Movie Review: बोर करती है 'द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर', सिर्फ अनुपम खेर ने किया कमाल
कहानी
ये वो पोलिटिकल स्टोरी है जो हम सब को आलरेडी पता है, अब तक के देश के शायद सबसे पढ़े लिखे प्रधानमंत्री को एक पार्टी ने क्यों चुना और.।.उसके बाद क्या हुआ
रेटिंग : डेढ़ स्टार
समीक्षा
वैसे तो मनमोहन सिंह की मनमोहक चुप्पी से सब वाकिफ हैं, और किन परिस्थियों में उनको प्राइम मिनिस्टर बनाया गया, क्यों बनाया गया और उसके बाद क्या क्या हुआ, ये सब जानने के लिए किसी फुल लेंथ मोशन पिक्चर की ज़रुरत ही नहीं थी। फिर भी जब इस फिल्म का ट्रेलर आया तो मैं काफी उत्साहित था कि इसमें महान इकोनॉमिस्ट और अब तक के देश के सबसे पढ़े लिखे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उस दौरान की मनोदशा देखने को मिलेगी, पर अफसोस ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिलता, फिल्म के सारे किरदार बड़े कैरिकेचरिश हैं और महज कार्डबोर्ड फिगर बन कर रह जाते हैं। आपको अगर प्रकाश झा की राजनीति याद हो तो कहना गलत नहीं होगा कि फिल्म वैसी ही है, पर बिलकुल भी रोचक या मनोरंजक नहीं है। फिल्म किसी पॉलिटिकल पार्टी मीटिंग के मैनिफेस्टो की तरह खोखली और बेजान हैं। एक वक्त पर आकर तो ये लगने लगता है की ये सरकारें रोबोट जैसे बिहेव करने वाले पॉलिटिशियन चलाते हैं। एक वक्त पर आते आते आपको पॉलिटिशंस पर दया भी आने लगती है। स्क्रीनप्ले बेहद नीरस है और डायलॉग बेहद बेसिक। ये प्रोपेगंडा फिल्म है, ये तो बताने की जरुरत ही नहीं है, क्योंकि महज कुछ महीनो में ऐसी कई फिल्मे आ रही हैं जो टोटली पॉलिटिकली मोटिवेटेड हैं। अभी और भी कुछ सेल्फी खिचेंगी, अभी और भी पोस्टर आएंगे और फिर उनकी फिल्में भी, अगर वो फिल्में भी इतनी ही वनटोन और बोरिंग हों, तो मुझे लगता है की जिस तरह पिछले साल बड़ी बड़ी फिल्मों की दर्शकों ने ऐसी तैसी कर दी, वैसे ही इन फिल्मों का भी हाल कुछ वैसा ही हो सकता है।
क्या क्या आया पसंद
मेकअप डिपार्टमेंट की वजह से किरदार रियल लगते हैं। अनुपम खेर ने मनमोहन सिंह की बढ़िया मिमिक्री की है।
Here is a glance at the making of #DrManmohanSingh's oath taking ceremony. #TheAccidentalPrimeMinister Coming to cinemas on January 11.🙏😍 https://t.co/0Bxh67GTBZ pic.twitter.com/OusghRJSee— Anupam Kher (@AnupamPKher)
वर्डिक्ट
फिल्म लेवल पर ही यह 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' बेहद खराब है। ये बोरिंग तो है ही, प्लस इसके पास कोई नई बात भी नहीं है कहने के लिए. इस फिल्म को ऐन इलेक्शन के इर्द गिर्द रिलीज करने की स्ट्रेटेजी और साथ ही एक पॉलिटिकल पार्टी ऑफिस से जारी हुआ ट्रेलर इस फिल्म को और भी स्टूपिड बना देता है, पर साहब आप पब्लिक को कितना भी मूर्ख समझ लें मैं तो वही कहूंगा जो मशहूर शायर आनंद बक्शी ने कहा है।
ये जो पब्लिक है, ये सब जानती है
अंदर क्या है, बाहर क्या है
ये सब कुछ पहचानती है...
ये जो पब्लिक है, ये सब जानती है
Review by : Yohaann Bhaargava
Twitter : @yohaannn