जब 1 बॉल में मिला 22 रन बनाने का लक्ष्य, बदकिस्मती से साउथ अफ्रीका हो गया वर्ल्ड कप से बाहर
कानपुर (इंटरनेट डेस्क)। 1992 वर्ल्डकप की बात है। सिडनी में इंग्लैंड और साउथ अफ्रीका के बीच 22 मार्च को दूसरा सेमीफाइनल खेला जा रहा था। यह मैच अफ्रीकी टीम के लिए कई मायने में अहम था। क्योंकि यह वह दौर था, जब साउथ अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव चरम पर था और कोई भी टीम वहां खेलने से कतराती थी। ऐसे में जरूरत थी द.अफ्रीका में क्रिकेट को जिंदा रखने की। इंग्लैंड के लिए यह उतना अहम नहीं था, क्योंकि उन्हें 1979 और 1987 वर्ल्डकप फाइनल खेलने को मिल गया था, मगर वो जीत नहीं ये अलग बात है।
इंग्लैंड ने बनाए थे 252 रन
टॉस जीतकर द.अफ्रीका ने पहले फील्डिंग करने का फैसला लिया। इंग्लैंड के दो शुरुआती विकेट 39 रन पर ही गिर गए थे। ऐसे में जरूरत थी तो एक साझेदारी की। बाद में बल्लेबाजी करने आए स्टीवर्ट और हिक ने अर्धशतकीय साझेदारी निभाई। मगर 33 रन के निजी स्कोर पर स्टीवर्ट भी अपना विकेट गंवा बैठे। इसके बाद बल्लेबाज आते गए और जाते गए, मगर हिक एक छोर संभाले रहे। उन्होंने 83 रन की उपयोगी पारी खेली। जिसकी बदौलत इंग्लैंड ने निर्धारित 45 ओवर में 252 रन बनाए।
अफ्रीका को यह जीत आसानी से मिल जाती
साउथ अफ्रीका को जीत के लिए 253 रनों की दरकार थी। मगर उन्हें यह लक्ष्य 43 ओवर में हासिल करना था, ये ओवर बारिश की वजह से कम किए गए थे। खैर अफ्रीकी ओपनर बल्लेबबाज मैदान पर आए। 26 रन ही बने थे कि अफ्रीका का पहला विकेट गिर गया। 61 रन पर दूसरा झटका भी लगा। छोटे-छोटे अंतराल में विकेट तो गिरे, मगर अफ्रीकी टीम रन रेट मेनटेन करती गई। आखिर में प्रोटीज को जीत के लिए 13 गेंदों में 22 रन की जरूरत थी। कि तभी बारिश होने लगी।
10 मिनट की बारिश ने बदल दिया परिणाम
यह बारिश करीब 10 मिनट तक चली। बंद होते ही सभी खिलाड़ी मैदान पर आ गए। अफ्रीकी बल्लेबाज को लगा कि जीत उनके काफी नजदीक है। मगर मैच रेफरी के एक फैसले ने पूरी अफ्रीकी टीम ही नहीं उनके देश के सभी क्रिकेट प्रशंसकों को मायूस कर दिया। दरअसल बारिश की वजह से डकवर्थ लुईस मैथड (उस वक्त मोस्ट प्रोडक्टिव ओवर्स के नाम से जाना जाता था) अपनाया गया और अफ्रीका को अब जीत के लिए 1 गेंद में 22 रन की जरूरत थी। यह तो मुमकिन ही नहीं था, लिहाजा अफ्रीका यह मैच हार गया। इसके बाद पूरे विश्व क्रिकेट में इस फैसले को लेकर बहुत बहस चली, मगर अफ्रीका का वर्ल्ड कप फाइनल खेलने का सपना, आज भी सपना ही है।