मुक्केबाज़ आज की फ़िल्म है पर अगर ये फ़िल्म 70 के दशक में भी होती तो ऐसी ही होती। एक स्पोर्ट्समैन की कहानी में जैसा रोमांच होना चाहिए क्या इस फ़िल्म में है आइये आपको बताते हैं।

कहानी
इस फ़िल्म की कहानी महाभारत में कर्ण और एकलव्य की कहानियों के मिक्सचर जैसी है। कहने का मतलब, वही एक अंडरडॉग स्पोर्ट्समैन और उसकी स्ट्रगल...
समीक्षा
एक एंग्री यंग मैन की ये कहानी कुछ अलग तो नहीं है पर स्पोर्ट्स फिल्म्स के बढ़ते चलन के से इस फ़िल्म के लिए दर्शक मिलना आसान होना चाहिए, ऊपर से ये फ़िल्म अनुराग के अनोखे अंदाज़ से अपनी कहानी कहती इसलिए इसका फ्लेवर काफी रियल है। पहले बात की जाए कि मुझे क्या क्या पसंद आया
1. फ़िल्म का निर्देशन काफी रीयलिस्टिक है
2  फ़िल्म की राइटिंग काफी अच्छी है
3. फ़िल्म के संवाद इसका हाई पॉइंट हैं
4. फ़िल्म की पूरी कास्टिंग ऑप्ट है
5. फ़िल्म का आर्ट डायरेक्शन अच्छा है
क्या हो सकता था बेहतर :
फ़िल्म की लंबाई इसकी सबसे बडी प्रॉब्लम है, ये फ़िल्म कम से कम 35 मिनट छोटी की जा सकती है।
इसका साउंड डिज़ाइन लाउड है
फ़िल्म प्रेडिक्टेबल है
विनीत के नॉकआउट पंच और जिमि शेरगिल और रवि किसन के ज़बरदस्त पेरफ़ॉर्मेंस के लिये इस हफ्ते देख सकते है ये फ़िल्म।
रेटिंग : 3.5*

Yohaann Bhargava
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Posted By: Mukul Kumar