Movie Review: हर भारतीय को गर्व का अहसास कराने वाली फिल्म 'परमाणु'
कहानी :
1998 मे कैसे सबकी आंखों में धूल झोंक कर भारत ने किए परमाणु, टेस्ट यही है फिल्म की कहानी। समीक्षा :मुंबई। फिल्म निर्देशक अभिषेक बिना आपका ज्यादा समय बर्बाद किये हुए आपको सीधे मेन मुद्दे पर ले आते हैं, अच्छी स्ट्रेटेजी है पर फिर वे बहुत सारा वक्त आपको परमाणु शक्ति के बारे में विभिन्न तरीके से बताने में लगाते हैं वहीं ये फिल्म डिस्कवरी चैनल के एपिसोड की तरह साउंड करने लगती है। मन मे हजार सवाल और उठते हैं जो फिल्म के मेन मुद्दे से ध्यान भटका देते है, जैसे, क्या फायदा ऐसी परमाणु शक्ति का जिसका डर ही नही हमारे शत्रु को। फिल्म में ओरिजिनल फुटेज फिल्म को डॉक्युमेंटरी जैसा फील देने लगती है, पर देशभक्ति में कोई कमी नहीं होने देते हमारे राइटर लोग, वो लगे ही रहते है कि आपको याद रहे कि आप भारत को गौरवान्वित करने वाली घटना का रूपांतरण देख रहे है। फिल्म के वीएफएक्स ठीक हैं और फिल्म का आर्ट डायरेक्शन काफी अच्छा है।
सबसे पहले तो कुछ किरदार बस भीड़ बढ़ाने के लिए ही हैं, इनमे सबसे पहले नाम लेंगे डायना पेण्टी के किरदार का, चाहे कंडीशन कैसी भी हो इनके बालों का कंडिशनर ख़राब नहीं होता, वहीं मूंछ नहीं तो कुछ नहीं, पता नहीं क्यों जॉन ने वो अजीबोगरीब मूंछ लगा रखी है, जिसको देखकर गोलमाल के रामप्रसाद दशरथप्रसाद शर्मा का मूछ मोनोलॉग याद आता है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर बहुत लाउड है।
एक्टिंग : जॉन की मूंछ उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाती उल्टा, इस फिल्म को देखने का अगर कोई बड़ा कारण है तो वो जॉन ही हैं, वो बड़ी सिंसेरली अपना काम करते है और फिल्म को देखने लायक बनाते है। डायना का किरदार जबरन फिल्म में ठूसा हुआ है। बमन इरानी कुछ ज्यादा ही एग्रेसिव तरीके से अपना किरदार निभाते है, जो कि काफी अच्छी बात है।
कुलमिलाकर ये फिल्म नैशनिलिस्म की चिंगारी को आग में बदलने के लिए भले ही बनाई गई हो पर एक समय पर आकर एक प्रोपेगंडा मूवी की तरह साउंड करने लगती है। फिर भी एक बार तो देख ही सकते है, जॉन अब्राहम के बढ़िया परफॉर्मन्स के लिए।रेटिंग : 3/5 Reviewed by:Madhukar Pandeyटि्वटर : madhukarpandey
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