कानपुर में रहने वालों के लिए कटियाबाज सिर्फ एक फिल्म नही है बल्कि एक जरिया है जिससे कानपुर में बिजली की समस्या के सभी पहलुओं को उन लोगों तक पहुंचाया जा सके जिनके हाथों से कुछ साल्‍युशन निकल सकता है. बिजली चोरी की समस्या से लेकर उसके कारणों और इससे इफेक्‍ट होने वाले लोगों की जिंदगियों पर प्रकाश डालती है.


फिल्म शुरू होती है कानपुर के एक आम चौराहे से जहां लोहा सिंह एक बिजली के खंबे पर चढ़े हैं. अपनी जींस के पीछे प्लास लगाकर चलने वाले लोहा सिंह एक बैखोफ कटियाबाज हैं जो अपनी मजबूत कटिया के इलाके भर में मशहूर हैं. वह दावा करते हैं कि कितनी भी तेज आंधी आ जाए लेकिन उनकी कटिया नही हिल सकती. कानपुर के छोटे व्यापारियों के लिए लोहा सिंह एक तरह से रॉबिनहुड हैं जो अपनी जान जोखिम में डालकर गरीब कारीगरों के लिए बिजली की व्यवस्था करते हैं. बिजली चोरी के साथ कानपुराइट्स का जीवन जैसे तैसे चल रहा था कि तभी एंट्री होती है एक सख्त और पॉजिटिव केस्को ऑफीसर रितु महेश्वरी की. रितु केस्को के रेवेन्यू को बढ़ाने और कानपुर में बिजली चोरी रोकने के लिए अपने लेबल पर कोशिश स्टार्ट करती है. इस जुगत में रितु अपने डिपार्टमेंट के लोगों को बिजली चोरी करने वालों के कनेक्शन काटने और उन पर सख्त से सख्त जुमार्ना लगाने का आदेश देती है. इससे बिना बिल दिए एसी और कटिया से पूरी की पूरी फैक्टरी चलाने वालों के लिए आफत आ जाती है. तब एंट्री लेते हैं सपा MLA इरफान सोलंकी जो अपने फॉलोअर्स की बात लेकर रितु से मिलने उनके दफ्तर पहुंचते हैं. जिसके बाद फीमेल ऑफीसर से मिसबिहेव के चलते उन पर केस रजिस्टर हो जाता है. Proudcer: GlobalistanFilmsDirector:  Deepti Kakkar, Fahad MustafaCast: Loha Singh, Ritu Maheshwari Rating: 4/5 starइस केस में बेल मिलने के साथ ही शुरू होता है एक कुचक्र जिसके चलते रितु का ट्रांसफर हो जाता है. स्टेट में गवरमेंट बदल चुकी है और इरफान सोलंकी की ताकत पहले से काफी बढ़ चुकी है. चुनाव जीतने के साथ वह अपनी सर्पोटर पब्लिक को याद दिलाते हैं कि कैसे उन्हों ने बुनकर समाज के बिजली जुर्माने के मामले में राहत दिलवाई. इसके साथ ही बिना बिजली के जी रही कानपुर की जनता इरफान सोलंकी की बढ़ते वोल्टेज को देखकर उनकी जयजयकार करने लगती हैं. क्यों देखें यह फिल्म
बेशक टैक्निकल मायने में ये एक फीचर फिल्म नहीं बल्कि किसी स्टिंग आपरेशन की तरह रियल इंसीडेंटस को जोड़ जोड़ कर बनाया गया एक डाक्युमेंट्री नहीं बल्कि डाक्यु ड्रामा है. पर हिंदुस्तान के किसी भी शहर की टिपिकली पर्सनल प्राब्लम की कहानी कैसे बनती है ये उसका सटीक एग्जांपल है. फिल्म में स्टार पॉवर नहीं है पर इलेक्ट्रिक की पॉवर से जन्मी पॉवरफुल प्राब्लम्स को बताती कहानी इसकी सुपर स्टार है जिसमें डायरेक्टर फहद मुस्तफा का कनपुरिया होना एकदम परफेक्ट तड़का लगाता है.   कानपुर में बिजली की प्राब्लम को तटस्थ रूप से दिखाते हुए यह फिल्म किसी को भी हीरो या विलेन नही बनाती है लेकिन केस्को ऑफिसर के शहर को बिजली देने के प्रयासों और सभी स्टेकहोल्डर्स के पक्षों को ईमानदारी से आपके सामने रखती है. फिल्म के डायरेक्टर्स द्वारा ढाई साल तक लगातार गर्मी और पसीने के बीच कानपुर की गलियों और मोहल्लों में शूटिंग करने के बाद यह फिल्म बन पाई है. फिल्म की एडिटिंग और परफेक्ट टाईमिंग इसे सिनेमैटिक मिरेकल बनाती है. इसलिए इस फिल्म को एक बार देखना तो बनता ही है.

Reviewed by: anant.prakash@inext.co.in

Posted By: Prabha Punj Mishra