जो सीढ़ी ऊपर ले जाती है वह नीचे भी ला सकती है। सीढ़ी दोनों तरफ चढ़ी जा सकती है। कोई आदमी चाहे तो सीढ़ी से ऊपर चला जाए और चाहे तो सीढ़ी से नीचे आ जाए...


feature@inext.co.inKANPUR: एक मित्र ने पूछा है कि आपने पहले दिन की चर्चा में कहा कि समाजवाद मनुष्य को पशु बना देता है, तो उन मित्र का कहना है कि आदमी तो आज पशु से भी बद्तर हो गया है इसलिए अगर आदमी पशु भी बन जाए तो हर्ज क्या है?


इस संबंध में दो-तीन बातें समझनी उपयोगी हैं। पहली बात तो यह है कि आदमी पशु से भी बद्तर बन जाए, तब भी आदमी है। और पशु से बद्तर बनने की क्षमता भी आदमी की क्षमता है, पशु की क्षमता नहीं है और आदमी क्योंकि पशु से बद्तर बन सकता है, इसलिए देवताओं से श्रेष्ठ भी बन सकता है। ये दोनों उसकी क्षमताएं हैं। पशु के पास दोनों क्षमताएं नहीं हैं। जो सीढ़ी ऊपर ले जाती है, वह नीचे भी ला सकती है। सीढ़ी दोनों तरफ चढ़ी जा सकती है। कोई आदमी चाहे तो सीढ़ी से ऊपर चला जाए और कोई आदमी चाहे तो सीढ़ी से नीचे आ जाए, लेकिन ये सीढ़ी की दोनों क्षमताएं एक ही साथ होती हैं।अगर हम ऐसा सोचते हों कि मनुष्य सिर्फ ऊपर ही चढ़ सके, अगर ऐसी सीढ़ी हो, तो फिर मनुष्य की स्वतंत्रता न रह जाएगी। वह नीचे भी उतर सकता है, यह भी उसकी स्वतंत्रता है।

पशु के जीवन में अच्छा-बुरा कुछ नहीं होतापशु परतंत्र है; अच्छा है तो परतंत्र है, बुरा है तो परतंत्र है। पशु के जीवन में न तो कुछ अच्छा है, न कुछ बुरा है। अच्छा और बुरा वहां होता है जहां चुनाव है, जहां चुनाव करने की शक्ति है। अगर कोई मनुष्य पशु से भी बद्तर है, तो वह मनुष्य देवताओं से श्रेष्ठ हो सकता है इसीलिए पशुओं से बद्तर हो सका है। मैं किसी मनुष्य का पशु बनना पसंद न करूंगा, क्योंकि पशु बनने का मतलब यह है कि फिर न तो पशु से बद्तर बन सकेंगे आप और न फिर देवताओं से श्रेष्ठ बन सकेंगे आप। फिर तो पशु से और बेहतर मशीन है। पशु बुरा तो नहीं कर सकता, अच्छा नहीं कर सकता; लेकिन पशु अपने को दुख पहुंचाने योग्य कुछ कर सकता है, सुख पहुंचाने योग्य कुछ कर सकता है। मशीन वह भी नहीं कर सकती। अगर हमें सारी ही दिक्कतों के बाहर हो जाना है तो हमें मशीन हो जाना अच्छा है। अपनी दिव्य क्षमता को पहचानने का प्रयास करें : साध्वी भगवती सरस्वतीपरशुराम जयंती 2019 : इस मुहूर्त में करें पूजन, अधूरे काम होंगे पूरे

मनुष्य के पशु होने की क्षमता बड़ी आध्यात्मिक शक्ति हैसमाजवाद पशु ही नहीं बनाएगा, समाजवाद मूलत: आदमी को मशीन बनाने की कोशिश है। मैं इस बात से राजी नहीं हो सकता हूं। मैं मानता हूं कि मनुष्य के पशु होने की क्षमता उसकी बहुत बड़ी आध्यात्मिक शक्ति है। उससे विपरीत भी वह कर सकता है, दोनों के लिए स्वतंत्र है और दोनों के लिए सदा स्वतंत्र रहना चाहिए। जिस दिन आदमी अच्छा ही हो सकेगा, बुरा न हो सकेगा, उस दिन अच्छे होने में भी आनंद समाप्त हो जाएगा। एक छोटा बच्चा सरल दिखाई पड़ता है, निर्दोष दिखाई पड़ता है। लेकिन मैं इस छोटे बच्चे की निर्दोषता और सरलता की तारीफ नहीं कर सकता, क्योंकि बच्चा अभी जवान होगा और बुरे होने की क्षमता उसमें आएगी। लेकिन जब कोई बूढ़ा आदमी सरल और निर्दोष हो, तब मैं तारीफ करता हूं।

Posted By: Vandana Sharma