वहां आजाद है इंटरनेट, तो यहां क्यों बनाना चाहते हैं गुलाम? पढ़ें नेट न्यूट्रलिटी की ABC
विदेशों में इसको लेकर बने हैं कानून
इंडिया में भले ही नेट न्यूट्रलिटी का मामला गर्माता जा रहा है, लेकिन विदेशों में इसको लेकर कड़े कानून बनाए गए हैं. नीदरलैंड्स में सबसे पहले 2011 में नेट न्यूट्रलिटी को लेकर कानून बना था. इसके तहत किसी कंटेंट के लिए एक्सेस स्पीड घटाने पर रोक है. वहीं मैक्िसको सबसे कड़े न्यूट्रलिटी कानून वाला देश माना जाता है. यहां पर भी 2011 में कानून बना था. इसके मुताबिक, अगर डेटा स्पीड में चेंज किया जाता है, तो उसे गैरकानूनी माना जाएगा. ब्राजील में 2014 में बना कानून, लोगों के लिए काफी मददगार है. इसके तहत प्रत्येक डाटा पैक के लिए एक जैसे नियम होने चाहिए और ज्यादा बैंडविथ के लिए अलग से चार्ज नहीं लिया जाएगा. इसके अलावा अमेरिका में 2015 से एक कानून बना था, जिसके तहत ब्रॉडबैंड को पब्लिक यूटिलिटी घोषित किया गया. इस कानून के तहत किसी कंटेंट को रोकना गैरकानूनी है और इंटरनेट में कोई फास्ट लेन नहीं होगी.
अब शुरु हुई जंग : किसका क्या है कहना?
नेट न्यूट्रलिटी को लेकर विवाद इतना बढ़ गया है कि, लोगों ने कैंपेन चलाकर प्रोटेस्ट शुरु कर दिया है. Save The Internet नाम से चल रहे इस कैंपेन को लोगों से काफी सपोर्ट मिल रहा है. वहीं अब बॉलीवुड सेलिब्रिटीज भी इसको लेकर खुलकर सामने आ गए हैं.
केंद्रीय दूरसंचार मंत्री : रविशंकर प्रसाद ने कहा कि, इंटरनेट तक पहुंच को लेकर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए. संचार मंत्री ने इस मामले पर एक कमेटी बनाई है, जोकि नेट न्यूट्रलिटी और नेट सिक्योरिटी पर अपनी रिपोर्ट देगा.
ट्राई चेयरमैन : राहुल खुल्लर ने एयरटेल के वॉयस कॉल के लिए अलग से टैरिफ को नेट न्यूट्रलिटी के खिलाफ बताया है. हालांकि उनका यह भी कहना है कि इसे गैर कानूनी नहीं कहा जा सकता क्योंकि देश में अभी ऐसा कोई कानून नहीं बना है.
पूर्व संचार मंत्री : आईटी एवं संचार के पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री मिलिंद देवड़ा ने नेट आजादी की वकालत की है. उनका कहना है कि कंज्यूमर्स के लिए नेट आजादी अहम है और ट्राई को देश में नेट न्यूट्रलिटी को अपनाना चाहिए. वहीं एम.के स्टालिन ने सेव द इंटरनेट के हैशटैग से ट्वीट किए हैं.
पहले से चल रहा है खेल, एयरटेल के अलावा विलेन और भी
नेट न्यूट्रलिटी को लेकर चल रहा विवाद कुछ 3 पहलुओं पर टिका हुआ है. इंटरनेट पर आपकी सर्फिंग, किसी वेबसाइट के लिए मिलने वाली स्पीड और किसी सर्विस के लिए अलग से पैकेज खरीदना यह तीन अहम हिस्से हैं जिसको लेकर कुछ टेलिकॉम कंपनियां आपकी आजादी को छीन रही हैं. सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां धीरे-धीरे अपने पत्ते खोल रही हैं. हालांकि इसमें सबसे ताजा मामला है भारती एयरटेल और फ्लिपकार्ट की डेटा डील का. इसमें एयरटेल के प्लेटफॉर्म जिसका नाम एयरटेल जीरो है पर फ्लिपकार्ट के एप को खास अहमियत मिलेगी. यही नहीं, एयरटेल जीरो के अलावा मार्केट में
- रिलायंस-इंटरनेट डॉट ओआरजी पर फेसबुक फ्री
- एयरसेल पर विकीपीडिया जीरो पैक,
- एयरटेल पर गूगल फ्री जोन,
- रिलायंस पर ट्विटर फ्री पैक
- एयरसेल पर फेसबुक और व्हाट्सएप पैक स्कीम
जानें क्या है इंटरनेट न्यूट्रलिटी
अगर आप इंटरनेट न्यूट्रलिटी से परिचित नहीं हैं तो आपके लिए यह जानना अत्यंत जरूरी है. वर्तमान में आप एक महीने के डाटा पैक पर कोई भी वेबसाइट, यूट्यूब वीडियो, वॉट्सएप, स्मार्टफोन एप और कुछ भी एक्सेस कर सकते हैं. इंटरनेट को किसी भी रूप में यूज करने के लिए आपको सिर्फ डाटा पैक के लिए शुल्क अदा करना है. यह डाटा पैक आप दो दिनों में भी खर्च कर सकते हैं और कम-कम यूज करके एक महीने तक भी चला सकते हैं. लेकिन एयरटेल समेत अन्य टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स मुक्त इंटरनेट व्यवस्था को कैटेगरी में बांधना चाहते हैं. नई व्यवस्था में प्रत्येक सर्विस यूज करने के लिए अलग से शुल्क देना होगा. इससे इंटरनेट पर फ्री में अवेलेबल जानकारी आप तक पहुंचना लगभग असंभव हो जाएगा क्योंकि टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स सिर्फ उन वेबसाइट्स को आप तक पहुंचाने को तरजीह देंगे जो उनके साथ करार करेंगीं. इसमें वह वेबसाइट्स लोगों तक कभी नहीं पहुंच पाएंगी जो टेलिकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स से करार करने में सक्षम नहीं होंगी.