एशिया के दो शक्तिशाली आर्थिक देशों के प्रमुख इस समय ऑस्ट्रेलिया में मौजूद हैं- भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग.


एक तरफ़ नरेंद्र मोदी को लेकर ऑस्ट्रेलिया में समारोहों और सार्वजनिक कार्यक्रमों का दौर चल रहा है तो दूसरी तरफ़ शी जिनपिंग अपनी यात्रा में बिना शोरग़ुल के सबसे अहम व्यापार समझौते करने में व्यस्त हैं.किसको कितनी सफलताऑस्ट्रेलिया में चीनी मूल के लोगों की संख्या भारतीय मूल के लोगों से बहुत अधिक है.ऑस्ट्रेलिया ब्यूरो ऑफ़ स्टेटिक्स के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया की कुल दो करोड़ 35 लाख लोगों की आबादी में चीनी मूल के लोगों की संख्या 1.8 प्रतिशत, जबकि भारतीय मूल के लोगों की संख्या 1.6 प्रतिशत है.चीन निवेश के लिए ऑस्ट्रेलिया के बाज़ार को आज़माना चाह रहा है और जिनपिंग की इस यात्रा में उसे कुछ हदतक यह सफलता हासिल भी हुई.


चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए सबसे अहम मुक्त व्यापार समझौते के तहत ऑस्ट्रेलियाई किसानों, वाइन उत्पादकों और डेयरी उत्पादों के उत्पादकों को चीन के बाज़ार तक पहुंच बनाना आसान हो जाएगा.अगले चार से 11 वर्ष में इन क्षेत्रों में टैक्स पूरी तरह समाप्त हो जाएंगे.ऑस्ट्रेलियाई वाइन उत्पादक 30 प्रतिशत तक टैक्स देने के बावजूद हर वर्ष 20 करोड़ डॉलर की वाइन चीन को निर्यात करते हैं. टैक्स छूट के बाद इसमें भारी इज़ाफ़ा होने की संभावना है.

इसके बदले चीन को ऑस्ट्रेलिया में निवेश रुकावटों से निजात मिलेगी. अख़बार 'चाइना डेली' के अनुसार, ''इस समझौते से चीन ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार देश हो जाएगा.''मोदीमोदी के इस दौरे पर उम्मीद थी कि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच यूरेनियम आपूर्ति को लेकर अहम समझौता होगा, लेकिन यह फ़िलहाल टल गया है.ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों के अनुसार, अब इस पर 2015 के मध्य तक कोई समझौता होने की उम्मीद है.https://img.inextlive.com/inext/inext/xi_modi_i4_171114.jpgहालांकि ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री टोनी एबॉट के साथ मोदी की 'आतंकवाद', साइबर सुरक्षा आदि पर बातचीत हुई है.लेकिन यदि कुछ आर्थिक समझौतों की बात करें तो अभी तक मोदी और उनकी टीम को ऑस्ट्रेलिया से कोई अहम प्रगति हाथ नहीं लगी है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh