मर्द को दर्द नहीं होता Movie Review : ढिशूम ढिशूम के बाद पब्लिक को पिलाया ओ आर एस
कहानी :
हीरो को दर्द नहीं होता, क्योंकि उसको दर्द न होने की बीमारी है, इसीलिये वो बन जाता है देसी एवेंजर।
समीक्षा :
कुछ भी बोल लो भाई साहब, अगर फ़िल्म मज़ा लेके लिखी गई हो और लिखने वाले से ध्यान से लिखी गई हो तो अधिकतर ऐसी फिल्म धाकड़ बन जाती है। ये ऐसी ही धाकड़ फिल्म है। साथ ही ये बहुत ही फिल्मी फिल्म है, फिल्म की दुनिया किस तरह से एक छोटे से बच्चे को पाल सकती है, इस फिल्म का एक प्लाट वो भी है। फिल्म सिम्बोलिस्म और फिल्मी रेफरेंस पॉइंट्स से भरी पड़ी है और यही कारण है कि ये फिल्म अनूठी है अलग है। ब्रूस ली कि फिल्म्स को अगर टारनटिनो की स्टाइल में बॉलीवुड स्टाइल में बनाया जाए तो केवल यही फिल्म बनेगी। फिल्म व्हिमसीकल है और गजब अतरंगी है। हीरो कॉमिक बुक्स के हीरो की तरह हीरोइक है और हेरोइन सच मे उसकी परफेक्ट मैच। विलेन भी बिल्कुल जोकर जैसा है, जानता हूँ इस बात पे आप हसेंगे, पर कहने का मतलब यही है कि इस फिल्म के विलेन से भी प्रेम हो जाएगा, डबल डबल। एडिटिंग परफेक्ट है और फिल्म इसी कारण से इन्टरटेन्मेंट का फूल डोज़ देती है बिना बोर किया।
अभिमन्यु , भाग्यश्री के बेटे हैं और उतने ही क्यूट भी हैं। अपनी पहली फिल्म के लिए ऐसी कहानी चुनने के लिए उनको क्रेडिट देना चाहिये। वो एक्टर बढ़िया है, बहुत आगे जाएगा अगर ऐसे ही मेहनत से एक्ट करता रहे। राधिका मदान का ये नॉकआउट पेरफ़ॉर्मेन्स है। गुलशन देवीआ का ये लाइफ का बेस्ट परफ़ॉर्मेन्स है। हर फ्रेम हर सीन में उनके पंचलाइन गज़ब हैं। उनका काम इतना धांसू है कि उनके सीन्स का इंतज़ार रहता है।
हमारा हीरो जब मुजरिमो को पीट पीट के मारता है तो उसको डिहाइड्रेशन हो जाता है इसी वजह से वो अपने बस्ते में ओआरएस रखता है, बीहड़ और रूटीन बॉलीवुड आईडिया से अटी पड़ी इस डीह्यड्रेटेड फिल्मी दुनिया के लिए ये फिल्म ओआरएस है। देखिए ज़रूर मज़ा करेंगे। मैं इस फ़िल्म को बारबार देख सकता हूँ, बावजूद इसके की 'मुझे एक्शन फिल्म्स में अधिक रुचि नहीं है, खून खराबा देख के मन खट्टा हो जाता है और इसी वजह से इन फिल्मों से मैं दूर ही रहता हूँ।'
Review by : Yohaann Bhaargava