फिल्म दिल बेचारा सुशांत सिंह राजपूत के फैन्स के लिए फिल्म नहीं इमोशन बन गई है। उनकी आखिरी फिल्म के रूप में इसे ट्रिब्यूट माना जा रहा है। बड़ी वजह यह भी है कि फिल्म की कहानी और सुशांत सिंह की जिंदगी दोनों में काफी समानताएं हैं। आइए पढ़ें पूरा रिव्यू।

फिल्म : दिल बेचारा
कलाकार : सुशांत सिंह राजपूत, संजना सांघी, सैफ अली खान, स्वास्तिका मुख़र्जी, सास्वत चटर्जी, साहिल वैद
निर्देशक : मुकेश छाबड़ा
लेखन टीम : शशांक खेतान और सुप्रतिम सेनगुप्ता

रेटिंग : तीन स्टार

फिल्म जॉन ग्रीन के उपन्यास "द फॉल्ट इन आवर स्टार्स" पर बनी हॉलीवुड फिल्म का ही हिंदी रूपांतर है। छोटे शहर में दो किरदार, दोनों आधे-अधूरे एक दूसरे को जिंदगी जीने का सलीका सिखाते हैं। मुकेश छाबड़ा की यह फिल्म प्योर लव स्टोरी है। छोटे शहर जमशेदपुर का बैकड्रॉप है। ए आर रहमान का मधुर संगीत है।कमाल का कैमरा वर्क है। हालाँकि कहानी का नैरेटिव और संवाद कमजोर हैं। सुशांत सिंह राजपूत ने अपनी अभिनय शैली में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मरने के बाद भी हँसते हुए जीना क्यों जरूरी है, जिन्दगी कैसे जी जा सकती है यह अपने हाथों में क्यों होती है, कुछ-कुछ राजेश खन्ना की फिल्म आनंद की याद क्यों दिलाती है।

क्या है कहानी
किजी (संजना) थायराॅड कैंसर से ग्रसित है। जमशेदपुर में वह अपने मां और पापा के साथ रह रही है। बंगाली परिवेश से है। जमशेदपुर को ध्यान में रखते हुए शायद मेकर ने यह परिवेश रखा हो। चूंकि वहां बंगाली मूल के कई लोग रहते हैं। किजी की मुलाकात इमैन्युल राजकुमार जूनियर उर्फ़ मैनी (सुशांत सिंह राजपूत) से होती है। मैनी भी बोन कैंसर से ग्रसित है। लेकिन वह रजनीकांत का फैन है और जिंदगी के सारे मजे वैसे ही लेना चाहता है। वह मस्तमौला है और बेफिक्र है। भोजपुरी फिल्म बनाना चाहता है। किजी एक म्यूजिशियन अभिमन्यु वीर ( सैफ अली खान) की फैन है। वह जानना चाहती है कि उसने आखिरी गाना अधूरा क्यों छोड़ा। मैनी हर हाल में किजी की यह ख्वाहिश पूरी करना चाहता है। क्या मैनी ख्वाहिश पूरी कर पाता है। यहीं फिल्म का सार है। दरअसल, फिल्म की कहानी जिस कदर आगे बढ़ती है और जैसे-जैसे सुशांत फ्रेम में आते हैं। किसी सफल कलाकार का यूं चले जाने का अहसास मायूस कर जाता है।चूंकि उन्होंने अपनी बाकी फिल्मों की तरह इस फिल्म में भी बहुत ही स्वाभाविक अभिनय किया है।

क्या है अच्छा
फिल्म में मेलोड्रामा नहीं है। किरदार स्वाभाविक है, परिवेश स्वाभाविक हैं। मुकेश की इस फिल्म का हीरो कैमरा है, उसने छोटे से शहर को बेहद खूबसूरती से कहानी के मुताबिक अपने फ्रेम में उतारा है। कहानी सिंपल है और अवधि लंबी नहीं है। मुकेश की पहली फिल्म है और उन्हें कई फिल्मकारों का सहयोग इस फिल्म के लिए मिला है। शायद यहीं वजह है कि हां, यह किसी निर्देशक की पहली फिल्म नहीं लगती।

View this post on Instagram Here&यs presenting to you, our labour of love. The #DilBecharaTrailer is out NOW. He was the one who healed her, and took away her pain by celebrating each and every little moment that mattered. We miss you so much, Sushant. Thank you, for all your love, the memories, the laughter and films. #SushantSinghRajput @castingchhabra #SaifAliKhan @arrahman @shashankkhaitan @swastikamukherjee13 @sahilvaid24 @saswatachatterjeeofficial @suprotimsengupta @amitabhbhattacharyaofficial @foxstarhindi @disneyplushotstarvip @sonymusicindia @mukeshchhabracc

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क्या है बुरा
फिल्म के दो संवादों के शेष बेहद जल्दबाजी में लिखे गये संवाद लगते हैं। फिल्म का नैरेटिव अन्य फिल्मों की तरह है। उसमें नवीनता नहीं है। सैफ अली खान के किरदार में विस्तार न देने से कहानी थोड़ी कन्फ्यूज करती है। मुकेश के पास सुशांत सिंह जैसे अभिनेता थे, वह चाहते तो उन्हें और निखार दे सकते थे। इस बात का अफसोस ताउम्र रहेगा सिनेमा प्रेमियों के लिए कि वह सुशांत सिंह को आखिरी बार इस फिल्म में देख रहे हैं।

अदाकारी
सुशांत सिंह राजपूत ने एक जीवंत किरदार निभाया है। काश, वह ऐसे और किरदार निभाने के लिए जिंदा रहते। 'काई पो चे' से 'सोन चिड़िया', 'छिछोरे', 'एमएस धोनी: अनटोल्ड स्टोरी', 'केदारनाथ' और अब इस फिल्म में उनके अभिनय का शानदार रेंज दिखता है। उन्होंने हरफनमौला किरदार निभाया है। संजना के लिए पहली फिल्म है और उन्होंने मैच्योर किरदार निभाया है। उनेक दोस्त के किरदार में साहिल वैद ने भी अच्छा अभिनय किया है। माता-पिता के रूप में स्वास्तिका मुखर्जी, सास्वत चटर्जी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है, सैफ केवल एक दृश्य में हैं। लेकिन उसमें भी वह सार्थक नजर आये हैं।

वर्डिक्ट
फिल्म को सुशांत सिंह राजपूत के लिए ट्रिब्यूट माना जा रहा है और पूरे देश में उनके फैन्स इस फिल्म को पसंद कर रहे हैं और उनपर प्यार लुटा रहे हैं। कई तरह के रिकार्ड बना रही है फिल्म।

Review By: अनु वर्मा

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari