Movie Review: छठे दशक के बॉम्बे की कहानी कहती बेहतरीन फिल्मों में शुमार होगी फिल्म 'बॉम्बे वेल्वेट'
इस कहानी के पीछे एक बड़ी कहानी:
अनुराग की 'बॉम्बे वेल्वेट' 1949 में आरंभ होती है. आजादी मिल चुकी है. देश का बंटवारा हो चुका है. मुलतान और सियालकोट से चिम्मन और बलराज आगे-पीछे मुंबई पहुंचते हैं. चिम्मन बताता भी है कि दिल्ली जाने वाली ट्रेन में लोग कट रहे थे, इसलिए वह बॉम्बे की ट्रेन में चढ़ गया. बलराज अपनी मां के साथ पहुंचता है. ऐसी मां, जिसने उसे पाला था और जो बाद में उसे छोड़ कर चली जाती है. चिम्मन और बलराज पोर्ट सिटी बॉम्बे में कुछ हासिल करने का ख्वाब देखते हैं. बलराज का जल्दी से 'बिग शॉट' बनना है. उसकी ख्वाहिश को खंबाटा भांप लेता है. खंबाटा को बलराज की आक्रामकता और पौरूष भाता है. वह चंद मुलाकातों में ही स्पष्ट कर देता है कि वह बलराज का इस्तेमाल करेगा. बलराज इसके लिए तैयार है, लेकिन वह अपना हिस्सा चाहता है. उसे इस्तेमाल होने में ऐतराज नहीं है. उसे तो जल्दी से जल्दी अपना बलराज टावर देखना है. बलराज की ख्वाहिशों में खंबाटा की साजिशों के मिलने से ड्रामा क्रिएट होता है. इस ड्रामें में रोजी, जिम्मी मिस्त्री और मेहता शामिल होते हैं. फ्रंट में चल रही इस कहानी के पीछे एक बड़ी कहानी चल रही होती है, जिसमें गटर में समा रहे बॉंम्बे का भविष्य तय किया जा रहा है. पॉलिटिशियन, गैंगस्टर, अखबारों के एडिटर और अन्य कई कैरेक्टर अपनी भूमिकाएं निभा रहे हैं.
Bombay Velvet
DIR:Anurag Kashyap
CAST:Anushka Sharma,ranveer kapoor,Karan Johar,
पांचवें और छठे दशक का बॉम्बे:
'बॉम्बे वेल्वेट' एक साथ बलराज और रोजी की प्रेमकहानी और मुंबई शहर के विकास की कहानी भी है. मिल मजदूरों के कब्रिस्तान पर चमकती क्वीन नेकदेस की यह दास्तान महानगर के परतों में उतरती तो है, लेकिन वहां रुकती नहीं है. अनुराग बार-बार देश की राजनीति और बॉम्बे में चल रहे विकास के कुचक्र की ओर इशारा करते हैं.वे संवादों में ही घटनाओं और प्रसंगों को समेट देते हैं. फिल्म के लेखक, निर्देशक और किरदार राजनीति से बचते हुए निकल जाते हैं. इस परहेज की यही वजह हो सकती है कि भारत में फिल्में राजनीतिक होते ही मुश्किलों में फंस जाती हैं. इस परहेज के बावजूद 'बॉम्बे वेल्वेट' पांचवें और छठे दशक की सामाजिक और राजनीतिक घटनाओं का उल्लेख जरूर करती है. हम उन घटनाओं के प्रभाव भी देखते हैं.अनुराग कश्यप की सोच और निर्देशन की खूबियों का हम 'बॉम्बे वेल्वेट' में कई स्तरों पर देखते हैं. इस पैमाने पर हिंदी में कम फिल्में बनी हैं.'बॉम्बे वेल्वेट' में पांचवें और छठे दशक का बॉम्बे है.
