कोई भी सरकार, यादव सिंह का ‘जलवा’ क़ायम था
लेकिन यादव सिंह की राजनीतिक पहुंच और ऊँचे रसूख़ का ही ये असर था कि उन तक हाथ लगाने के लिए सीबीआई को हज़ारों फाइलें खँगालनी पड़ीं।यादव सिंह पर आरोप है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के सबसे अमीर विभाग नोएडा प्राधिकरण में चीफ इंजीनियर रहते हुए कई सौ करोड़ रुपये रिश्वत लेकर ठेकेदारों को टेंडर बांटे।नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस अथॉरिटी के इंजीनियर रहते हुए यादव सिंह की सभी तरह के टेंडर और पैसों के आवंटन में बड़ी भूमिका होती थी।दरअसल, यादव सिंह के शक्तिशाली और अमीर बनने की कहानी तब से शुरू होती है जब उत्तर प्रदेश में मायावती मुख्यमंत्री थीं। बसपा शासन काल में ही यादव सिंह को नोएडा अथॉरिटी का चीफ इंजीनियर बनाया गया।उन पर आरोप लगे कि इस पद पर रहते हुए उन्होंने जमकर पैसा कमाया।
इसके बाद साल 2002 में यादव सिंह को नोएडा में चीफ मेंटिनेंस इंजीनियर के पद पर तैनाती मिल गई। अगले नौ साल तक वे इसी पद पर ही तैनात रहे। यह पद इंजीनियरिंग विभाग का सबसे बड़ा पद था।नवंबर 2014 में पहली बार आयकर ने उनके ठिकानों पर छापा मारा और दिसंबर 2014 में वो निलंबित हुए।
पिछले साल 16 जुलाई को यादव सिंह के पास आय से अधिक संपत्ति के मामले की जांच हाईकोर्ट ने सीबीआई को सौंप दी। 4 अगस्त 2015 को सीबीआई ने उनके और उनके परिवार के सदस्यों के ठिकानों पर छापा मारा।बताया जाता है कि मौजूदा सरकार में भी एक मंत्री और मुख्यमंत्री के क़रीबी रिश्तेदार की यादव सिंह से नज़दीकी है। यही वजह है कि मायावती के चहेते यादव सिंह इस सरकार में भी बेफिक्र होकर महत्वपूर्ण पदों पर जमे थे।चूंकि यादव से नज़दीकी और उन्हें बचाने वालों में सपा और बसपा दोनों दलों से जुड़े लोग शामिल हैं, शायद इसीलिए भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने यादव सिंह की गिरफ्तारी के तुरंत बाद उन्हें बचाने वालों पर भी कार्रवाई की मांग की है।