ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कन्नड़ साहित्यकार यूआर अनंतमूर्ति के हालिया बयान ने उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.


चुनाव प्रचार की शुरुआत में अनंतमूर्ति ने कहा था कि अगर नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बनते हैं तो वह देश छोड़कर जाना पसंद करेंगे. बाद में उन्होंने यह कहते हुए अपना बयान वापस ले लिया था कि उन्होंने निराशावश ऐसा कहा था.लेकिन पिछले कुछ दिनों से स्थानीय मीडिया में यह ख़बर चल रही है कि नमो ब्रिगेड ने मतगणना के अगले दिन यानी 17 मई को, बंगलौर से कराची का एक टिकट बुक करा दिया है. पहला टिकट तटीय शहर मंगलोर से बुक कराया गया था जबकि एक और टिकट शिमोगा से बुक कराया गया है.यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें टिकट मिले हैं, अनंतमूर्ति ने पहले तो ख़ारिज किया, "वह ऐसे लोग नहीं हैं जो टिकट खरीदें और मुझे भेजें जबकि वह जानते हैं कि मैं उसे इस्तेमाल नहीं करूंगा और वह बर्बाद हो जाएगा."शिष्टाचार का तकाज़ा
लेकिन वह आगे कहते हैं, "उनकी यह बहुत ग़लत बात है. मैं इस देश का बहुत गंभीर लेखक हूं और अब मैं 82 साल का हो गया हूं. मेरे लिखे उपन्यासों को पूरी दुनिया जानती है. मैंने भारतीय गांव के अपने विचार को पूरी दुनिया तक पहुंचाया है. मैं एक संभ्रांत लेखक हूं. मेरा इस तरह मज़ाक नहीं बनाया जा सकता. मैं एक बहुत स्वाभिमानी व्यक्ति हूं."


तो मोदी को लेकर इतनी शंका क्यों है?वह कहते हैं, "बीजेपी में यह डर पहले से है. मुझे नहीं लगता कि बीजेपी एक लोकतांत्रिक संगठन है, वैसे यह कांग्रेस के मुकाबले तो ज़्यादा लोकतांत्रिक है. इसमें मोदी दबंग की तरह काम करेंगे.""बीजेपी में सभी अपने क्षेत्र के नेता हैं. मुझे लगता है कि बीजेपी में एक तरह की गर्मी पैदा होगी. मोदी इसे पैदा करेंगे. और गरम होने का मतलब बीमार होना भी होता है. मुझे लगता है कि बड़ी जीत का ख़ासतौर पर यह असर होगा."उन्हें लगता है कि मोदी राज में आज़ादी ख़त्म हो जाएगी, "अगर आप किसी फ़ैक्टरी के मजदूर हैं तो आपको पूरी क्षमता से काम करना होगा. मोदी का लक्ष्य देश को कम से कम चीन के स्तर तक पहुंचना है. इसलिए आपको लोगों को काम पर लगाना होगा. भारत में लोगों की क्षमताएं अलग-अलग हैं. अगर आप इंसान हैं तो पूरी क्षमता नहीं अधिकतम क्षमता की उम्मीद करेंग. मोदी अधिकतम क्षमता से नहीं मानेंगे. आज़ादी कई तरह की होती है."

वह कहते हैं, "भारत एक अजीब देश है. आप इसके साथ ऐसा दिखावा न करें कि इसे दक्ष बनाने के चक्कर में इसे क्रूर बना दें. दक्षता क्रूरता बन जाती है."अनंतमूर्ति को बहुत यकीन नहीं है कि मोदी राज का 'देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप' पर कोई असर पड़ेगा.वह कहते हैं, "हो सकता है कि वह सारी चीज़ों को एक बारी में न उखाड़ें. वह ऐसा धीरे-धीरे कर सकते हैं. मुझे गंगा स्नान और गंगा पूजा से कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन इसे एक तरह से धूर्ततापूर्ण संस्कार के रूप में किया जाना चिंताजनक है."अनंतमूर्ति कहते हैं, "अगर मोदी इसे न्यूज़ वैल्यू पर नज़र रखकर कर रहे हैं तो यह धार्मिक कृत्य नहीं है. बहुत से धार्मिक प्रतीक व्यावसायिक हैं, धार्मिक नहीं. इसीलिए मैं इसे छद्म धार्मिकता कहता हूं. अगर हम छद्म धर्मनिरपेक्ष हैं तो वह छद्म धार्मिक हैं."

Posted By: Satyendra Kumar Singh