धूम्रपान छोड़ने की चाह रखने वालों के लिए नई आस है ये निकोटीन रिप्लेसमेंट थैरेपी
DHHS के ऐसे हैं निर्देश
अमेरिका के स्वास्थ्य एवं मानव सेवा विभाग से (DHHS) मिले दिशा निर्देशों पर राष्ट्रीय क्षय रोग और श्वसन रोग संस्थान (NITRD) इसको तेजी के साथ इस्तेमाल में ला रहा है। तंबाकू में निकोटीन होता है। ये नशे का सबसे ज्यादा असरकारी स्वरूप है। इसमें नशे के साथ-साथ सबसे ज्यादा बायोएक्टिव कम्पाउंड और कैंसर फैलाने वाले घटक होते हैं। सिगरेट से मिलने वाली निकोटीन सबसे जल्दी फेफड़ों में एब्सॉर्ब हो जाती है। इसके बाद ये सिर्फ आठ सेकेंड के अंदर दिमाग तक भी पहुंच जाती है। यहां से वह निकोटिनिक रिसेप्टर्स और तत्क्षण रासायनिक संदेशवाहक को बढ़ावा देती है और इस तरह से दिमागी तौर पर राहत पहुंचा देती है।
ऐसे करती है तंबाकू असर
ऐसे में धूम्रपान की आदत से हमारा दिमाग लगातार ऐसे प्रभावों को झेलता है। NITRD के छाती रोग विशेषज्ञ सुशील मंजुल कहते हैं कि इस थैरेपी में निकोटीन का बहुत ही कम मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें टॉक्सिन नहीं पाया जाता, जो सिगरेट में सबसे बड़ी मात्रा में पाया जाता है। ये हमारे शरीर को कम निकोटीन के लिए व्यवस्थित करती है, तब तक के लिए जब तक वह धूम्रपान को छोड़ने छोड़ने का फैसला न कर ले। मंजुल बताते हैं कि ये NRT गम्स, पैचेस, नाक के स्प्रे, मांसल गोलियां और इनहेलर के रूप में उपलब्ध हैं।
च्यूइंगम और पैचेस ही हैं भारत में उपलब्ध
इनमें से सिर्फ च्यूइंगम और पैचेस ये दो NRT ही ऐसे हैं, जो भारत में मौजूद हैं। इनके अलावा अन्य NRT को बाहर से आयात कराया जाता है। मंजुल कहते हैं कि अगर कोई मरीज इस बात को ठान ले कि NRT उसके प्लान में अहम रोल जरूर निभाएगा, तो उसको थैरेपी के लाभ, नुकसान और कमियां जरूर दिखाई देंगी।
इनके लिए जरूरी है ये
वहीं बिना धूर्म वाले तंबाकू उपयोगकर्ताओं के लिए कुछ NRT और ज्यादा मददगार होती हैं। ये उनकी और ज्यादा मदद करते हैं उनकी लत को कंट्रोल में लाने के लिए। निकोटीन इनहेलर बिना नशे वाले तंबाकू उपयोगकर्ताओं के लिए कारगर नहीं होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि इसको लुक और फील बिल्कुल सिगरेट का दिया गया है। इसी के साथ ही मंजुल कहते हैं कि ये सभी उत्पाद तभी असरकारी होते हैं जब इनका नियमित तौर पर इस्तेमाल किया जाए। बीच-बीच में रुक-रुक कर इसे इस्तेमाल में लाने से ये उतनी असरकारी नहीं होगी।