म्यांमार: वो अकेला शख्स जो सुलझा सकता है रोहिंग्या संकट
म्यांमार की सेना पर सुनियोजित तरीके से रोहिंग्या मुसलमानों के जातीय नरसंहार के आरोप लग रहे हैं।
शनिवार को जनरल मिन ऑन्ग लैंग ने अपने फ़ेसबुक पेज पर म्यांमार के लोगों और मीडिया से रोहिंग्या मुसलमानों के मुद्दे पर एक होने की अपील की। जातीय समूहजनरल लैंग ने कहा कि 'चरमपंथी बंगालियों' से 93 झड़पों के बाद सेना ने अपनी कार्रवाई शुरू की। वे 'रोहिंग्या चरमपंथियों' को 'चरमपंथी बंगाली' कह रहे थे।बकौल जनरल मिन ऑन्ग लैंग 'रोहिंग्या कभी भी एक जातीय समूह नहीं रहे हैं।'म्यांमार के जनरल अपनी सेना के बचाव में ऐसे वक्त में उतरे हैं जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोहिंग्या मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसक कार्रवाई की आलोचना हो रही है और बांग्लादेश को मजबूरन हज़ारों शरणार्थियों को पनाह देना पड़ा है।म्यांमार की सेना का कहना है कि उत्तरी रखाइन में उसकी कार्रवाई 25 अगस्त को पुलिस थानों पर रोहिंग्या विद्रोहियों के हमले के बाद शुरू हुई।
उन्होंने कहा, जनरल मिन ऑन्ग लैंग म्यांमार में वो अकेले शख़्स हैं जो रोहिंग्या गांवों में हमले कर रहे सैनिकों को रुकने का आदेश देने का अधिकार रखते हैं।
ब्रितानी अख़बार 'द गार्डियन' ने हाल ही में अपने एक संपादकीय में लिखा कि रोहिंग्या लोगों पर हो रहे अत्याचार को आंग सान सू ची नहीं रोक सकतीं।अख़बार के मुताबिक़, "रखाइन में सेना ने कमान संभाल रखी है और चुनाव में जबर्दस्त जीत हासिल करने के बावजूद सू ची की सरकार के पास सुरक्षा का जिम्मा नहीं है। वे सत्ता में जरूर हैं लेकिन उनके पास केवल बयान देने का नैतिक हथियार है। वे सैनिक कार्रवाई रोकने के लिए म्यांमार में जनमत तैयार कर सकती हैं।"अख़बार लिखता है, "अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समर्थन का फ़ायदा उठाने वाला एक सनकी जनरल सू ची के असर को खारिज नहीं कर सकता है। वे अपने विदेशी समर्थकों का इस्तेमाल म्यांमार की सेना पर दबाव डालने के लिए कर सकती हैं।"International News inextlive from World News Desk