दुनियाभर की 50 से अधिक भाषाआें में छप चुकी है गांधी जी की आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग'
कानपुर। आज यानी कि 2 अक्टूबर को देशभर में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की 149वीं जयंती मनाई जा रही है। बता दें कि महात्मा गाँधी (मोहनदास करमचंद गाँधी) का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 में गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। वैसे तो गांधी जी ने अपने जीवन में कई किताबें लिखी थीं लेकिन उनमे से 'सत्य के प्रयोग' नाम की एक किताब बहुत ही खास थी। दरअसल, यह किताब उनकी आत्मकथा है और यह आत्मकथा उन्होने गुजराती में लिखी थी। ये किताब पांच भाग में है और पाँचों भाग में गांधी जी के बचपन से लेकर जवानी तक का जिक्र है।
किताब में पांच भाग का जिक्र
किताब के पहले भाग में गाँधी जी का जन्म, पढाई, उनके बचपन, पसंद, उनकी परेशानी, चोरी और प्रायश्चित, पिता की मृत्यु और उनकी दोहरी शरम आदि समेत उनके बचपन के कई अहम किस्सों का जिक्र है। दूसरे भाग में संसार-प्रवेश, उनका पहला मुकदमा, दक्षिण अफ्रीका की तैयारी, अनुभवों की बानगी, प्रिटोरिया जाते हुए, अधिक परेशानी, प्रिटोरिया में पहला दिन, देश की ओर, हिन्दुस्तान में राजनिष्ठा और शुश्रूषा, बम्बई में सभा आदि उनके करियर से जुड़ी कई बातों का जिक्र है। तीसरे भाग में शान्ति, बच्चों की सेवा, सेवावृत्ति, सादगी, बोअर-युद्ध, लार्ड कर्जन का दरबार, गोखले के साथ एक महीना, काशी में और धर्म-संकट आदि उनके जीवन से संबंधित कई बातों का जिक्र है। चौथे भाग में कड़वा घूंट पिया, बढ़ती हुई त्यागवृति, निरीक्षण का परिणाम, मिट्टी और पानी के प्रयोग हृदय-मंथन, सत्याग्रह की उत्पत्ति, आहार के अधिक प्रयोग, पत्नी की दृढ़ता, घर में सत्याग्रह, संयम की ओर, लड़ाई में हिस्सा, धर्म की समस्या, छोटा-सा सत्याग्रह आदि समेत कई बातों का जिक्र है। इसके बाद सबसे आखिरी और पांचवे भाग में कुंभमेला, लक्षमण झूला, आश्रम की स्थापना, कांग्रेस में प्रवेश,खादी का जन्म, चरखा माला! और उनके जीवन के संघर्षों के बारे में लिखा गया है।
इतनी भाषाओँ में हुईं प्रकाशित
यह किताब तीस विदेशी और भारत के सभी प्रमुख भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है। बता दें कि यह सबसे पहले गुजराती भाषा में लिखी गई थी। गुजराती भाषा में इस किताब का नाम 'सत्यके प्रयोग अथवा आत्मकथा' था और सबसे पहले यह किताब 1927 में प्रकशित हुई थी। इसके अलावा महात्मा गांधी की आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' 1925 से 1929 के बीच समाचार पत्र नवजीवन में साप्ताहिक स्तंभ के रूप में छपी। इसका अंग्रेजी अनुवाद कई कडि़यों में साप्ताहिक समाचार पत्र यंग इंडिया में प्रकाशित हुआ। इसमें उनके बचपन से लेकर 1921 तक उनके जीवन की कहानी है। नवजीवन ट्रस्ट के अनुसार, अब तक करीब 19 लाख से अधिक इस आत्मकथा की प्रतियाँ बिक चुकी है और यह आत्मकथा दुनियाभर के 50 भाषाओं में उपलब्ध है।