने का भी मौका मिले। आप भी एंजॉय करेंगे।कोई शेड्यूल नहीं होता था : प्रेम सागर
वहीं, रामानांद सागर के बेटे प्रेम सागर बताते हैं, उस समय कोई शेड्यूल नहीं होता था। सभी कलाकार 24 घंटे के अलर्ट पर रहते थे। अगर पापा जी तीन बजे रात में सीन को लिख लेते थे तो कलाकार को तैयार होने के लिए कह दिया जाता था। कलाकार मेकअप करके तैयार हो जाते थे। दारा सिंह के मेकअप में तीन घंटे का समय लगता था। हजार जूनियर आर्टिस्ट को बंदर के किरदार में तैयार होना होता था। लिहाजा नारियल के खोखे के अंदरनी हिस्से में संगमरमर लगाया जाता था। उसे वह दांतों के अंदर पकड़ते थे।अहंकार नहीं करना चाहिए : अरविंदधारावाहिक में रावण बने अरविंद त्रिवेदी इस समय 82 वर्ष के हैं। शो के दोबारा प्रसारण से वह खासे उत्साहित हैं। वह बताते हैं, रामायण ने मुझे बहुत शोहरत और लोकप्रियता दी थी। शो की वजह से ही मैं सांसद चुना गया। मैं 1991-96 तक सांसद रहा। उस किरदार को निभाकर मैंने यही सिखा कि रावण के विनाश का कारण अहंकार बना था। इंसान को अहंकार नहीं करना चाहिए।