डच हिस्टोरियन एड हयूबेन 42 साल के और 87 बच्चों के पिता हैं. उनकी गिनती यूरोप के सबसे अच्छे स्प र्म डोनर्स में होती है और उनके बच्चे दुनिया के हर कोने में हैं.उनकी सीमेन एनालिसिस में100 मिलियन स्पैर्म काउंट सामने आए जिसे औसत से बेहतर में रखा जाता है. विकी डोनर में बीस साल का पंजाबी मुंडा विकी 53 बच्चों का पिता बनता है.


स्पर्म डोनेशन ऐसे कपल्स  के लिए वरदान माना जाता है जो बच्चे नहीं पैदा कर सकते. इसे भले ही सोसाइटी में अभी पूरी तरह एक्से प्टव नहीं किया गया है लेकिन फिल्म बिना जजमेंटल हुए इस सब्जेटक्ट को सामने रखती है. कुछ उसी तरह जैसे लोग आंखें, ब्लमड या किडनी डोनेट करते हैं, कुछ लोग खुशी खुशी स्पैर्म भी डोनेट करते हैं.शुरू में इस बात से डर रहा विकी कि लोग क्याक कहेंगे आखिरकार इसके लिए तैयार हो जाता है, उसे लगता है कि ऐसा करके वह जल्दीय पैसा कमा सकता है. हालांकि वह इसे सीक्रेट बनाए रखता है और उसके पडोसी की बेटी समझती है कि वह किसी बीमारी का इलाज करवा रहा है.


सरकार पहले मिनीषा लांबा और जिमी शेरगिल को लेकर 2005 में बेहद सराही गई च्यहांज् बना चुके हैं. इसके बाद उन्होंगने बिग बी के साथ शोभिते शुरू की जो पूरी नहीं हो सकी. उन्होंएने कई सारे एड बनाए हैं लेकिन विकी डोनर पर उनकी छाप दिखती है. हयूमर और वन लाइनर्स की भरमार है लेकिन सभी कहानी का हिस्सार हैं. अन्नूय कपूर ने इनफर्टिलिटी स्पेइशलिस्टो के रोल में जान डाल दी है.

वह स्पंर्म बरबाद होते नहीं देख सकता इसलिए उन्हें प्रास्पेनक्टिव क्लाटइंट़स के लिए फ्रीज करके रखता है. आयुष्मा न और यमी दोनों ने ही टेलीविजन से बॉलीवुड का सफर बेहद स्मूाथली तय किया है. पहले ने जोर जोर से बात करने वाले पंजाबी मुंडे और दूसरे ने बंगाली बाला का किरदार बखूबी निभाया है. बटर चिकन और माछेर झोल का मिलन स्टोररी को और मजेदार ही बनाता है. सेकेंड हाफ में कहीं कहीं परंगपरागत बॉलीवुड मेलोड्रामा की झलक दिखती है जिसे इग्नोार किया जा सकता है. सबसे ज्या दा मजा अन्नूल और आयुष्मातन के सीन देखने में आता है.सपोर्टिंग कास्टर ने भी अपना रोल परफेक्टाली निभाया है. विकी की मां और दादी मां को देखना बेहद इंटेस्टिंग है. दिन भर की थकान मिटाने के लिए दोनों को ही बोतल खोलने से गुरेज नहीं है और विकी का मानना है कि दिल्लीद में दो ही चीजें माडर्न हैं एक तो मेट्रो और दूसरे उसकी बेबे.

विकी डोनर उन फिल्मों में से है जो साबित करती है कि अच्छी फिल्म बनाने के लिए महंगी स्टा रकास्ट  या अटंलाटिक पार के नजारों की जरूरत नहीं होती है. अगर स्टोसरीलाइन अच्छी है तो लाजपतनगर से भी काम चल सकता है. जूही चतुर्वेदी की स्टोहरी और स्क्रीमनप्लेऔ दोनों ही अच्छेज हैं. यह फिल्म प्रोडयूसर के अपने नए रोल में मुस्कु्राने को जॉन अब्राहम को कई रीजन देती है.

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Posted By: Garima Shukla