हैदर विलियम शेक्सपियर के नाटक हैमलेट पर बेस्ड ट्रेजिडी मूवी है जिसमें बबार्द होती फेमिली बान्डिंग्स और रिश्तों में टूटते हुए विश्वास की कहानी है. फिल्म का बैकड्रॉप नाइंटीज में टैरेरिज्म से जूझते कश्मीर का है.


कहानी शुरू होती है श्रीनगर के डॉक्टर हिलाल (नरेन्द्र झा) से जो अपने घर में छुपा कर एक टैरेरिस्ट का ट्रीटमेंट करते हैं और खबर लीक होने पर इंडियन आर्मी उनके घर को निशाना बनाती है और डॉक्टार हिलाल को ले जाती है. इसके बाद उनका कोई पता नहीं चलता. उनकी वाइफ ग़ज़ाला (तब्बू) अपने देवर ख़ुर्रम (के के मेनन) के साथ चली जाती है. हिलाल का बेटा हैदर (शाहिद कपूर) अलीगढ़ में पढ़ता है और इस इंसीडेंट को जानने के बाद जब घर पहुंचता है तो उसे पहली चीज नजर आती है अपनी मदर और अपने अंकल की क्लोजनेस और इंटीमेसी. 


हैदर टूट जाता है और अपने फादर की खोज में लग जाता है. जिसमें उसकी हेल्प करती है उसकी गर्लफ्रेंड अर्शिया (श्रद्धा कपूर). इसी कोशिश उसे मिलता है रूहदार (इरफ़ान ख़ान) जो बताता है कि उसके फादर की डेथ हो गयी है और उनके अगेंस्ट कांस्परेसी करने वाले उसके अंकल और मदर हैं. टूटे और शॉक्ड हैदर की लाइफ का अब एक ही मकसद है अपने फादर की डेथ का रिवेंज.  Proudcer:  Vishal Bhardwaj, Siddharth Roy KapurDirector:  Vishal BhardwajCast:  Shahid Kapoor, Shraddha Kapoor, Tabu, Kay Kay Menon, Irrfan Khan Rating: 4/5 star

इस रिवेंज का प्रयास ही फिल्म की कहानी को बुनता है. लेकिन 'हैदर' सिर्फ बदले की दास्तान नहीं है, प्यार और खूबसूरती वाले कश्मीर की दहलाने वाली सच्चाई दिखाने वाली फिल्म भी है. टैरेरिज्म और अविश्वास वाले कश्मीर की फिल्म 'हैदर', एक टूटे परिवार और मां बेटे के रिलेशन में पहले प्यार और फिर धोखे की ही स्टोरी नहीं सुनाती, बल्कि कश्मीर पर बेहद बेबाक पॉलिटिकल स्टेटमेंट भी लिखती है.

फिल्म बेहद खूबसूरती से स्टार्ट होती है और फर्स्ट हॉफ तक अपना पेस बनाये रखती है जिसे देखने में मजा आएगा. लेकिन सेकेंड हॉफ में फिल्म की स्पीड थम जाती है और ये काफी हद तक डल हो जाती है. काफी हद तक खींची जाने के बाद ओरिजनल प्ले से काफी डिफरेंट क्लाकमेक्स पर अबरप्टली खत्म हो जाती है. जहां तक एक्टिंग की बात है तो ये शाहिद कपूर का लाइफ टाइम रोल है जो उन्हें सच्चे एक्टर का ताज दिलवा देगा. उन्होंने जिस शिद्दत और ईमानदारी से अपने करेक्टर को जिया है वो काबिल ए तारीफ है. श्रद्धा कपूर के बारे में भी ऐसा ही कहा जा सकता है उन्होंने अपना रोल पूरे कंविक्शन और इंटेंसिटी से प्ले किया है. इरफान खान छोटे से रोल में आए और छा गए लेकिन ये बात तब्बू और के के मेनन के बारे में नहीं कही जा सकती. ऐसा नहीं है कि उन्होंने खराब एक्टिंग की है लेकिन उनसे इससे बहुत ज्यादा की उम्मीद थी तब तो और ज्यादा जब उनके रोल में ढेरों पॉसिबलटी हों.  फिल्म का म्यूज़िक बहुत ही बेहतरीन है, गुलज़ार के लिखे लिरिक्स कमाल हैं, स्पेशियली बिस्मिल. जैसा देखने में आया है फिल्म को आज ही रिलीज हुई 'बैंग बैंग' जैसी ओपनिंग नहीं मिली है पर 'हैदर' में अपने दम पर मुकाम बनाने की ताकत है और ये वन टाइम वॉच नहीं बार बार देखी जा सकने वाली फिल्म है जिसके लिए दिल और दिमाग दोनों चाहिए.

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Posted By: Molly Seth