Movie review : इन 8 कारणों ने लोगों से बुलवाया, वाकई 'प्रेम रतन धन पायो'
भावनाओं के वर्क से चमकती पटकथा
सब अविश्वसनीय है, लेकिन उसे सूरज बड़जात्या भावनाओं के वर्क में लपेट कर यों पेश करते हैं कि कुछ मिनटों के असमंजस के बाद यह सहज और स्वाभाविक लगने लगता है। सूरज बड़जात्या ने अपनी सोच और अप्रोच का मूल स्वभाव नहीं बदला है। हां, उन्होंने अपने किरदारों और उनकी भाषा को मॉडर्न स्वर दिया है। वे पुरानी फिल्मों की तरह एलियन हिंदी बोलते नजर नहीं आते। हालांकि शुरू में भाषा(हिंग्लिश) की यह आधुनिकता खटकती है।
साज-सज्जा रजवाड़ों की भव्यता
सूरज बड़जात्या दर्शकों को आकर्षित करने के बाद सहज रूप में अपनी दुनिया में लौट आते हैं। फिल्म का परिवेश, भाषा, वेशभूषा और साज-सज्जा रजवाड़ों की भव्यता ले आती है। तब तक दर्शक भी रम जाते हैं। वे प्रेम के साथ राजसी परिवेश में खुद को एडजस्ट कर लेते हैं। सूरज बड़जात्या के इस हुनरमंद शिल्प में रोचकता है। याद नहीं रहता कि हम ने कुछ समय पहले सलमान खान की दबंग, बॉडीगार्ड जैसी फिल्में देखी थीं। सूरज बड़जात्या बहुत खूबसूरती से सलमान को प्रेम में ढाल देते हैं।
ऐसी है बेहतरीन कहानी
प्रेम रतन धन पायो का रूपविधान का आधार रामायण है। फिल्म की कथाभूमि भी अयोध्या के आसपास की है। रामलीला का रसिक प्रेम राजकुमारी मैथिली के सामाजिक कार्यों से प्रभावित है। वह उनके रूप का भी प्रशंसक है। वह उनके उपहार फाउंडेशन के लिए चंदा एकत्रित करता है। वह चंदा देने और मैथिली से मिलने अपने दोस्त कन्हैया के साथ निकलता है। घटनाएं कुछ यों घटती हैं कि उसे नई भूमिका निभानी पड़ती है। अपनी प्रिय राजकुमारी के लिए वह नई भूमिका के लिए तैयार हो जाता है।
Movie : Prem Ratan Dhan Payo
Director : Sooraj R. Barjatya
Cast : Salman Khan, Sonam Kapoor, Neil Nitin Mukesh, Anupam Kher, Swara Bhaskar
साधारण जिंदगी को दिखाया सबसे खूबसूरत
हम देखते हैं कि वह साधारण कॉमन सेंस से राज परिवार की जटिलताओं को सुलझा देता है। वह उनके बीच मौजूद गांठों को खोल देता है। वह उन्हें उनके अहंकार और स्वार्थ से मुक्त करता है। कहीं न कहीं यह संदेश जाहिर होता है कि साधारण जिंदगी जी रहे लोग प्रेम और रिश्तों के मामले में राजाओं यानी अमीरों से अधिक सीधे और सरल होते हैं।
भव्य और आकर्षक सेट
प्रेम रतन धन पायो का सेट कहानी की कल्पना के मुताबिक भव्य और आकर्षक है। सूरज बड़जात्या अपने साधारण किरदारों को भी आलीशान परिवेश देते हैं। उनकी धारणा है कि फिल्म देखने आए दर्शकों को नयनाभिरामी सेट दिखें। लोकेशन की भव्यता उन्हें चकित करे। इस फिल्म का राजप्रासाद और उसकी साज-सज्जा में भव्यता झलकती है। रियल सिनेमा के शौकीनों को थोड़ी दिक्कत हो सकती है, लेकिन हिंदी सिनेमा में मनोरंजन का यह एक प्रकार है, जिसे अधिकांश भारतीय पसंद करते हैं।
नहीं दिखती नकारात्मकता
सूरज बड़जात्या की फिल्मों में नकारात्मकता नहीं रहती। इस फिल्म में उन्होंने चंद्रिका के रूप में एक नाराज किरदार रखा है। राजसी परिवार से जुड़ी होने के बावजूद वह सामान्य जिंदगी पसंद करती है, लेकिन अपना हक नहीं छोड़ना चाहती। सूरज बड़जात्या अपनी फिल्म में पहली बार समाज के दो वर्गों के किरदारों को साथ लाने और सामान्य से विशेष को प्रभावित होते दिखाते हैं। यह कहीं न कहीं उस यथार्थ का बोध भी है, जो वर्तमान परिवेश और माडर्निटी का असर है।
स्क्रिप्ट के मुताबिक रखी एकरूपता
हिंदी फिल्मों में सिर्फ मूंछें रखने और न रखने से पहचान बदल जाती है। इस फिल्म के अनेक दृश्यों में कार्य-कारण खोजने पर निराशा हो सकती है। तर्क का अभाव दिख सकता है, लेकिन ऐसी फिल्में तर्कातीत होती हैं। प्रेम रतन धन पायो सूरज बड़जात्या की फंतासी है। सलमान खान प्रेम और विजय सिंह की दोहरी भूमिकाओं में हैं। उन्होंने दोनों किरदारों में स्क्रिप्ट की जरूरत के मुताबिक एकरूपता रखी है। हां, जब प्रेम अपने मूल स्वभाव में रहता है तो अधिक खिलंदड़ा नजर आता है।
सोनम कपूर का सौंदर्य और गरिमा
सोनम कपूर की मौजूदगी सौंदर्य और गरिमा से भरपूर होती है। भावों और अभिव्यक्ति की सीमा में भी वह गरिमापूर्ण दिखती हैं। सूरज बड़जात्या ने उनकी इस छवि का बखूबी इस्तेमाल किया है। नील नितिन मुकेश के किरदार को अधिक स्पेस नहीं मिल सका है। स्वरा भास्कर अपने किरदार को संजीदगी से निभा ले जाती हैं। उनका आक्रोश वाजिब लगता है। अनुपम खेर लंबे समय के बाद अपने किरदार में संयमित दिखे हैं। गीत-संगीत फिल्म में दृश्यों और किरदारों के अनुरूप है। दो गानों अधिक हो गए हैं। उनके बगैर भी फिल्म ऐसी ही रहती। इस बार अंताक्षरी तो नहीं है, लेकिन उसकी भरपाई के लिए फुटबॉल मैच है।
Review by: Ajay Brahmatmaj
abrahmatmaj@mbi.jagran.com