Panchayat TVF Series Review: रियल एक्टर्स की अदाकारी से सजी, मस्ती भरी ये देहाती कहानी
Web series का नाम : Panchayat TVF
कलाकार : जीतेंद्र कुमार, नीना गुप्ता, रघुबीर यादव, फैसल मलिक, चंदन रॉय, शशि वर्मा
लेखक : चंदन कुमार, एपिसोड संख्या : 8 एपिसोड, निर्देशक : दीपक कुमार मिश्रा
Panchayat Review: Lockdown India के दौरान अगर घर में बैठे-बैठे थक गये हैं, बैठे-बैठे क्या करोगे, करना है कुछ काम तो शुरू कर दीजिये देखना Amazon prime video पर आई नयी वेब सीरिज “पंचायत”। अब आप हू सोच रहे होंगे कि ई घर बैठे-बैठे हम पंचायत बतिआने का बात काहे कर रहे हैं, तो आपको बता दें, ई पंचायत गॉसिप वाला पंचायत नहीं है। अलगे तरह का पंचायत है, जिसको देखने में आपको बड़ी मजा आएगा। बड़ा-बड़ा शहर में रहते हुए आपको गर्मी छुट्टी का याद दिला देगा, जब नानी-दादी के घर जाकर खूब मस्ती करते थे गाँव-खेत में। थोड़ा-थोड़ा आपको शाहरुख़ खान का स्वदेश भी याद आएगा। काहे से कि इ शो में इतना अच्छा से गाँव का दुनिया दिखाया गया है। हाल में किसी फ़िल्मी बिग बजट में भी इतना अच्छे से नहीं दिखाया गया होगा। हम ऐसा काहे कह रहे हैं, आप एक बार रिव्यू पढ़ेंगे तो खुद ही समझ लेंगे। अब बात हो रही है उत्तर प्रदेश के एक गाँव की तो, हम भी सोचे कि काहे नहीं अपने ठेठ भाषा में इस बार का रिव्यू दिया जाये। पढ़ें पूरा रिव्यू।
क्या है कहानी
असली भारत तो गांव में ही बस्ता है। बस इसी बात पर शो बना है पंचायत। कहानी उत्तर प्रदेश के फुलरा ग्राम पंचायत का है। एकदम शुद्ध देहात है। बिजली-पानी का अब भी टाइम फिक्स है कि 24 घंटा नहीं रहेगा। 12 लाख का पैकेज का सपना देखने वाला लड़का अभिषेक त्रिपाठी ( जीतेंद्र) अपने दोस्त जैसा कॉर्पोरेट का नौकरी चाहता है, लेकिन उसको एक ग्राम पंचायत में सचिव का नौकरी मिल जाता है। बेगर्स हैव नो चोइस वाला हाल है लड़के के साथ, तो तय करता है कि कुछ दिन नौकरी कर लेगा। वह फुलरा पहुंचता है, गाँव के प्रधान का सचिव बन कर। वहां पहुँच कर उसको पता चलता है कि मंजू देवी( नीना गुप्ता) जो कि प्रधान चुनी गई थीं, वो तो केवल नाम भर की थी। असली में चुनाव जीतने के बाद सारा काम तो उनके पति (रघुवीर यादव ) लेते हैं। उसका दिमाग का फ्यूज जलता है। अभिषेक के लिए यह नौकरी किसी बिग बॉस के घर और टास्क से कम नहीं लगता, लेकिन उसका दोस्त समझाता है कि कैट का एग्जाम क्रैक करोगे तो इंटरव्यू के दौरान ये वाला नौकरी का एक्सपीरियंस वर्क करेगा। अभिषेक इस चक्कर में अपने आप पर होने वाला टॉर्चर सहने को तैयार हो जाता है। उसको यह बिग बॉस का टास्क समझ कर ही झेलने लगता है। इसी क्रम में गांव का एक से बढ़ कर एक कहानी, किस्सा, लोग, वहां का कल्चर उसके सामने आता है, जिसके बारे में वह कभी सोच भी नहीं सकता था। इस सीरिज के लेखक ने आठ एपिसोड में बहुत ही बढ़िया ढंग से गांव की राजनीति, वहां के लोगों के व्यवहार को गांव की अपनी केमेस्ट्री पर प्रकाश डाला है। इस शो की रौनक ही शो के किरदार और यहां का गंवईपन है, लोगों की