मुंबई हमलों की याद दिलाई नैरोबी की घटना ने
26 नवंबर 2008 की रात ऑटोमेटिक राइफलों और हथगोलों से लैस पाकिस्तान से आए 10 आतंकवादी पांच अलग-अलग टोलियों में बंट गए थे और दक्षिण मुंबई की पांच जानी-पहचानी जगहों पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दी थी.
नैरोबी के मॉल में हमला और मुंबई हमलों में कई तरह की समानता है.ठीक नैरोबी के शॉपिंग मॉल की तरह मुंबई के पांच सितारा ताजमहल होटल और ट्रायडेंट होटल में दर्जनों लोगों को गोलियों से उड़ा दिया गया और कई लोगों को तीन दिन तक बंधक बनाकर रखा गया.इन दोनों हमलों में विदेशी चरमपंथी बल्कि कहें पड़ोसी देशों के हमलावर शामिल थे. नैरोबी में हमला करने वाले सोमालिया से आए थे जबकि मुंबई में बंदूक़धारी पाकिस्तान से आए थे.
इन दोनों हमलों में बंदूक़धारी आराम से और दिलेरी के साथ इमारतों के अंदर घुसे और बग़ैर संकोच औरतों, मर्दों, बूढों और बच्चों पर गोलियां चलाने लगे. दोनों हमलों में चरमपंथियों ने इमारत में मौजूद लोगों को बंधक बनाया.लेकिन सब से अहम यह कि ये दोनों हमले तीन दिन तक जारी रहे. नैरोबी हमले से पहले ये बात केवल मुंबई में देखी गई थी.ट्विटर और मोबाइल
नैरोबी हमले के बीच सोमालिया के चरमपंथी संगठन अल-शबाब ने ट्विटर का इस्तेमाल कर इसकी ज़िम्मेदारी ली, जबकि मुंबई हमलों के दौरान पाकिस्तान के लश्कर-ए-तैयबा के लोगों ने मुंबई पर हमला कर रहे अपने साथियों से मोबाइल फ़ोन पर संपर्क रखा.जहां समानताएं हैं, वहीं दोनों हमलों में असमानताएं भी हैं. मुंबई हमलों का आयोजन काफी बड़े पैमाने पर किया गया, जिसकी प्लानिंग दो साल से बनाई जा रही थी.शहर में पांच अलग-अलग जगहों को निशाना बनाया गया और शहर में तीन दिन तक दहशत फैली रही.इसके बाद आम लोगों का क्रोध सड़कों पर देखने को मिला. हमलों के कुछ दिन बाद लोगों ने फ़ेसबुक और ट्विटर पर एक दूसरे को संदेश भेजकर एक विशाल विरोध मार्च सरकार के ख़िलाफ़ निकाला.नैरोबी में लोगों का क्रोध सरकार के ख़िलाफ़ देखने को नहीं मिल रहा है, बल्कि लोग पुलिस और सेना की मदद कर रहे हैं और पीड़ितों की मदद के लिए हर तरह से तैयार नज़र आते हैं. खूनदान करने वालों की लंबी कतारें लगी हैं.मुंबई नैरोबी से कहीं बड़ा हमला था, लेकिन दोनों वैश्विक आतंकवाद हमले एक नए रुझान की तरफ इशारा करते हैं जो दुस्साहसी और दिलेरी के साथ किए जाते हैं.