मेकअप और गेटअप पर ध्यान:
प्रोडक्शन डिजायनर सोनल सावंत और कॉस्ट्यूम डिजायनर निहारिका खान ने उस काल को वास्तु, वेशभूषा और लुक के जरिए उतारा है. उन्होंने आज के कलाकरों को उस काल के किरदारों में ढाल दिया है. फिल्म देखते समय यह एहसास नहीं रहता कि हम 2015 के कलाकारों को 1969 के किरदारों में देख रहे हैं. रणबीर कपूर ने स्वयं कहा है कि उन्होंने किशोर कुमार, राज कपूर और रॉबर्ट डिनेरो से प्रेरणा ली है. लुक में वे कहीं से भी प्रेरित हो सकते हैं, लेकिन मिजाज में वे इस फिल्म के ग्रे किरदार ही हैं. पुराने बॉम्बे के क्रिएशन में उस समय की इमारतों और सवारियों का प्रमुखता से उपयोग किया गया है. दीवारों के साथ दिखते इश्तहारों और पृष्ठभूमि में चलते-फिरते लोगों के भी मेकअप और गेटअप पर ध्यान दिया गया है. पीरियड रचने में यह फिल्म पूरी तरह से सफल रही है. शुरू होते ही फिल्म दर्शकों को उस कालखंड में लेकर चली जाती है.
रोजी के किरदार को उसकी खूबियों:
'बॉम्बे वेल्वेट' के कलाकरों के चयन की तारीफ करनी होगी. पहले तो छोटे-मोटे किरदारों में भी सटीक कास्टिंग का श्रेय कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा को मिलना चाहिए. उन्होंने खयाल रखा है कि वे स्वाभाविक और फिल्म की संगत में दिखें. प्रमुख कलाकारों में पहले विवान शाह और मनीश चौधरी की बात करें तो उन्होंने सीमित दृश्यों में भी प्रभावित किया है. खास कर मनीश चौधरी लुक और बॉडी लैंग्वेज से किरदार को सही रूप देते हैं. अनुष्का शर्मा ने सिंगर रोजी के किरदार को उसकी खूबियों और विवशताओं के साथ चित्रित किया है. जवानी में भी बचपन के दुखद अनुभवों से खिन्न रोजी को जब इलराज का बेइंतहा प्यार मिलता है तो वह भी मोहब्बत में पैशन दिखाती है. नाटकीय और रोमांटिक दृश्यों में उनकी संयमित इंटेनसिटी किरदार को प्रभावशाली बनाती है. रोजी जैज सिंगर है. फिल्म में गानों के दृश्य में अनुष्का को माइक के सामने लक-दक कॉस्ट़्यूम में खड़े होकर गीतों के भाव को चेहरे पर लाना था. ज्यादा मूवमेंट की गुंजाइश नहीं थी. धड़ाम, सेल्विया और नाक पर गुस्सा गानों में वह एक ही पोजीशन में होते हुए भी एक्सप्रेशन में सफल रही हैं.
बेहतरीन फिल्मों में शुमार होगी:
बलराज की भूमिका में रणबीर कपूर उद्घाटन हैं. अभी तक उनका यह रूप सामने नहीं आया था. उन्होंने बलराज के गुस्से, ख्वाहिश और बिग शॉट बनने की तमन्ना को पूर आत्मविश्वास से प्रकट किया है. गुस्से में लहराते हुए लंबे डग लेकर चलते हुए जब वे सामने वाले को घूंसा मारते हैं तो नाराजगी की तीव्रता जाहिर होती है. 'बॉम्बे वेल्वेट' के सरप्राइज हैं करण जौहर. उन्होंने धूर्त्त और नापाक इरादों के हैवान इंसान खंबाटा के किरदार को ठंडे तरीके से पेश किया है. उनकी आंखें, भौं और होंठों की टेढ़ी मुस्कान खंबाटा को साक्षात खड़ी कर देती है.अनुराग कश्यप की 'बॉम्बे वेल्वेट' हिंदी की बेहतरीन फिल्मों में शुमार होगी. इस फिल्म में उन्होंने क्रिएटिव ऊंचाई हासिल की है. वे हिंदी सिनेमा को नए लेवल पर ले गए हैं. निश्चित ही उनकी अगुआई में इस फिल्म की रिसर्च, लेखन और टेक्नीकल टीम ने उल्लेखनीय काम किया है.