जब ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर फ़िल ह्यूज़ की क्रिकेट बॉल लगने से मौत हुई तब उसका सदमा यह खेल खेलने वाले हर व्यक्ति ने महसूस किया.


खुद 13 साल तक क्रिकेट खेलने के नाते मैं जानता हूं कि 'चलो उसका सिर फोड़ दो!', यह मैदान पर किसी फ़ील्डर का बॉलर को बोले जाना वाला एक बेहद सामान्य वाक्य है.लेकिन अब हम जानते हैं कि एक क्रिकेट बॉल दरअसल कितना नुक़सान बहुंचा सकती है, तो यह कितना सही है? और क्या यह पहले कभी था भी?'निरीक्षण का समय'एशेज़ के पिछले सीज़न के पहले टेस्ट में सबसे ज़्यादा साफ़ और बार-बार की जाने वाली स्लेजिंग (विरोधी खिलाड़ी पर छींटाकशी) क्लार्क ने की.ह्यूज़ को दी गई अपनी कमाल की श्रद्धांजलि में क्लार्क ने क्रिकेट की भावना की बात की जो हम सबको एक साथ जोड़ती है.उन्होंने ह्यूज़ की इस खेल का सरंक्षक होने की भावना के बारे में बात की. उन्होंने कहा, "हमें अवश्य ही इसे सुनना चाहिए, हमें इसकी सराहना करनी चाहिए, हमें इससे सीखना चाहिए."


ऐसा लगता था कि क्लार्क स्वीकार कर रहे हैं कि अब क्रिकेट को अलग तरह से खेला जाना चाहिए, कम से कम ज़्यादा सम्मानपूर्वक.जो लोग मैदान में गाली-गलौज ख़त्म करने की उम्मीद करते हैं उन्होंने तो इसकी व्याख्या इसी तरह की.

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हालिया टेस्ट शृंखला में गालियां और भद्दे इशारे चाहे जिसने भी शुरू किए हों- तथ्य यह है कि कुछ भी नहीं बदला है और यह निराशाजनक है.आईसीसी अगले महीने विश्व कप तक नए, सख़्त स्लेजिंग विरोधी नियम लागू करने जा रहा है. मुझे यकीन है कि यह भी उतने ही सख़्त होंगे जितने कि थ्रोइंग को साफ़ करने वाले थे.यह तो आने वाले वक्त में देखा जाएगा लेकिन यह शर्मनाक है कि खुद खिलाड़ियों ने इसके लिए उत्साह महसूस नहीं किया.

Posted By: Satyendra Kumar Singh