प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार की दो दिनी बांग्लादेश यात्रा में कई मिथक तोड़ दिए। मोदी सबसे पहले जशोरेश्वरी काली मंदिर गए। यह मंदिर कई साल से जीर्णशीर्ण हालत में होने के कारण बंद था पर जब बांग्लादेश की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ पर भारतीय प्रधानमंत्री को आमंत्रण मिला तो उन्होंने इस मंदिर के दर्शन करने की इच्छा जता दी। नतीजतन बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराकर कायाकल्प कर दिया।


प्रमोद भार्गव (जर्नलिस्ट)। जशोरेश्वरी काली मंदिर करीब 400 साल पहले बना था, लेकिन भारत- पाकिस्तान के बंटवारे के साथ ही मंदिर की हालत खस्ता होती चली गई। बावजूद श्रद्धालु यहां मां के दर्शन, माथा टेकने और मन्नत मांगने आते रहे। आत्मशुद्धि के लिए यहां नवरात्रि में पूजा-अर्चना भी होती है। यदि मोदी दर्शन की इच्छा नहीं जताते तो मंदिर यथास्थिति में बना रहता।हिंदू दलितों के मतुआ धर्म महासंघ के संस्थापक हरिचंद ठाकुर के स्मृति-स्थल गए मोदी


किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने अपनी बांग्लादेश यात्रा में पहली बार उस मिथक को तोड़ा, जिसके अंतर्गत मंदिर के दर्शन से छद्म धर्मनिरपेक्षता प्रभावित होने का डर बना रहता था। मोदी ने हिंदू दलितों के मतुआ धर्म महासंघ के संस्थापक हरिचंद ठाकुर के स्मृति-स्थल पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। यहां भी भारत का कोई नेता पहली बार पहुंचा है। मोदी ने तीस्ता एवं फेणी नदियों के साथ दोनों देशों के बीच बहने वाली 56 नदियों के जल-बंटवारे पर भी बातचीत की।तत्कालीन पीएम इंदिरा ने बांग्लादेश नाम का स्वतंत्र मुल्क बनवाया

मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी बांग्लादेश की धरती से याद किया। याद रहे शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग को बहुमत मिलने के बाद भी फौजी जनरल याह्या खां सत्ता सौंपने को तैयार नहीं थे। इसके बाद दमनचक्र में जब मानवता कराहने लगी, तब बांग्लादेशियों का यह आंदोलन आजादी की लड़ाई में बदल गया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैनिक हस्तक्षेप कर पूर्वी पाक को पाकिस्तान से अलग कर बांग्लादेश नाम का स्वतंत्र मुल्क बनवाया।ममता ने इस दौरे को बंगाल के चुनाव को जोड़कर देखानरेंद्र मोदी के मंदिर और मतुआ समुदाय के स्मारक पर जाने से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित कांग्रेस नेता शशि थरूर तिलमिला गए। थरूर ने तो मोदी पर बिना जानकारी हासिल किए यह आरोप लगा दिया कि उन्होंने बांग्लादेश की स्वर्णजयंती के मौके पर इंदिरा गांधी को याद तक नहीं किया, जबकि इस देश को अस्तित्व में लाने का काम श्रीमती गांधी ने ही किया था, लेकिन जब उनकी जानकारी में यह सच्चाई आई कि इंदिरा गांधी को मोदी ने याद किया तो उन्होंने क्षमा मांगकर अपनी गलती सुधार ली, पर ममता ने इस दौरे को बंगाल के चुनाव को जोड़कर देखा और यात्रा पर कई सवाल उठा दिए।मोदी के जशोरेश्वरी मंदिर के दर्शन को ममता मान रही हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण

दरअसल, मोदी के जशोरेश्वरी मंदिर के दर्शन को ममता हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण मान रही हैं, वहीं मतुआ समुदाय के मंदिर में मोदी के जाने और लोगों को संबोधित करने को चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन मान रही हैं। इन दोनों बिंदुओं पर उन्होंने चुनाव आयोग को शिकायत करने की बात भी कही है। मोदी के लौटते ही कट्टरपंथी मुस्लिमों ने हिंदू और मंदिरों पर जो हमले किए उससे यह तय भी हो गया कि इस्लामिक कट्टरता के आगे भारतीय उदारता लगभग व्यर्थ है, जबकि प्रधानमंत्री ने बांग्लादेश की यात्रा कर भारत-बांग्लादेश मैत्री को मजबूती दी है।विभाजन के साथ ही शूद्र हिंदुओं पर मुस्लिमों ने शुरू कर दिए थे अत्याचार
हरिचंद ठाकुर स्मारक ढाका से करीब 200 किमी दूर ओराकांडी में है। मतुआ धर्म की सबसे प्रमुख नेता वीणापाणि ने 2019 में मोदी से मुलाकात कर बांग्लादेश से भारत आए शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने की मांग की थी। इनकी संख्या दो करोड़ बताई जाती है। मतुआ दलित शूद्र समुदाय से हैं। भारत विभाजन के साथ ही इन शूद्र हिंदुओं पर मुस्लिमों ने अत्याचार शुरू कर दिए थे। तब लाभों मतुआ पूर्वी पाकिस्तान से भागकर पश्चिम बंगाल और असम के क्षेत्राें में बस गए थे। इनके गुरु प्रथम रंजन विश्वास भी 13 मार्च, 1948 को पलायन कर बंगाल के वनगांव में आ बसे। इस अत्याचार को रोकने के लिए जोगेंद्रनाथ मंडल ने सांप्रदायिक सद्भाव बनाने की कोशिशें भी कीं।हिंदुओं की आबादी 22-23 फीसदी से घटकर बामुश्किल 2 प्रतिशतइसी के फलस्वरूप इन्हें पाकिस्तान की पहली मुस्लिम सरकार में कानून और श्रम मंत्री भी बनाया गया, लेकिन कारगर परिणाम नहीं निकले तब मंडल का पाकिस्तान से मोहभंग हो गया और वह पलायन कर भारत आकर डाॅ. भीमराव अंबेडकर की रिपब्लिकन पार्टी में शामिल हो गए। इससे पता चलता है कि पाकिस्तान में मंत्री स्तर के हिंदू नेता को भी कोई महत्व नहीं मिल पाया। यही कारण रहा कि वहां हिंदुओं पर अमानवीय अत्याचारों का सिलसिला चलता रहा, नतीजतन बंटवारे के समय पाक में हिंदुओं की जो आबादी 22-23 फीसदी थी, वह वर्तमान में घटकर बामुश्किल 2 प्रतिशत रह गई है।editor@inext.co.in

Posted By: Satyendra Kumar Singh