Mubarakan movie review : दिमाग के 'बासी' दही की पंजाबी लस्सी
कहानी :
ये दो महामूर्ख (महा डम्ब) मेल शौविनिस्ट जुड़वाँ भाइयों की कहानी है जो अपने परिवार को अपनी प्रेमिकाओं के बारे में बताने के लिए अपने 'टिपिकल सरदार इमेज' वाले मामा की मदद लेते हैं और 'मुबारकां ', आपने पूरी कहानी सुन ली है। खेल ख़तम।
कथा पटकथा और निर्देशन
दो लाइन की कहानी में दो लाइन भी ऐसी नहीं हैं, जो आपको याद रहें। फिल्म की कहानी घटिया है, फिल्म का स्क्रीनप्ले उससे भी ज्यादा बुरा है, ऐसी घिसी पिटी जुविनाइल कॉमेडी देख कर मेरे तन बदन में आग सी लगी हुई है, मेरा एक सवाल है, की ऐसी फिल्मों की स्क्रिप्ट को किस लिहाज से अप्रूव किया जाता है, ये फिल्म औरतों के प्रति ओफेंसिव है, पंजाबियों के लिए भी ओफ्फेंसिव की हद तक स्टीरियोटाइप है। बे सर पैर की घटनाओं के चलते, ये फिल्म आधे सर का नहीं, पूरे सर का दर्द है।मैं बेहिचक कह सकता हूँ की ये एक स्तर-हीन फिल्म है और इसकी कॉमेडी मुझे एक भी बार हंसाने में नाकामयाब रही।
अदाकारी
अर्जुन कपूर को एक रोल में ही झेलने में मुश्किल होती है, यहाँ दो दो हैं, क्यों है? बोले चूड़ियाँ, बोले कंगना !' (नेपोटिसम रॉक्स), तबाही मचा दी, दिमाग का दही इसे ही कहते हैं। अनिल कपूर पूरी कोशिश करते हैं कि कुछ करके फिल्म को बचा लें पर ऐसा हो नहीं पाता, जिस तरह से मेल शौविनिस्ट दुनिया में औरतों की कोई जगह नहीं, यहाँ भी वैसा ही है। अथिया शेट्टी का इस फिल्म में बेजुबान सा किरदार है। मेरे फेवरिट, पवन शर्मा और रत्ना पाठक शाह जी के टैलेंट का मज़ाक है ये फिल्म, एक सीन में जब दोनों मिल के चमाटें धरते हैं, वही शायद इस फिल्म का बेस्ट हिस्सा है।
मेरे बहुत सारे पंजाबी, सरदार। एन आर आई दोस्त हैं। कभी भी एक भी सरदार दोस्त मुझे ऐसा नहीं मिला जो 'जिस तरह के सरदार इन फिल्मों में दिखाई जाते हैं' उनसे मिलता हो। आखरी फिल्म जहां सरदार किरदार रियल जैसा था, वो राकेट सिंह याद आती है। सरदार समुदाय को ऐसी फिल्मों का विरोध करना चाहिए और कंगना तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं'।
रेटिंग्स : इस फिल्म को कोई भी स्टार नहीं मिला।
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