शनिवार यानी आज से उत्तर कोरिया की घड़ी आधा घंटा पीछे हो गई। ऐसा सरकार के 'प्योंगयांग टाइम ज़ोन' बनाने के फैसले के तहत किया गया है।


नया टाइम ज़ोन बनाने का सांकेतिक महत्व जापानी औपनिवेशिक दौर के बोझ से आज़ादी को लेकर है। घड़ी को दोबारा सेट करने के लिए चुनी गई तारीख का भी सांकेतिक महत्व है।ये जापान के शासन से उत्तर कोरिया के आज़ाद होने की 70वीं सालगिरह है।बदल गया वक्तज़रा वक्त की सूइयों को पीछे घुमाकर देखते हैं।19 वीं शताब्दी में शहरों में स्थानीय समय सूर्य के मुताबिक तय किया जाता था। जिस वक्त सूरज आसमान में सबसे ज्यादा ऊंचाई पर होता था, उसे मध्याह्न माना जाता था।
इसका मतलब ये है कि महज दो सौ मील की दूरी पर बसे दो शहरों के बीच अलग-अलग समय होता था। ये रेलगाड़ियों का समय तय करने वालों और हर तरह के काम के लिए सिरदर्द साबित होता था। रेलवे नेटवर्क के विस्तार और औद्योगिक क्रांति ने इंटरनेशनल स्टैंडर्ड टाइम को जन्म दिया। साल 1884 में मेरिडियन कॉन्फ्रेंस में दुनिया को 24 टाइम ज़ोन में बांटा गया। दिन में चौबीस घंटे ही होते हैं।इसे ग्रीनिच मीन टाइम (जीएमटी) के तौर पर जाना जाता है। बाद में इसे कोर्डिनेट यूनिवर्सल टाइम (यूटीसी) नाम दिया गया।राजनीति


दूसरों ने टाइम ज़ोन को राष्ट्रीय पहचान तय करने के हथियार की तरह इस्तेमाल किया। देश की घड़ी में जो वक्त बताती है, उससे पता चलता है कि सत्ता का केंद्र कहां है।चीन का विस्तार 5 हज़ार किलोमीटर से ज्यादा है। इसका फैलाव पांच टाइम ज़ोन में है लेकिन सरकार ने पूरे देश के लिए एक ही टाइम ज़ोन तय किया हुआ है। यहां घड़ी बीजिंग के वक्त के मुताबिक चलती हैं। चीनी स्टैंडर्ड टाइम (सीएसटी) की शुरुआत 1949 में हुई। ये कम्युनिस्ट पार्टी शासन के शुरुआती दिन थे और इसका मकसद राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करना था।तब से पश्चिमी चीन में सुबह के वक्त अंधेरा रहता है और सूरज काफी देर से ढलता है।शिंजियांग के विद्रोही क्षेत्र ने अपना गैरसरकारी टाइम तय करके शक्तिशाली केंद्र सरकार को साफ संदेश दिया। इसमें और सीएसटी में दो घंटे का फर्क है।भारतीय समयरुस राजनीतिक कारणों से टाइम ज़ोन बदलने का सटीक उदाहरण है। इसने तमाम टाइम ज़ोन घटाए और बढ़ाए हैं।रुस में फिलहाल 11 टाइम ज़ोन हैं। ये पूरी दुनिया में किसी एक देश के लिहाज से सबसे ज्यादा हैं।

ये अपेक्षाकृत नई व्यवस्था है। इसे मार्च 2010 में लागू किया गया। राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने प्रशासन को आसान बनाने के लिए दो टाइम ज़ोन खत्म करने का फ़ैसला किया।एक साल बाद उन्होंने डेलाइट सेविंग को खत्म करने की योजना बनाई, जो सोवियत युग से प्रभाव में थी। इससे कई लोग नाराज हुए। जब व्लादिमिर पुतिन ने सत्ता संभाली उन्होंने दोनों फैसलों को पलट दिया।इतना ही नहीं, साल 2014 में रुस ने यूक्रेन के क्रीमिया के विलय के बाद इसका टाइम बदल दिया ताकि इसके वक्त का मास्को के समय से सामंजस्य हो सके। इस बदलाव का कोई भौगोलिक आधार नहीं था। दोनों दो टाइम ज़ोन में आते हैं।ये सिर्फ भूगोल या फिर घड़ी के घुमाव का मामला नहीं. आखिरकार वक्त से ही सत्ता या फिर शक्ति तय होती है।

Posted By: Satyendra Kumar Singh