Movie review: 'मार्गरिटा विद ए स्ट्रा' विकलांग desire की अभिव्यक्ति
कहानी एक नया मोड़ लेती है हर किरदार के साथ
मार्गरिटा विद ए स्ट्रा लैला के साथ ही उसकी मां, पाकिस्तानी दोस्त खानुम, गुमसुम व सर्पोटिंग पिता, नटखट भाई और लैला की जिंदगी में आए अनेक किरदारों की समिलित कहानी है, जो संबंधों की अलग-अलग परतों में मौजूद हैं. वे साथी अपने हिस्से के प्रसंगों में धड़कते हैं और कहानी के प्रभाव को बढ़ाते हैं. सेरेब्रल पालसी की वजह से अक्षम लैला क्रिएटिव और इमोशनल स्तर पर बेहद सक्षम है. ऊपरी तौर पर उसे मदद और भावनात्मक संबल की जरूरत है. शोनाली ने इस किरदार को गढऩे में उसे पंगु नहीं होने दिया है. वह लैला के प्रति सहानुभूति जुटाने के लिए दृश्य नहीं रचतीं. इस फिल्म में मेलोड्रामा की पूरी संभावनाएं थीं. वह लैला और उसकी मां को रोते हुए किरदार में बदल सकती थीं, लेकिन फिर वह अपने कथ्य को आंसुओं में डुबो देतीं. फिल्म सभी संबंधों की परतें खोलती हैं. फिल्म देखते हुए हम संवेदनात्मक रूप से समृद्ध होते हैं. नए संबंधों से परिचित होते हैं. संबंधों के इन पहलुओं को पहले काफी नजदीक से नहीं देखा हो तो बार-बार सिहरन होती है. कुछ नया उद्घाटित होता है. हर किरदार के साथ कहानी एक नया मोड़ लेती है और रिश्तों का नया आयाम दिखा जाती है. मार्गरिटा विद ए स्ट्रा सही मायने में रोचक और रोमांचक फिल्म है. भरपूर इमोशनल थ्रिल है इसमें.आत्मसात कर लिया लैला का किरदारशोनाली बोस को कल्कि कोइचलिन का पूरा सहयोग मिला है. उन्होंने लैला को आत्मसात कर लिया है. हाव-भाव और अभिव्यक्ति में वह कोई कसर नहीं रहने देतीं. कल्कि ने इस किरदार को आंतरिक रूप से पर्दे पर जीवंत किया है. सेरेब्रल पालसी की वजह से किरदार की गतिविधियों में आने वाली स्वाभाविक भंगिमाओं को जज्ब करने के साथ ही उन्होंने उसकी मानसिक क्षमताओं को भी सुंदर तरीके से जाहिर किया है. उन्हें सयानी गुप्ता और रेवती का बराबर साथ मिला है. रेवती ने मां की ममता और भावना के बीच सुंदर संतुलन बिठाया है. बेटी के लिए चिंतित होने पर भी वह नई चीजों को लेकर असहज नहीं होतीं और न हाय-तौबा मचाती हैं. ऐसे किरदार को पर्दे पर उतारना सहज नहीं होता.Movie Review: Margarita With A StrawStarring: Kalki Koechlin, Revathy, Sayani GuptaDirector: Shonali Bose, Nilesh Maniyar
मार्गरिटा विद ए स्ट्रा माता-पिता और बेटी-बेटों के साथ देखी जाने वाली फिल्म है. हां, उनका वयस्क होना जरूरी है. भारतीय समाज में अभी समलैंगिकता की सही समझ विकसित नहीं हुई है. इसे या तो रोग या फिर जोक माना जाता है. हिंदी फिल्मों में समलैंगिक किरदार हास्यास्पद होते हैं. लैला के जरिए शोनाली बोस एक साथ अनेक सामाजिक ग्रंथियों को छूती हैं. वह कहीं भी समझाने और सुधारने की मुद्रा में नहीं दिातीं. उनके किरदार अपनी जिंदगी के माध्यम से सब कुछ बयान कर देते हैं.Review by: Ajay Brahmatmajabrahmatmaj@mbi.jagran.comHindi News from Bollywood News Desk Shonali Bose, Nilesh Maniyar