गांधी की राह पर मंडेला के साथ चार कदम!
मैंने अब तक सिर्फ़ उसकी तस्वीर अख़बारों में देखी थी या फिर टेलीविज़न पर. मैं उन दिनों जनसत्ता अख़बार में काम किया करता था जहाँ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा ने उस शख्स की युवावस्था की तस्वीर वाला एक पोस्टर लगा दिया था: नेल्सन मंडेला को रिहा करो.वही नेल्सल मंडेला मुझसे कोई दस क़दम की दूरी पर खड़े थे. मैंने देखा रंगभेदी शासकों की जेल में सत्ताईस साल काटने के बाद जनसत्ता के पोस्टर वाली छवि पर उम्र की रेखाएँ उभर आई थीं. काले बालों में सफ़ेदी आ चुकी थी लेकिन सफ़ेद चमकते दाँत वैसे ही थे. सधी हुई चाल बरक़रार थी.'मेरे हाथों में मंडेला का हाथ'अमरीका और ब्रिटेन सहित कई पश्चिमी सरकारें और राजनेता इस आदमी को ख़तरनाक मानते आए थे. मार्गरेट थैचर की कंज़र्वेटिव सरकार के लिए मंडेला और अफ़्रीकन नेशनल काँग्रेस आतंकवादी थे.
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ख़ालिस्तान के एक नेता को प्रिज़नर आफ़ कांशेंस घोषित किया था लेकिन मंडेला को नहीं क्योंकि उनकी अफ्रीकन नेशनल काँग्रेस हथियारबंद आंदोलन चला रही थी.
वो सुबह मुझे फिर से याद तब आई जब मंडेला ने इक्यानवे वर्ष पूरे किए. शहर लंदन में संसद और वेस्टमिन्स्टर एबी के पास कुछ साल पहले नेल्सन मंडेला की मूर्ति लगाकर जैसे उन्हें इज़्ज़त बख्शी गई हो.उसी मैदान में विन्स्टन चर्चिल का बुत भी वहीं है लेकिन उसे नेल्सन मंडेला की मूरत से कई गुना विशाल बनाया गया है.पर मंडेला से विशाल कौन हो सकता है?