रूमानियत और तरह-तरह के रेखाचित्रण से भरे कोर्टरूम वाली इंडस्‍ट्री में जहां अभियोजन पक्ष के वकील बचाव पक्ष के वकील और जज अन्‍य की तुलना में प्रतिस्‍पर्धा को लेकर कुछ ज्‍यादा ही नाटकीय अंदाज में आ जाते हैं. इन सबसे लबरेज इस मराठी हिंदी गुजराती अंग्रेजी फ‍िल्‍म वाले कोर्ट में निष्पक्ष न्याय एक बेहद मीठे एहसास के रूप में सामने आता है.

फ‍िल्‍म की कहानी पर एक नजर  
कई अवार्ड जीत चुकी इस फ‍िल्‍म के बारे में सबसे अच्‍छी बात ये है कि ये बाहर से देखने में तो काफी साधारण सी नजर आती है, लेकिन जैसे-जैसे आप इसकी कहानी में खुद को उतारते जाते हैं, आपको लगेगा कि आपके सामने एक गहरी व्‍यवहारिक फ‍िल्‍म की काफी रमणीय रहस्‍यभरी परतें खुलती जा रही हैं. आप धीरे धीरे एक गहरा व्यावहारिक फिल्म की परतों के एक रमणीय स्ट्रिपिंग करने के लिए इलाज कर रहे हैं, जो मोटे तौर पर देश की न्यायपालिका प्रणाली के बारे में बात करती है.
ऐसे आगे बढ़ती है कहानी
ये कहानी है लोकगायक और दलित कार्यकर्ता नारायण कुंबले (वीरा साथीदार) के इर्द–गिर्द घूमती है, जो मजदूरों के जन-जागरण के लिए गीत गाता है. इनपर राजद्रोह का आरोप और कथित तौर पर वासुदेव पवार को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगता है. पुलिस का मानना है कि कुंबले के गाए गाने ने पवार को खुद को खत्‍म के लिए मजबूर किया है. उसने बिना किसी सुरक्षा साधन के खुद को गटर के अंदर बंद करके आत्‍महत्‍या कर ली.
U/A, Drama
Movie Review: Court
Starring: Vira Sathidar, Vivek Gomber, Geetanjali Kulkarni
Director: Chaitanya Tamhane

 

न्‍यायापालिका के पुरातन कानूनों को लाती है सामने
उनपर लगे आरोपों को लेकर केस ट्रायल पर चल रहा है. कुंबले के हताश बचाव पक्ष के वकील विनय वोरा (विवेक गोम्‍बर) इस उम्रदराज कार्यकर्ता को बेल दिलाने के लिए काफी संघर्ष करते हैं, जबकि अभियोजन पक्ष की वकील नूतन (गीतांजलि कुलकर्णी) उन्‍हें बिना किसी सजा के आजाद नहीं होने देना चाहतीं. यहां तक कि कहानी को कहीं पर भी न मोड़ते हुए नवोदित निर्देशक चैतन्य तम्हाने हर रोज की कोर्टरूम की जिंदगी से कुछ न कुछ नया लाते दिखाई दे देते हैं. यह उस निराशा और बेबसी को उजागर करती है जो न्यायपालिका प्रणाली के पुरातन कानूनों को सामने लाती है.
भावुकता के साथ आगे बढ़ती है कहानी
फ‍िल्‍म की कहानी नूतन की ठेठ मिडल क्‍लास जिंदगी और जज सदावर्ते (प्रदीप जोशी) के साथ आगे बढ़ती है, जो चर्चा के रूप में अपनी सीमित मानसिकता को सामने लाकर रख देते हैं. वे इस प्रकार की विडंबना को लाकर सामने रखते हैं कि अब प्रगतिशील, निडर और ईमानदार कार्यकर्ता कांबले के भाग्‍य का फैसला करने बैठे लोग भावुक हो जाते हैं.
बेहतरीन है फ‍िल्‍म की कास्टिंग और प्रोडक्‍शन
इस बोल्‍ड और आत्‍मा को छू लेने वाली कहानी की प्रेरणादायक कास्टिंग फ‍िल्‍म को आश्वस्त दिशा दिलाने में काफी मदद करती है. फ‍िल्‍म के कास्टिंग डायरेक्‍टर हैं सचित पुरानिक और फ‍िल्‍म का प्रोडक्‍शन डिजाइन (सोमनाथ पाल और पूजा तलरेजा का) भी काफी अच्‍छा है. गीतांजलि की भी परफॉर्मेंस काफी अच्‍छी रही है. अन्‍य कलाकारों ने भी फ‍िल्‍म की कहानी को बेहतरीन अंदाज में उकेरने के लिए काफी मेहनत की है. वहीं गोम्‍बर ने भी अपनी गुजराती व्‍यक्तित्‍व के साथ किरदार में उतरने के लिए काफी मेहनत की है.
Review by :Shubha Shetty Saha
shubha.shetty@mid-day.com

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