'जब रेप होता है तो धर्म कहाँ जाता है?'
बीईंग एसोसिएशन के नाटक 'म्यूज़ियम ऑफ़ स्पीशीज़ इन डेंजर' की मुख्य किरदार प्रधान्या शाहत्री मंच से ऐसे कई पैने संवाद बोलती हैं.राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सहयोग से मंचित इस नाटक में सीता और द्रौपदी जैसे चरित्रों के माध्यम से महिलाओं की हालत की ओर ध्यान खींचने की कोशिश की है लेखिका और निर्देशक रसिका अगाशे ने.रसिका कहती हैं, "सीता को देवी होने के बाद भी अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी और इसे सही भी माना जाता है लेकिन मेरा मानना है कि 'अग्नि परीक्षा' जैसी चीज़ें ही रेप को बढ़ावा देती हैं."ये विरोध का तरीका है
जब आस्था का मामला आता है तो घर परिवार से भी विरोध होता है. द्रौपदी की भूमिका निभाने वाली किरण ने बताया कैसे घर वाले उनसे नाराज़ हो गए थे.रसिका का कहना था, "ये पहली बार नहीं है कि किसी ने द्रौपदी और सीता के दर्द को लिखने की कोशिश की है और उस वक़्त धर्म कहाँ जाता है जब किसी लड़की का रेप हो जाता है."हिंदू सभ्यता पर हमला?