क्या मार्स वन मिशन एक झूठ है?
शायद इसलिए भी क्योंकि यह अंतरिक्ष मिशन उस सपने को पूरा करने का वादा करता है, जिसे मानव जाति बरसों से देखती रही है- लाल ग्रह की धरती पर इंसान के क़दम.अगर मार्स वन मिशन के संस्थापक बास लैंसडॉर्प पैसे जुटाने में कामयाब रहे तो शायद यह अंतरिक्ष अभियान आने वाली नस्लों के लिए मिसाल बन जाएगा.मार्स वन ने 2023 में मंगल ग्रह की धरती पर मानव को उतारने की चुनौती क़ुबूली है. मगर यह एकतरफ़ा यात्रा होगी, यानी ये अंतरिक्ष यात्री मंगल से कभी वापस नहीं लौटेंगे.सवाल यह है कि क्या मार्स वन 44 साल बाद अपोलो का उत्तराधिकारी बनने जा रहा है?
सवाल इसलिए भी हैं क्योंकि मार्स वन ने किसी भविष्य में ईजाद होने वाली तकनीक के ज़रिए मंगल ग्रह पर उतरने की नहीं सोची है बल्कि वह मौजूदा तकनीक के सहारे यह कारनामा करना चाहता है. मुश्किल यह है कि मौजूदा स्पेस तकनीक इतनी उन्नत नहीं है कि वह इंसान को मंगल की धरती पर उतार सके.इसलिए कई अंतरिक्ष विशेषज्ञ और मीडिया का एक हिस्सा मार्स वन की इस महत्वाकांक्षी योजना को घोटाले या छल का नाम दे रहा है.
लेकिन बास लैंसडॉर्प कहते हैं, "मैंने पिछली कंपनी में अपने सारे शेयर बेचकर यह शुरू किया है और मेरी पिछली कंपनी भी बेहद कामयाब कंपनी है, इसलिए मैं ऐसा नहीं कर सकता. मैं यह इसलिए कर रहा हूं क्योंकि मुझे विश्वास है कि इंसान को मंगल पर जाना चाहिए."पैसे का सवाल
मार्स वन लगातार आलोचना के घेरे में है. मिशन पर सबसे बड़ा हमला तब हुआ, जब बास लैंसडॉर्प ने अपनी योजना को सोशल मीडिया वेबसाइट रैडिट पर रखा. जून 2012 में रैडिट कॉन्फ़्रेंस के दौरान कई भागीदारों ने मार्स वन को झूठा क़रार दिया. वहां उठाए गए तकनीकी सवालों पर मार्स वन पूरी तरह जवाब नहीं दे सका.एक रैडिट यूज़र इलीटज़ीरो के जवाब तो दिए मगर उसे संतुष्ट नहीं कर पाए.भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो से संबंधित रहे और एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन के पूर्व एमडी डॉ केआर श्रीधर मूर्ति भी मार्स वन के एक सलाहकार हैं.वे कहते हैं, "झूठ या घोटाले का सवाल हरेक भागीदार के नज़रिए से देखा जाना चाहिए. भागीदारों की इस प्रोजेक्ट में अपनी-अपनी प्रतिबद्धताएं हैं. उनकी प्रतिबद्धताओं को देखते हुए बास को देखना है कि वे उनसे संतुष्ट हैं या नहीं और यही अहम है. असल में अभी तक ऐसा कुछ नहीं कि इसे कोई झूठ कहा जाए. हां, यह बेहद जोख़िम भरा काम है."
मार्स वन मिशन को झूठ कहने वालों पर बास का कहना है, "हमारे साथ नोबेल पुरस्कार विजेता हैं, अंतरिक्ष वैज्ञानिक हैं और हमें नासा के वैज्ञानिकों का समर्थन हासिल है. अगर यह सच नहीं होता तो वे हमें कभी समर्थन न करते. यही बात सप्लायरों के बारे में भी है, जिनसे हम बात कर रहे हैं. पहले सप्लायर के साथ हमारा अनुबंध हो चुका है और नीदरलैंड्स में यूनिवर्सिटी ऑफ़ ट्रैंट हमारा विज्ञान और शैक्षणिक सहयोगी है. ये सभी लोग मार्स वन से कभी न जुड़ते, अगर इन्हें यह यक़ीन न होता कि यह असल में हो रहा है."हो सकता है कि बास सही हों. मगर इतना तय है कि इसने जवाबों से ज़्यादा सवाल खड़े किए हैं और यक़ीनन इनमें से कई सवालों का कोई निश्चित जवाब उनके पास नहीं है.मार्स मिशन: 10 साल, दो लाख आवेदन
मार्स वन फ़ाउंडेशन के मुताबिक़ उसे पहले चरण में दो लाख लोगों के आवेदन मिले हैं जो मंगल पर जाने के इच्छुक हैं. 2015 के मध्य तक इनमें से 24 को चुना जाएगा और जो पहली छह कॉलोनियां बसाएंगे. 2023 की अंतरिक्ष यात्रा के बाद अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने पर चार बिलियन डॉलर और नियमित सप्लाई मिशन पर 250 मिलियन डॉलर ख़र्च होगा.मार्स वन ने अंतरिक्ष यात्रियों से इस साल 22 अप्रैल से आवेदन लेना शुरू किया था. उनसे इसके एवज़ में एक फ़ीस ली गई. यह फ़ीस हर देश की विकास दर के हिसाब से आंकी गई थी. अमरीकी नागरिकों के लिए यह 38 डॉलर तो भारतीयों के लिए यह सात डॉलर थी. मार्स वन वेबसाइट के मुताबिक़ पहले चरण के बाद चुने गए आवेदकों का दूसरे चरण में इंटरव्यू होगा और उनकी सेहत की जांच होगी.