देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव एक बेहतरीन राजनेता थे। लोगों में उनकी स्वीकार्यता थी। यही वजह है कि 28 की उम्र में वह पहली बार विधायक बने। आइए जानते हैं मुलायम सिंह की राजनीतिक जर्नी के बारे में।

लखनऊ (एएनआई)। उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव अब हमारे बीच नहीं रहे। मुलायम सिंह राजनीति में करीब पांच दशकों तक एक्टिव रहे। वास्तव में, वह भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य की राजनीति में इतने पारंगत थे कि उन्हें उनके प्रशंसकों के साथ-साथ उनके विरोधियों द्वारा "नेताजी" कहा जाता था। 22 नवंबर 1939 को इटावा जिले के सैफई गांव में जन्मे मुलायम सिंह यादव राजनीति में तेजी से आगे बढ़े और तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने एक बार रक्षा मंत्री के रूप में केंद्र सरकार में भी कार्य किया। वे 10 बार विधायक और 7 बार लोकसभा सांसद चुने गए। उनका राजनीतिक जीवन जितना लंबा था, उतने ही विवाद भी थे।

पीएम बनते-बनते रह गए
मुलायम सिंह के बारे में कहा जाता है कि एक वक्त वह लगभग भारत के प्रधानमंत्री बनने वाले थे। मगर कुछ कारणवश वह देश के पीएम की कुर्सी में बैठने से चूक गए। 1996 में, जब संयुक्त मोर्चा सरकार बनाने के लिए तैयार था, तो गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए मुलायम सिंह का नाम मंगाया गया था। इसका लालू प्रसाद यादव समेत कई नेताओं ने विरोध किया था। अगर उस वक्त मुलायम के नाम पर सबकी रजामंदी हो जाती तो वह पीएम बन चुके होते। उन्होंने 2014 में फिर से एक अवसर देखा लेकिन चुनाव परिणामों ने संभावना को हमेशा के लिए कम कर दिया। यह वाकई हैरान करने वाला है कि देश के सबसे बड़े सूबे के तीन बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद नेताजी कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए।

28 साल में पहली बार विधायक
मुलायम सिंह का करियर तब शुरू हुआ जब वह 1967 में 28 साल की उम्र में विधायक चुने गए। उन्होंने 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी की स्थापना की और जल्द ही इसे उत्तर प्रदेश में स्थित एक क्षेत्रीय पार्टी में बदल दिया। उनके बेटे अखिलेश यादव ने बाद में पार्टी की बागडोर संभाली और अब वह इसके अध्यक्ष हैं। 1990 में, उनके समर्थकों का दावा है कि मुलायम सिंह लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा के उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने पर उन्हें गिरफ्तार करने के लिए तैयार थे। हालांकि, समस्तीपुर में लालू प्रसाद यादव ने भाजपा के मुखिया को गिरफ्तार कर उन्हें पछाड़ दिया। लालू और मुलायम दोनों 1970 के दशक में दिग्गज स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण के जेपी आंदोलन के बाद उभरे और बाद में "समाजवादी नेताओं" के रूप में अपना करियर बनाया।

विरोधियों से दुश्मनी भी तो दोस्ती भी
1975 में, जब प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने आपातकाल लगाया, मुलायम सिंह उन राजनेताओं में से थे, जिन्हें 19 महीने के लिए गिरफ्तार और जेल में रखा गया था। जब उन्होंने आपातकाल के दौरान कांग्रेस का विरोध किया, तो उन्होंने 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के लिए इसका समर्थन भी किया। उन्होंने वीपी सिंह के खिलाफ खुले तौर पर चंद्रशेखर का साथ देकर अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी की चिर प्रतिद्वंद्वी बसपा से गठबंधन कर सबको चौंका दिया। लेकिन "गेस्टहाउस घटना" के बीच पथ-प्रदर्शक गठबंधन जल्द ही टूट गया।

सबका करते थे समर्थन
जबकि मुलायम भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति के आलोचक रहे, मगर उन्होंने कई बार भगवा पार्टी का पक्ष लिया। उदाहरण के लिए, मुलायम सिंह यादव ने 2002 में एपीजे अब्दुल कलाम को भारत का राष्ट्रपति बनाने के प्रयास में भाजपा का समर्थन करके सभी को चौंका दिया था। पिछले साल, एक समारोह में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ मुलायम सिंह यादव की एक तस्वीर ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी थी। मगर इन सब के बावजूद वह पक्ष-विपक्ष सबके प्रिय थे।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari