लो आ गई मस्ती की पाठशाला
उनके मुताबिक ये एक ऐसा स्कूल होगा जिसमें हर समय एक शिक्षक ऑनलाइन रहेगा लेकिन सारी व्यवस्था छात्र खुद ही संभालेंगे. फरवरी में लॉस एंजिलिस में हुई टैक्नोलॉजी, इंटरटेनमेंट एंड डिजाइन (टैड) कांफ्रेंस में उन्हें क्लाउड स्कूल स्थापित करने के लिए दस लाख डॉलर का कोष दिया गया.एडिनबरा में टैडग्लोबल कांफ्रेंस में उन्होंने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी कि वो इस कोष का इस्तेमाल कैसे करेंगे और क्लाउड स्कूल कैसा होगा. उन्होंने कहा, “क्लाउड स्कूल असल में ऐसा स्कूल है जिसमें शिक्षक शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं रहेंगे. हमें इसकी जरूरत इसलिए है कि कई स्थानों पर शिक्षक नहीं जा सकते.” शुरुआत
शुरुआत में उनकी पांच क्लाउड स्कूल खोलने की योजना है जिनमें से तीन भारत में और दो ब्रिटेन में होंगे. प्रोफेसर मित्रा की योजना अगले चार महीने में पूर्वी भारत के दूरदराज के एक गांव कोराकाटी में एक स्कूल शुरू करने की है. ये स्कूल परंपरागत स्कूलों से पूरी तरह अलग होगा.इस क्लास में कम्प्यूटर लगे होंगे और एक विशाल स्क्रीन होगी. शिक्षक स्काइप के माध्यम से बच्चों को शिक्षा देंगे. ये शिक्षक प्रोफेसर मित्रा के ‘क्लाउड ग्रेनी’ प्रोग्राम से लिए जाएंगे जो ब्रिटेन और भारत में पहले से चल रहा है.
‘क्लाउड ग्रेनी’ प्रोग्राम में ब्रिटेन में सेवानिवृत्त लोग स्काइप के माध्यम से भारत में कई यूथ क्लबों से जुड़ते हैं और कई तरह की गतिविधियों के बारे में जानकारी देते हैं. हालांकि क्लाउड स्कूल में उनकी क्या भूमिका होगी ये स्पष्ट नहीं है. खुद प्रोफेसर मित्रा भी कहते हैं, “मुझे पता नहीं है कि वे क्या करेंगे.” टाइमटेबल उनके मुताबिक इस परियोजना की सबसे अहम बात ये है कि ये बच्चों को खुद संगठित होने का मौका देगा. इसका न तो कोई टाइमटेबल होगा और न ही कोई पाठ्यक्रम. कैसे पढ़ना है ये बच्चों पर निर्भर करेगा.उन्होंने कहा, “हम पहले दिन 300 बच्चों को आने देंगे और वे जमकर उत्पात मचाएंगे. लेकिन धीरे-धीरे वे खुद ही संगठित होना सीख लेंगे.” इन स्कूलों की अवधारणा होल इन द वाल कम्प्यूटर्स से ली गई है जिन्हें प्रोफेसर मित्रा ने 1999 में भारत में झुग्गियों में स्थापित किया था.इसमें बिना किसी निर्देश के बच्चों को कम्प्यूटर दिए गए थे और ये उन पर छोड़ दिया गया था कि वे खुद इसके बारे में जाने. इसके परिणामों से प्रोफेसर मित्रा उत्साहित थे. उनको उम्मीद है कि क्लाउड स्कूलों में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिलेगा. नियम
उन्होंने कहा, “पहले कुछ हफ्ते तो बच्चे गेम्स पर ही चिपके रहेंगे. इसके बाद एक बच्चा कम्प्यूटर पर पेंट को खोजेगा और बाकी सभी बच्चे उसकी नकल शुरू कर देंगे. चार महीने बाद वे गूगल को ढूढ़ लेंगे.” बच्चों को शुरुआत में शिक्षकों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाएगी लेकिन कुछ दिन बाद वे एक विशाल स्क्रीन पर नजर आएंगे.प्रोफेसर मित्रा ने कहा, “शिक्षक बड़ी स्क्रीन पर नजर आएंगे क्योंकि ये बच्चों के लिए जरूरी है. यह देखना दिलचस्प होगा कि वे कैसे प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं.”स्कूल में केवल एक ही नियम होगा और वो होगा इसे बंद करने का समय. उन्होंने कहा, “सूर्यास्त के समय स्कूल बंद हो जाएगा नहीं तो सारी मम्मियां मेरे पीछे पड़ जाएंगी.”प्रोफेसर मित्रा इस बारे में कोराकाटी गांव के बच्चों की माँओं से बात कर चुके हैं लेकिन उनमें से अधिकांश इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि ऐसे स्कूल से प्रोफेसर साहब क्या हासिल करना चाहते हैं. उन्होंने कहा, “एक विचार ये भी था कि बच्चों को भूत पढ़ाएंगे." ऑनलाइन स्कूल
इस बीच एमआईटी के एक प्रोफेसर ने दुनिया के गरीब हिस्सों में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयी शिक्षा देने की योजना बनाई है. प्रोफेसर अनंत अग्रवाल के ऑनलाइन स्कूल एडएक्स में पहले ही दस लाख छात्र पंजीकरण करवा चुके हैं. एडएक्स एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है जो दुनिया के कुछ नामी गिरामी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम सिखाता है.उन्होंने कहा कि इस गैर लाभकारी वेबसाइट को शुरू करने का मकसद शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाना है. प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा, “शिक्षा में पिछले 500 सालों से कोई बदलाव नहीं आया है. हम अब भी बच्चों को सुबह नौ बजे मवेशियों की तरह क्लासरूम में ठेल देते हैं."कोर्स विकसित देशों में ये मॉडल कुछ हद तक काम कर सकता है लेकिन दुनिया के अधिकांश हिस्सों में कुछ अलग करने की जरूरत है. एडएक्स प्लेटफॉर्म से 27 विश्वविद्यालय जुड़ चुके हैं और वे कई विषयों में ऑनलाइन कोर्स मुहैया करा रहे हैं. प्रोफेसर अग्रवाल ने कहा, “पहली बार छात्र दुनिया के बेहतरीन प्रोफेसरों से शिक्षा ग्रहण कर पा रहे हैं.”एमआईटी और हार्वर्ड ने इस वेबसाइट पर छह करोड़ डॉलर का निवेश किया है जिससे इस प्लेटफॉर्म का संचालन आसान हो गया है. वेबसाइट को उम्मीद है कि भविष्य में कुछ ऑनलाइन कोर्सों की लाइसेंसिंग से फंड का जुगाड़ करने में सफल रहेगी.