सोनपुर मेले का आयोजन अमूमन कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर किया जाता है.
अंग्रेज़ी कैलेंडर के मुताबिक़ यह वक्त नवंबर से दिसंबर के बीच का होता है.जानवरों से लेकर थिएटर तक, रोज़मर्रा की ज़रूरत से लेकर मनोरंजन तक के साधन सोनपुर में खोजे जा सकते हैं.सोनपुर मेला पूरे देश में अपने थियेटरों के लिए भी जाना जाता है.मेले में प्रत्येक तरह के देशी-विदेशी कुत्तों की नस्ल ख़रीद-फ़रोख़्त के लिए मौजूद थी.सोनपुर के मेले में शिल्प कला का पैवेलियन भी देखा जा सकता है जिसके माध्यम से लोगों को पुरानी शिल्प कलाओं की जानकारी भी दी जा रही है.सोनपुर मेले के खान-पान की कई चीज़ों का ज़ायक़ा लिया जा सकता है. यहां 'चाट' की बिक्री भी ख़ूब हो रही है.
इसकी गुणवत्ता के बारे में जानने की किसी को कोई बहुत ज़्यादा दिलचस्पी नहीं मालूम देती है. सभी इसके चटकीले रंग और सजावट पर फ़िदा लगते हैं.
सोनपुर की सोनपापड़ी मेले का एक ख़ास आकर्षण है.मेले में आने वाले सोनपापड़ी ले जाना नहीं भूलते.
पंछियों का व्यापार भारत में प्रतिबंधित है. लेकिन सोनपुर मेले में यह धड़ल्ले से चलता हुआ देखा जा सकता है.
अब बाज़ बहुत कम देखने को मिलते हैं लेकिन सोनपुर में इसे भी बिकता हुआ देखा जा सकता है.
सोनपुर मेले में घोड़ों की माँग हमेशा रहती है.इस बार के मेले में बड़ी संख्या में आए अच्छी नस्ल के घोड़ों ने बिक्री का पिछला रिकार्ड तोड़ दिया है .
"ये ज़िंदगी के मेले दुनिया में कम ना होंगे, अफसोस हम ना होंगे" इस गाने की धुन पर नाचती एक लड़की.
सोनपुर मेले तरह तरह की पंछियों को बिकते हुए देखा जा सकता है. ये और बात है कि उनमें से कई पंछियों की ख़रीद बिक्री पर रोक लगी हुई है.
Posted By: Satyendra Kumar Singh