मुझे लगता है कि मेरा शरीर एक पिंजड़े या बोतल जैसा है जिसमें एक बड़ा शक्तिशाली सिंह कैद है और वह जन्मों- जन्मों से सोया हुआ था लेकिन आपके छेड़ने से वह जाग गया है। वह भूखा है और पिंजरे से मुक्त होने के लिए बड़ा बेचैन है। दिन में अनेक बार वह बौखला कर हुंकार मारता गर्जन करता और ऊपर की ओर उछलता है। इसके बाद मैं एक अजीब नशे व मस्ती में डूब जाता हूं। फिर वह सिंह जरा शांत होकर कसमसाता चहलकदमी करता व गुर्राता रहता है और फिर कीर्तन में या आपके स्मरण से वह मस्त हो कर नाचता भी है! ऐसा क्यों है?


शुभ हो रहा है! जैसा होना चाहिए, वैसा हो रहा है। इससे भयभीत मत होना। इसे होने देना। इसके साथ सहयोग करना। एक अनूठी प्रक्रिया शुरू हुई है जिसका अंतिम परिणाम मुक्ति है। हम निश्चित ही शरीर में कैद हैं। सिंह पिंजड़े में बंद है! बहुत समय से बंद है, इसलिए सिंह भूल ही गया है अपनी गर्जना को। बहुत समय से बंद है और सिंह सोचने लगा है कि यह पिंजड़ा ही उसका घर है। इतना ही नहीं, सोचने लगा है कि मैं पिंजड़ा ही हूं। चोट करनी है! उसी के लिए तुम मेरे पास हो कि मैं चोट करूं और तुम जगो। ये वचन जो मैं तुमसे बोल रहा हूं सिर्फ वचन नहीं हैं, इन्हें तीर समझना, ये छेदेंगे तुम्हें।
कभी तुम नारज भी हो जाओगे मुझ पर क्योंकि सब शांत चल रहा था, सुविधापूर्ण था, और चैनी खड़ी हो गई लेकिन बे जागने का और कोई उपाय नहीं, पीड़ा से गुजरना होगा। जब भीतर की ऊर्जा उठेगा तो शरीर राजी नहीं होता उसे झेलने को। शरीर उसे झेलने को बना ही नहीं है। शरीर की सामर्थ्य बड़ी छोटी है, ऊर्जा विराट है। जैसे कोई किसी छोटे अपान में पूरे आकाश को बंद करना चाहे तो जब ऊर्जा जगेगी, तो शरीर में कई उत्पात शुरू होंगे। सिर फटेगा। कभी—कभी तो ऐसा होता है कि पूर्ण ञ्जरूाान के बाद भी शरीर में उत्पात जारी रहते हैं। ञ्जरूाान की घटना के पहले तो बिलकुल स्वाभाविक है, क्योंकि शरीर राजी नहीं है। जैसे जिस बिजली के तार में सौ कैंडल की बिजली दौड़ाने की क्षमता हो, उसमें हजार कैंडल की बिजली दौड़ा दो, तो तार झनझना जाएगा, जल उठेगा! ऐसे ही जब तुम्हारे भीतर ऊर्जा जगेगी जो सोयी पड़ी थी, प्रगट होगी तो तुम्हारा शरीर उसके लिए राजी नहीं है। शरीर तुम्हारा भिखमंगा होने के लिए राजी है, सम्राट होने को राजी नहीं है। शरीर की सीमा है, तुम्हारी कोई सीमा नहीं है। झकझोरे लगेंगे, आंधिया उठेंगी। रुझान की घटना के पहले, समाधि के पहले तो ये झकझोरे बिलकुल स्वभाविक हैं। कभी- कभी ऐसा भी होता है कि समाधि भी घट जाती है और झकझोरे जारी रहते हैं, क्योंकि शरीर राजी नहीं हो पाता। इससे घबराना मत। ये समाधि के आने की पहली खबरे हैं। ये समाधि के पहले चरण हैं। इन्हें सौभाग्य मानकर राजी हो जाओगे, तो शीघ्र ये धीरे- धीरे शांत हो जाएंंगे और जैसे- जैसे शरीर इनके लिए राजी होने लगेगा, सहयोग करने लगेगा, वैसे- वैसे शरीर की पात्रता और क्षमता बढ़ जाएगी।- ओशो

Posted By: Vandana Sharma