Movie review: दो भाइयों के इमोशन और एक्शन को बयां करती फिल्म 'ब्रदर्स'
दोनों भाई अलग हो जाते
ब्रदर्स हालवुड की फिल्म वॉरियर (2011) की रीमेक है। निर्देशक करण मल्होत्रा ने 2012 में अमिताभ बच्चन की 1990 की फिल्म अग्निपथ की रीमेक बनाई थी, जिसमें रितिक रोशन थे। रीमेक फिल्मों में निर्देशक की मौलिकता इतनी ही रहती है कि वह मूल के करीब रहे और उसकी लोकप्रियता को भुना सके। पिछली बार अग्निपथ में करण मल्होत्रा सफल रहे। इस बार ब्रदर्स के लिए वही बात नहीं कही जा सकती।ब्रदर्स नाम के अनुरूप दो भाइयों मोटी और डेविड की कहानी है। दोनों सौतेले भाई हैं। दरअसल, उनके पिता डेविड की दूसरी शादी उनके परिवार में विघ्न डालती है। डेविड नशेबाज और आक्रामक हो जाता है। एक बार वह अपनी बीवी मारिया पर हाथ उठाता है तो वह ऐसे गिरती है कि उसकी मौत हो जाती है। डेविड अपने पिता का माफ नहीं कर पाता। उसे सौतेले छोटे भाई पर भी गुस्सा आता है कि उसकी वजह से यह टंटा हुआ और उसकी मां का देहांत हो गया। हैरी जेल चला जाता है। और दोनों भाई अलग हो जाते हैं।
Film: Brothers
Director: Karan Malhotra
cast: Akshay Kumar,Sidharth Malhotra,Jackie Shroff,Jacqueline Fernandez,
मिक्स्ड मार्शल आर्ट का प्रयोग
फिल्म हैरी के जेल से छूटने के समय आरंभ होती है। कहानी बार-बार फ्लैशबैक में जाती है और पुराने दृश्य किसी हॉरर फिल्म के भूतों की तरह अचानक प्रकट होते हैं। वर्तमान और फ्लैशबैक का यह मिश्रण झटका ही देता है। इंटरवल के पहले फिल्म ऊबाऊ तरीके से परिवार की कहानी कहती है। हम फिल्म के टेकिंग पाइंट तक आने में ही ऊब जाते हैं। दोनों भाइयों के आमने-सामने आने और रिंग में मुकाबले के लिए उतरने के पहले फिल्म धीमी और प्रभावहीन है। इंटरवल के बाद दोनों भाइयों के मुकाबले के दृश्य रोचक और प्रभावपूर्ण हैं। इस फिल्म में मिक्स्ड मार्शल आर्ट का इस्तेमाल किया गया है। फाइट फिल्मों के शौकीन दर्शकों के लिए यह फिल्म इंटरेस्टिंग हो सकती है। पहली बार इस स्तर और कौशल का फाइट पर्दे पर दिखाई पड़ा है। इस संदर्भ में अक्षय कुमार और सिद्धार्थ मल्होत्रा की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने अपनी भूमिकाओं के लिए जरूरी मेहनत की है। रिंग में बॉक्सर के रूप में उन्हें देख कर उत्तेजना होती है।
एक्सप्रेशन के दायरे में क्यों
दिक्कत यह है कि दर्शकों को पता है कि हिंदी फिल्मों की रीति के मुताबिक बड़ा भाई और सीनियर एक्टर ही जीतेगा, इसलिए उत्सुकता दबी-दबी ही रहती है।पिता के रूप में जैकी श्राफ प्रभावशाली रहे हैं। यह किरदार की खासियत है, जिसे जैकी ने अपने अंदाज में जीवंत कर दिया है। निर्देशक ने एक ही तरह के सीन देकर उन्हें लिमिट किया है। निर्देशक की यह सीमा अन्य किरदारों के निर्वाह में भी नजर आती है। अक्षय कुमार एक्शन दृश्यों में जमे हैं। यह उनकी विशेषता भी है। इस फिल्म में उन्हें फैमिली पर्सन के तौर पर भी दिखाया गया है। उन्होंने किरदार की पीड़ा को समझा और अपने अभिनय में उतारा है। सिद्धार्थ मल्होत्रा एक्शन दृश्यों में ठीक है। वे एक ही किस्म के एक्सप्रेशन के दायरे में क्यों रह गए? नए कलाकारों में यह कमी उभर कर आ रही है। वे पूरी फिल्म एक ही मुद्रा और भाव में निभाते हैं, जबकि दृश्यों में अन्य भावों की भी संभावना रहती है। करण मल्होत्रा की ब्रदर्स उनकी पिछली फिल्म अग्निपथ के प्रभाव में है।
Review by: Ajay Brahmatmaj
abrahmatmaj@mbi.jagran.com