उर्दू अख़बार 'अवधनामा' के मुंबई संस्करण की संपादक शिरीन दलवी फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्डो के कवर को अपने अख़बार में छापने के बाद मुसीबतों में घिर गई हैं.


पेरिस स्थित शार्ली एब्डो के दफ़्तर पर पिछले महीने हुए चरमपंथी हमले में संपादक समेत 12 लोग मारे गए थे.इसके बाद के अंक के कवर पर पैगंबर हजरत मोहम्मद को 'मैं शार्ली एब्डो हूँ' की तख्ती पकड़े हुए दिखाया गया था. कार्टून के ऊपर लिखा हुआ था, "सभी को क्षमा."अखबार के 17 जनवरी के संस्करण में शार्ली एब्डो के इसी कवर को प्रकाशित करने के बाद शिरीन के ख़िलाफ कई जगहों पर पुलिस शिकायत दर्ज कराई गई. ठाणे ज़िले के मुंब्रा थाने की पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार किया. हालांकि उसी दिन वो ज़मानत पर रिहा भी हो गईं.माफ़ी के बाद भी मुक़दमा


ज़मानत मिलने के बाद भी शिरीन और उनके दो बच्चे आज तक अपने घर नहीं जा पाए हैं. तीनों उस दिन से अलग-अलग रह रहे हैं. शिरीन ने अपने एक दोस्त के घर पर पनाह ली है, तो उनके दो बच्चे रिश्तेदारों के घर पर रह रहे हैं.शिरीन चाहती हैं कि सारा मामला सहमति से निपट जाए. वो कहती हैं, "अगर मेरे निर्णय से किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस लगी हो तो उसके लिए मैंने माफ़ी मांग ली है. मैं विनती करती हूँ कि अब इसे यहीं ख़त्म कर दिया जाए."

इस विवाद के बाद अवधनामा अख़बार ने अपना मुंबई संस्करण बंद कर दिया है, जिसके कारण शिरीन की नौकरी भी चली गई है.वो कहती हैं, "भले ही यह मामला यहाँ ख़त्म हो जाए, लोग मुझे माफ़ कर दें, लेकिन हमारी जिंदगी अब पहले जैसी नहीं हो सकती. मेरे बच्चों को बिना वजह तकलीफें सहनी पड़ रही हैं. पिछले 15 दिनों से न तो वह कॉलेज गए हैं और न ही मुझसे मिले हैं."जवाब का तरीकाशिरीन मानती हैं कि बौद्धिक चीज़ों का जवाब बौद्धिक तरीके से देना चाहिए. वो कहती हैं, "ख़बर छापना मेरा अधिकार था. पसंद न आने पर उसपर आपत्ति जताना लोगों का अधिकार है. लेकिन इल्म का जवाब इल्म से देना चाहिए. अगर किसी ख़बर पर कोई आपत्ति हो तो, अगले संस्करण में उसका स्पष्टीकरण दिया जा सकता है."शिरीन यह भी कहती हैं कि अगर उन्होंने गुनाह किया है तो अल्लाह उन्हें सज़ा देगा. देश में क़ानून का राज है और वो उसके तहत भी सज़ा पाने को तैयार हैं.पर जो लोग उन्हें सज़ा देना चाहते हैं उन्हें ऐसा करने का कोई हक़ नहीं है.

शिरीन के मुताबिक़, "लोगों ने कहा है कि मुझे किसी भी क़ीमत पर नहीं छोड़ा जाएगा. मैं काफ़ी डरी हुई हूं. जब मैं माफ़ी मांग ही चुकी हैं, इस मुद्दे को यहीं खत्म कर दिया जाए."शिरीन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अब भी समर्थन करती हैं लेकिन इस कार्टून को छापने के अपने फैसले को वो अपनी पत्रकारिता जीवन की पहली और आखिरी ग़लती भी मानती हैं.27 सालों से पत्रकारिता कर रही शिरीन फ़िलहाल, क़ानूनी कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार हैं.

Posted By: Satyendra Kumar Singh