मासूमियत इतना टच करती है कि इमोशनल होने पर मजबूर कर दे। एक तरफ अभिषेक जिसको लाखों का पैकेज चाहिए और इसलिए वह ग्राम पंचायत में काम करते हुए भी तय करता है कि कैट निकालेगा, वहीं दूसरी तरफ गांव जहाँ, 100 रुपये अब भी बहुत है। अब भी बाइक का सवारी, टीवी, कम्प्युटर, चक्का वाला और गद्देदार कुर्सी लोगों के लिए बड़ा सपना है। शो के लेखक चंदन ने बेहद बारीकी से गाँव की सभ्यता को दर्शाया है। इस बीच एक बड़ी बात यह भी दिखाई है कि कैसे महिलाओं के नाम पर वोट लेकर उन्हें घर पर बिठा दिया जाता है और फिर घर के पुरुष ही निर्णय लेते हैं।
इस शो को देखते हुए आपको शरद जोशी की लेखनी, रेणु के गाँव पर रिपोर्तार्ज कहीं-कहीं श्रीलाल शुक्ल और हरिशंकर परसाई के सटायर की छाप नजर आती है।
क्या है सबसे अच्छा
कुछ भी फ़िल्मी नहीं है। जबरन का अभिषेक त्रिपाठी का हृदय परिवर्तन होते नहीं दिखाया गया है। ओरिजिनल है, इसलिए टच करता है। लेखक ने यह भी साबित किया है कि ऐसी कहानी दिखाते हुए गाली-गलौज न दिखा कर भी और खाली गन्दी राजनीति का खेल नहीं दिखा कर भी अच्छे से कहानी रचा जा सकता है। जरूरी नहीं कि गाँव है तो विलेन रंगबाज ही हो। यहाँ विलेन परिस्थिति को दिखाया गया है। शो का खास बात ई भी है कि एक-एक किरदार का ग्राफ सही तरीके से दिखाया गया है, फिर वह विकास का हो या उप प्रधान का। बाकी के गेस्ट अपीयरेंस वाला किरदार सब भी दिलचस्प तरीके से किया गया है। शो में कई सारे लेयर्स और कंट्रास्ट है। प्रधान दिल का अच्छा है। पूरे गाँव का सोचता है। पत्नी मंजू से खूब डरता भी है। लेकिन पूरे गाँव में उसकी तूती बोलती है। लेखक ने अच्छे संवाद और घटनाएं बनाई हैं, जो एक ही वक़्त पर गुदगुदा भी जाती हैं और इमोशनल भी कर जाती हैं। निर्देशक ने भी कहानी के हिसाब से बनावटी गाँव नहीं बनाया है। जो जैसा है वैसा दिखाया है,
क्या है बुरा
मंजू देवी के किरदार को और अधिक स्पेस मिलना चाहिए था। किरदार का रुआब वगेरह अच्छा है, मगर किरदार को विस्तार देते तो नीना गुप्ता जैसी अदाकारा और दमदार अभिनय करतीं।
अभिनय
जीतेंद्र कुमार का जवाब नहीं है। एक के बाद एक बढ़िया परफोर्मेंस दे रहे हैं। एक कन्फ्यूज्ड और महत्वकांक्षी युवा के रूप में एकदम फिट बैठे हैं। रघुबीर यादव का अब क्या ही कहें, एकदम बेस्ट से भी बेस्ट परफॉर्म किये हैं। अपने एक्सप्रेशन और मासूमियत से एक बार फिर से दिल जीत लिए हैं। नीना गुप्ता तो और आजकल चार चाँद लगा रही हैं अपने काम में। जबरदस्त एक्टिंग। चंदन रॉय जिसने विकास का किरदार निभाया है, वह अच्छी खोज हैं। फैसल मलिक का उप प्रधान वाला किरदार भी खूब निखर कर आया है।एकदम रम कर अपने किरदार को निभाया है। शशि वर्मा गेस्ट अपीयरेंस में आते हैं। मास्टर बन कर, लेकिन कहानी में उनका किरदार बड़ा ट्विस्ट लाता है और मास्टर जी के रूप में शशि वर्मा ने सधा काम किया है।
वर्डिक्ट
घर में बैठ कर साइंस, क्राइम और थ्रिल वगैरह से बोर हो गये हैं तो इससे अच्छा विकल्प नहीं हो सकता। एकदम लाइट हार्टेड कॉमेडी है और खूब मजा देगी।