पेट्रोल-डीजल को वस्तु एवं सेवा कर जीएसटी के दायरे में भी लाने से इनकी कीमत कम नहीं होगी। अधिकारियों का कहना है कि जीएसटी के दायरे में लाने के बाद लोगों को पेट्रोल-डीजल पर और अधिक कीमत चुकानी पड़ सकती है।

राज्यों की तरफ से भी वैट लगाया जा सकता है
नई दिल्ली (पीटीआई)।
पेट्रोल-डीजल को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाने से कीमतों में बड़ी कटौती की उम्मीद कर रहे लोगों को झटका लग सकता है। शीर्ष स्तर के एक अधिकारी का कहना है कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की स्थिति में इन पर 28 प्रतिशत अधिकतम टैक्स के साथ-साथ राज्यों की तरफ से कुछ स्थानीय बिक्री कर या मूल्य वर्धित कर (वैट) भी लगाया जा सकता है।
पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाना राजनीतिक फैसला
अधिकारी ने कहा कि दोनों ईधन को जीएसटी के दायरे में लाने से पहले केंद्र सरकार को यह भी सोचना होगा कि क्या वह इन पर इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ न देने से हो रहे तकरीबन 20,000 करोड़ रुपये का मुनाफा छोड़ने को तैयार है। पेट्रोल, डीजल, प्राकृतिक गैस और कच्चे तेल को जीएसटी से बाहर रखे जाने के कारण इन पर इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलता है। जीएसटी के क्रियान्वयन से जुड़े इस अधिकारी ने कहा, 'दुनिया में कहीं भी पेट्रोल और डीजल पर शुद्धजीएसटी नहीं लगाया जाता है। भारत में भी जीएसटी के साथ वैट लगाया जाएगा।' उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाना राजनीतिक फैसला होगा और केंद्र एवं राज्यों को सामूहिक रूप से इस पर निर्णय लेना होगा।
मुंबई में पेट्रोल पर सबसे ज्यादा लगाया जाता है वैट
फिलहाल केंद्र की ओर से पेट्रोल पर 19.48 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 15.33 रुपये प्रति लीटर उत्पाद शुल्क लगाया जाता है। इसके अलावा राज्य सरकारें इन पर वैट लगाती हैं। इसकी सबसे कम दर अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में है। वहां इन दोनों ईधन पर छह प्रतिशत बिक्री कर लगता है। मुंबई में पेट्रोल पर सबसे ज्यादा 39.12 प्रतिशत वैट लगाया जाता है। डीजल पर सबसे अधिक 26 प्रतिशत वैट तेलंगाना में लगता है। दिल्ली में पेट्रोल पर वैट की दर 27 प्रतिशत और डीजल पर 17.24 प्रतिशत है। पेट्रोल पर 45-50 प्रतिशत और डीजल पर 35-40 प्रतिशत टैक्स लगता है।

पेट्रोल-डीजल को अधिकतम 28 प्रतिशत के स्लैब में रखने पर भी वैट

अधिकारी ने कहा कि जीएसटी के तहत किसी वस्तु या सेवा पर कुल कराधान लगभग उसी स्तर पर रखा गया है, जो पहली जुलाई, 2017 से पहले केंद्र और राज्य सरकार के विभिन्न शुल्कों को मिलाकर रहता था। इसके लिए किसी उत्पाद या सेवा को पांच, 12, 18 और 28 प्रतिशत के चार टैक्स स्लैब में से किसी एक में रखा जाता है। पेट्रोल-डीजल को अधिकतम 28 प्रतिशत के स्लैब में रखने पर भी वैट या अन्य शुल्क नहीं लगाने पर केंद्र और राज्यों को राजस्व में बड़ा नुकसान होगा।

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Posted By: Mukul Kumar