Movie review : 'गौर हरि दास्तान' की उदास दास्तान
पत्रकारिता के बदलते मूल्य
गौर हरि दास्तान एक गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी की बायोपिक है, जिसमें उन्हें आजाद देश में अपने हक के लिए जूझते हुए दिखाया गया है। निर्देशक अनंत महादेवन ने गौर हरि को शांत बहती नदी की तरह चित्रित किया है। बिफरने और चिल्लाने के अवसरों पर भी उनकी सौम्य शांति विचलित करती है। विनय पाठक अपने अभिनय के विचलन की तीव्रता बढ़ा देते हैं। फिल्म में एक अखबार और उसके पत्रकार का भी चित्रण है। गौर हरि की दास्तान के बहाने यह फिल्म आज की पत्रकारिता के बदलते मूल्यों को भी सामने लाती है। सरोकारी पत्रकार किस तरह मीडिया हाउस और समाज के लिए अनफिट या मिसफिट हो रहे हैं?
किरदार नही हैं जल्दबाजी में
सभी कलाकारों के संजीदा अभिनय से गौर हरि दास्तान प्रभावशाली बन गई है। विनय पाठक अपने उत्कर्ष पर हैं तो कोंकणा सेन शर्मा, तनिष्ठा चटर्जी और रणवीर शौरी भी अपनी भूमिकाओं में विलक्षण हैं। पूरी फिल्म में एक उदासी है। यह उदासी किरदारों की कथा और परेशानी से और बढ़ती रहती है। हम हिंदी फिल्मों में मुंबई के भिन्न रूपों को देखते रहे हैं। गौर हरि दास्तान की कहानी भी मुंबई की है, जो शहर के शोर-गुल के बीच शांति, आस्था और धैर्य के विजय की कहानी कहती है। ऐसा लगता है कि वक्त की रफ्तार यहां धीमी है। फिल्म के किरदार मुंबई में रहते हुए भी किसी होड़ या जल्दबाजी में नहीं हैं।
Review by: Ajay Brahmatmaj
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